भूतपूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के आर्थिक सुधार की चर्चा क्यों?
भूतपूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के आर्थिक सुधार की चर्चा क्यों?Social Media

भूतपूर्व पीएम नरसिम्हा राव, प्रधानमंत्री मोदी और आर्थिक सुधार

"दृढ़ निर्णय के अलावा मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी काफी अहम भूमिका है। अब भूतपूर्व पीएम नरसिम्हा राव के आर्थिक सुधार भी इन दिनों चर्चा में हैं।"

हाइलाइट्स

  • नरसिम्हा राव के आर्थिक सुधार की चर्चा क्यों?

  • मोदी के नेतृत्व में आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू

  • आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के इतिहास पर पड़ताल

राज एक्सप्रेस। भारत में आर्थिक सुधार निरंतर रुचि का विषय रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आर्थिक सुधार कार्यक्रम गहराई और स्पष्टता के साथ लागू हैं। इसमें दृढ़ निर्णय के अलावा मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी काफी अहम भूमिका है। अब भूतपूर्व पीएम नरसिम्हा राव के आर्थिक सुधार भी इन दिनों चर्चा में हैं।

राव की तारीफ –

इतिहास पर गौर करें तो भूतपूर्व पीएम नरसिम्हा राव के साहसिक निर्णयों की भारतीय मीडिया समूहों ने सराहना की थी। वो भी तब जब निर्णय देश के विपरीत थे।

हाल ही में, भूतपूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की जयंती पर भारतीय अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए उनके समय के दौरान लिए गए निर्णयों को याद जरूर किया गया।

भूतपूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार के यह वो साहसिक निर्णय थे जो कठिन परिस्थितियों में लिये गए थे। जब​​कि 1989 के बाद से भुगतान संकट देखने को मिल रहा था।

इतिहास पर नजर -

भारत पर उधार के उच्च स्तर का दबाव था। इसके अलावा आईएमएफ और विश्व बैंक के साथ चर्चा का दौर 1990 के अंत तक शुरू हुआ। तब भारत पर भुगतान दायित्वों का अतिरिक्त भार भी था।

आईएमएफ ने निर्दिष्ट मानदंडों के आधार पर भारत के त्रैमासिक प्रदर्शनों के लिए क्रेडिट किश्तों की मुक्ति का रुझान दिखाया। विश्व बैंक ने भी निर्दिष्ट बेंचमार्क से जुड़े संरचनात्मक समायोजनात्मक ऋण प्रदान किए। ऐसे में उनकी शर्तानुसार मिलकर काम करना लगभभग तय था।

लाइसेंस कोटा राज –

गौरतलब है इस काज में भारत को बाजार संचालन के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक परिदृश्य में नये आयाम देने खोलना था। कहा जा रहा है इससे लाइसेंस कोटा राज की समस्या से भी बाहर हुआ जा सकता है।

आईएमएफ ने निर्दिष्ट मानदंडों के आधार पर भारत के त्रैमासिक प्रदर्शनों के लिए क्रेडिट किश्तों का आंकलन किया।

साथ ही विश्व बैंक ने निर्दिष्ट बेंचमार्क से जुड़े संरचनात्मक समायोजन ऋण भी प्रदान किए। इसमें सरकार को ऋणदाता की शर्तानुसार काम करना एक शर्त रही। इसका कारण बताया जा रहा है कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को बाजार में उतारने के अलावा लाइसेंस कोटा राज से बाहर होना भी एक तय लक्ष्य था।

दृढ़ इच्छा शक्ति -

आपको पता हो चार दशक पुराने आदेश और नियंत्रण मॉडल को खत्म करने के लिए बड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता थी, जो कि अल्पसंख्यक सरकार चलाने के बावजूद राव ने कर दिखाया था। आखिरकार इस कदम से भारत को निकट दिवालियापन से बाहर निकालने में आसानी भी हुई।

कांग्रेस की कमजोरी -

हालांकि, सहमत शर्तों में से कई शर्तें अधूरी रहीं। भारत के लिए एक नेतृत्व और उसके दृष्टिकोण में सुधार के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत थी जो कि नरसिम्हा राव के बाद कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी है।

खोया हुआ दशक -

आप याद रखें 1991 के वित्त मंत्री एक दशक के लिए प्रधान मंत्री थे। लेकिन...लेकिन जानकारों का कहना है कि; कांग्रेस ने भारत के बजाय अपनी राजनीतिक इच्छा शक्ति के इस्तेमाल के लिये उनका इस्तेमाल किया। कई ने तो 2004-14 को भारत का खोया हुआ दशक तक कहा। इन प्रधानमंत्री का नाम तो समझ ही गए होंगे आप!

फिर क्या हुआ? -

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार (1999-2004) ने पुरानी सरकार के सुधारों को आगे बढ़ाया। मतलब कोई राजनीतिक मनभेद नहीं!

