gurjeet kaur
भोजशाला मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित है। परमार राजवंश के राजा भोज ने धार में एक महाविद्यालय की स्थापना की। इस महाविद्यालय को भोजशाला के रूप में जाना जाता है। राजा भोज शिक्षा और साहित्य के जानकार और उपासक थे।
राजा भोज द्वारा स्थापित भोजशाला में वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित थी। हिंदू धर्म को मानने वाले इसे सरस्वती मां का मंदिर मानते हैं और वसंत पंचमी के दिन यहां पूजा करते हैं।
कहा जाता है कि, अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1305 ईस्वी में भोजशाला को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था। बावजूद इसके आज भी सरस्वती मंदिर के कुछ अवशेष बाकी हैं।
कई समय तक वीरान और गुमनाम रहने के बाद 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने यहां मस्जिद का निर्माण करवाया। इसके बाद 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने मस्जिद के दूसरे हिस्से को बनवाया। तब से यहां मुस्लिम धर्म के अनुयाई नमाज पढ़ा करते हैं।
1875 में यहां खुदाई की गई तो प्राचीन सरस्वती प्रतिमा मिली थी । इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का एक अंग्रेज लंदन ले गया। आज की तारीख में यह प्रतिमा लंदन के एक संग्रहालय में है। हिंदू संगठनों द्वारा इस प्रतिमा को वापस लाए जाने की मांग भी की गई है।
हिंदू पक्षकार इसे देवी सरस्वती का मंदिर मानते है वहीं मुस्लिमों का कहना है कि वे लंबे समय से यहां नमाज अदा कर रहे हैं। फिलहाल यह मामला मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में है। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इस मामले की अयोध्या जैसा बताया था।
यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि, भोजशाला में पूजा और नमाज दोनों होते हैं। समय-समय पर जारी आदेशों के बाद यहां शुक्रवार को नमाज और मंगलवार को पूजा होती है।
कमाल मौलाना मस्जिद में मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं। मस्जिद में एक बड़ा खुला प्रांगण है जिसके चारों ओर स्तंभों से सज्जित एक बरामदा एवं पीछे पश्चिम में एक प्रार्थना गृह स्थित है। भोजशाल में नक्काशीदार स्तम्भ और प्रार्थना कक्ष की छत है ।
हिंदुओं का कहना है कि, इस भोजशाला का ASI सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए ताकि पता चले की भोजशाला की धार्मिक प्रकृति क्या है?
भारत और UAE की दोस्ती का प्रतीक BAPS हिंदू मंदिर