Shreya N
आजाद भारत को चलाने के लिए एक संविधान की आवश्यकता थी। इसके लिए आजादी के पहले 1946 में ही एक संविधान सभा का गठन कर दिया गया था। इस सभा में कुल 389 सदस्य थे। इनमें 15 महिलाएं भी शामिल थी। इन महिलाओं ने संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई है।
दक्षिणायनी वेलायुधन संविधान सभा की इकलौती दलित महिला सदस्य थी। 1912 में जन्मी वेलायुधन, संविधान सभा की सबसे युवा सदस्य भी थी। व्यक्तिगत तौर पर वे देश में किसी भी प्रकार के आरक्षण का विरोध करती थी। वे अपने लेखों के जरिए मुखरता से बात रखना जानती थी।
सरोजिनी नायडू को भारत की पहली महिला राज्यपाल के रूप में जाना जाता है। हालांकि इसके पहले, वे भारत का संविधान बनाने वाली सभा का भी हिस्सा रह चुकी है। सरोजिनी नायडू ने सदैव महिलाओं के अधिकार के लिए आवाज उठाई है। भारत में महिलाओं को मताधिकार दिलाने में उनका बड़ा योगदान है।
बेगम क़दसिया ऐज़ाज़ रसूल संविधान सभा की इकलौती मुस्लिम महिला थी। वे अल्पसंख्यक अधिकारों की ड्राफ्टिंग कमेटी की सदस्य थी। उन्होंने धर्म आधारित आरक्षण के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया था। वे अल्पसंख्यकों के लिए न्याय और समान अधिकार चाहती थी। उनका मानना था कि हिंदी को ही भारत की राष्ट्रीय भाषा माना जाना चाहिए।
दुर्गाबाई देशमुख पेशे से एक वकील थी। संविधान सभा में उन्होंने हिंदू कोड बिल के अंतर्गत, महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार मिलने का पक्ष रखा था। इसके अलावा उन्होंने हिंदी और उर्दू भाषा के मिश्रण से बनी हिंदुस्तानी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने की बात भी कही थी।
हंसा जीवराज मेहता ने संविधान सभा में महिलाओं के अधिकारों व समानता का पक्ष रखा था। उन्होंने महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार मिलने पर बल दिया था। इसके अलावा उन्होंने देश में महिलाओं को समान अधिकार देने का विषय भी उठाया था।
राजकुमारी अमृत कौर भी संविधान सभा में शामिल 15 महिला सदस्यों में से एक थी। वे आजाद भारत की कार्यप्रणाली के निर्माण में योगदान देने वाली एक सशक्त महिला थी। वे समान नागरिक संहिता बनाने के पक्ष में थी। वे 1947 में स्वतंत्र भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री भी बनी।
ये हैं संविधान सभा में शामिल अन्य महिलाएं