भारतीय चित्रकला जो है विश्व विख्यात

Shreya N

मधुबनी चित्रकला बिहार के मिथिला प्रांत से आती है। वहां के घरों में यह पैंटिंग बहुत सामान्य हुआ करती थी। 1934 में बिहार में आए, एक भूकंप का निरीक्षण करते समय ब्रिटेन के विलियम जीं आर्चर को यह पेंटिंग मिली और विश्व में ये कला प्रख्यात हो गई। इसमें विशेषकर पौराणिक कथाओं के दृश्यों का चित्रण होता है।

मधुबनी चित्रकला | Zeeshan Mohd - RE

यह उड़ीसा की पारंपरिक चित्रकला पद्धति है। इसमें कपड़े पर देवी-देवताओं के चित्र बनाए जाते हैं। इसमें गहरे रंगों का प्रयोग कर चित्रो को जीवंत दिखाया जाता है। कपड़े पर पेंटिंग करने के कारण, इसे पट्ट चित्रकला नाम दिया गया है।

पट्ट चित्रकला | Zeeshan Mohd - RE

कलमकारी चित्रकला आंध्र प्रदेश से आती है। इस 3000 साल पुरानी चित्र शैली में सूती कपड़े पर हाथ से या ब्लॉक प्रिंटिंग के जरिए कारीगरी की जाती है। इस चित्रकारी के  लिए पौधों, पत्तियों, पेड़ों की छाल, आदि का उपयोग किया जाता है।

कलमकारी चित्रकला | Zeeshan Mohd - RE

इस चित्रकला का विकास 19वीं सदी में हुआ था। इसमें दैनिक जीवन की घटनाओं और देवी-देवताओं के चित्रों को आसान पर बहुत सुंदर तरीके से बनाया जाता है। इसमें गहरे रंगों का प्रयोग करके चित्र बनाए जाते हैं। इसकी खोज कोलकाता के कालीघाट मंदिर में हुई थी, इसलिए इसे कालीघाट शैली कहते हैं।

कालीघाट चित्रकला | Zeeshan Mohd - RE

इस चित्रकला के इतिहास को 2500 साल पुराना माना जाता है। ये मुख्यतः महाराष्ट्र के थाने और नासिक क्षेत्र से उत्पन्न हुई है। इसमें वहां की जनजातियों के रोज के कामों की झलक दिखाई देती है। वर्ली चित्रकला में मानव और पशुओं के शरीर को दो त्रिकोणों से दर्शाया जाता है।

वर्ली चित्रकला | Zeeshan Mohd - RE

लघु चित्रकारी मुगलों द्वारा 16वीं सदी में भारत लाई गई थी। इसे पत्थर के रंगों के प्रयोग से बनाया जाता है। यह मुख्य रूप से राजस्थान, मालवा, दक्कन, कांगड़ा और अन्य इलाकों में प्रचलित है, जहां कभी मुगलों का राज्य था।

लघु चित्रकारी | Zeeshan Mohd - RE

पिछवाई चित्रकला में पारंपरिक रूप में श्रीकृष्ण की तस्वीर ही बनाई जाती थी। इसमें उनके जीवन को दर्शाया जाता था। इस कला का जन्म नाथद्वारा, राजस्थान से हुआ था। आगे चलकर इस शैली में कई तरह के चित्र बनने लगे और यह कला विश्व भर में प्रख्यात हो गई।

पिछवाई | Zeeshan Mohd - RE

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