भारत ने राजकोषीय समेकन पर 1991 में प्रतिबद्धताओं को पूरा किया था, जो कि उन तिमाही बेंचमार्क के एक भाग के रूप में पूरा किया जाना था।

हालांकि, यह पीएम वाजपेयी थे जिन्होंने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन कानून को अधिनियमित किया। हालांकि अधूरा छोड़ा गया एक और वादा था राज्य की आबकारी दरों के युक्तिकरण का।

फिर....-

1999 में, पीएम वाजपेयी ने एकल माल और सेवा कर के विचार को मंजूरी प्रदान कर दी थी। हालांकि, यह साल 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में माल और सेवा अधिनियम के तहत लागू हो पाया।

मोदी सरकार का रोल -

वर्ष 2014 में सरकार बनाने के एक साल के भीतर पीएम मोदी ने PSB यानी पब्लिक सेक्टर बैंकों के साथ दो दिवसीय ज्ञान संगम का आयोजन किया।

इस संगम में उन्होंने एनपीए यानी कि नेट परफॉर्मिंग एसेट्स, वसूली कानूनों में बदलाव और पीएसयू अर्थात पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स वाले बैंकों के विलय के बारे में बात की। महत्वपूर्ण रूप से, उन्होंने पीएसबी को परिचालन स्वतंत्रता देने की बात कही।

उनके दिमाग में भारत की आकांक्षा संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए हमारे बैंकों के आकार और दायरे का विस्तार करने से लाभान्वित होने का लक्ष्य था।

इसके बाद –

साल 2017 में विलय का एक संग्रह हुआ। जिसके बाद एक छलांग आगे अगस्त 2019 में सरकार ने लगाई। समेकन के बाद भारत के पुराने 21 पीएसबी में से आज 12 बाकी हैं।

आरबीआई पर नज़र -

भारतीय रिजर्व बैंक के इतिहास पर यदि गौर करें तो पाएंगे कि 1969 के बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बारे में दिलचस्प बातें निकलकर सामने आएंगी। आजादी के बाद 1947 से किसी भी सरकार द्वारा लिया गया यह सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय था।

निश्चित रूप से साल 1991 में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर लिये गए निर्णयों की भी इससे तुलना नहीं की जा सकती।

आजादी के बाद -

राष्ट्रीयकरण के बाद, पीएसबी की कई नई शाखाएं उन क्षेत्रों में खोली गईं जो उस समय असुरक्षित थे। ऐसे में 1970 के दशक में सकल घरेलू बचत भी राष्ट्रीय आय के प्रतिशत के रूप में दोगुनी हो गई।

हालांकि 70 के दशक में बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप भी था। जो कि 2008 से 2014 तक 'फोन-बैंकिंग' के माध्यम से जारी रहा।

परिणाम स्वरूप वित्तीय समावेशन या विकास की लगातार तेजी के मामले में यह चार दशकों के बाद भी सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय' हासिल नहीं कर सका।

पीएम जनधन योजना –

साल 2014 में शुरू की गई पीएम जन धन योजना ने 39 करोड़ से अधिक गरीब लोगों को बैंकों और उनकी सेवाओं तक पहुंच प्रदान की है।

सरकारी दावों के मुताबिक इन खातों में कुल मिलाकर 1.32 लाख करोड़ रुपये हैं। दावों के अनुसार 10 करोड़ से अधिक किसान पीएम किसान योजना के लाभार्थी हैं। सरकार का कहना है कि इस योजना से सीधे उनके खातों में धन स्थानांतरित होता है।

किसानों के लिये –

समान रूप से, किसानों की आय बढ़ाने के लिए बाजार की पहुंच महत्वपूर्ण थी। आपको ज्ञात हो सभी किसानों की अंतर-राज्यीय बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करने एक बड़ा कदम हाल ही में उठाया गया। किसान अब केवल अपने क्षेत्रों के लाइसेंस धारकों को अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर नहीं रहें ऐसा सरकार का उद्देश्य है।

इसका लाभ - इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट की मदद से किसान अब अपने उत्पाद को जगह और कीमत के लिहाज से बेचने स्वतंत्र है। कृषि को बढ़ावा देने के लिए हालिया कदमों के परिणामस्वरूप आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किया गया है।

भूमि के पट्टे में बदलाव और खेती की शर्तों के साथ कृषि में बड़े सुधार देखने को मिल रहे हैं। संयोग से कृषि जिंसों पर प्रशासनिक निर्यात नियंत्रणों को हटाना साल 1991 की एक पुरानी लंबित अप्रभावी प्रतिबद्धता है।

कंपनियों को राहत –

दि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड और 2016 में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की स्थापना एक निकास नीति की तलाश कर रही कंपनियों के लिए एक बड़ी राहत प्रदान करती है। लंबे समय से लंबित संकल्प अब हो रहे हैं। शीघ्र निपटान भी उचित मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करता है।

कराधान में सुधार –

साल 2019 में फिर से चुने जाने के एक साल के भीतर एनडीए ने कराधान में बड़े सुधार लाये। नई कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स को घटाकर 15 प्रतिशत जबकि पुरानी कंपनियों के लिए 22 फीसद कर दिया गया। यह विकल्प उनके लिये हैं जो पुरानी योजना में बने रहने के लिए संचित छूट से लाभ प्राप्त करना जारी रखने के इच्छुक हैं।

अंतरिक्ष के साथी –

मोदी ने निजी खिलाड़ियों को भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में सह-यात्री बनने के लिए आमंत्रित किया। इसके अलावा रक्षा उत्पादन में मौजूदा स्वदेशी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए उन्होंने इस क्षेत्र में अधिक निवेश को बढ़ावा दिया है।

सरकार का दावा है कोविड-19 से उपजे हालातों के बीच बदलाव का दौर लगातार जारी है। हालांकि कुछ विश्लेषकों और विपक्षियों का दावा है कि निजीकरण और बदलावों का लाभ कुछ चुनिंदा कंपनियों को ही होगा।

डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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