Shivraj Singh chauhan
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नुकसान की स्थिति में मप्र के केला उत्पादकों को दिया जाएगा दोगुना मुआवजा, कैबिनेट बैठक में लिया गया फैसला

चुनावी साल में मप्र सरकार ने केले की खेती करने वाले किसानों को राहत देने का फैसला किया है। अब केला किसानों को नुकसान होने पर दोगुना मुआवजा दिया जाएगा।
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राज एक्सप्रेस । चुनावी साल में मध्य प्रदेश सरकार ने केले की खेती करने वाले किसानों को राहत देने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में केला किसानों को फसल में नुकसान होने की स्थिति में दोगुना मुआवजा देने का निर्णय लिया गया है। इससे किसानों को कुछ हद तक राहत मिलेगी लेकिन केले की फसल का बीमा किए जाने की उनकी मांग अब भी अधूरी है। कैबिनेट ने रेवेन्यू बुक सर्कुलर में संशोधन करके केले की फसल के नुकसान पर दिए जाने वाले मुआवजे को बढ़ाने का निर्णय लिया है। फसल को 25-33 फीसदी नुकसान होने पर 30,000 रुपये प्रति हेक्टेयर, 33-50 फीसदी नुकसान पर 54,000 रुपये प्रति हेक्टेयर और 50 फीसदी से अधिक नुकसान पर दो लाख रुपये प्रति हेक्टेयर देने की बात कही गई है।

फसल के नुकसान की अधिकतम सीमा छह लाख की गई

फसल नुकसान पर अधिकतम मुआवजे की सीमा भी पहले के 3 लाख रुपये से बढ़ाकर 6 लाख रुपये कर दी गई है। मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में बड़े पैमाने पर केले की खेती की जाती है। यहां से बड़े स्तर पर पश्चिम एशिया के देशों में केले का निर्यात भी किया जाता है। निमाड़ क्षेत्र इनमें मुख्य रूप से धार, बड़वानी और बुरहानपुर जिले आते हैं। बुरहानपुर की जिलाधिकारी भाव्या मित्तल ने बताया कि अप्रैल में हुई बारिश और ओलावृष्टि के कारण जिले में 2,200 हेक्टेयर से अधिक इलाके में केले की फसल को नुकसान पहुंचा था। उस समय केला पककर तैयार हो गया था।

डेढ़ साल की होती है केले की फसल, खराब हुई तो टूट जाता है किसान

हालांकि, धार जिले में 5 एकड़ में केले की खेती करने वाले किसान प्यारेलाल ने बताया बेमौसम वर्षा ने अप्रैल में पूरी फसल खराब कर दी है। सरकारी अधिकारियों ने हमारे इलाके में अब तक कोई सर्वेक्षण भी नहीं किया गया है। देखना यह है कि बिना सर्वे राज्य सरकार हर्जाने का वितरण किस तरह से करती है। उल्लेखनीय है कि केले की खेती में काफी लागत आती है। इसके साथ ही डेढ़ साल में केले की केवल एक फसल आती है इस वजह से इसके खराब होने का जोखिम बहुत भी काफी अधिक रहता है। फसल खराब होने की स्थिति में किसान की आर्थिकी पूरी तरह बैठ जाती है।

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