इंदौर, मध्य प्रदेश। रातोंरात अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आ सकती। इसमें समय लगेगा। इसके लिए प्रयास जोर-शोर से किए जा रहे हैं। सरकार द्वारा समय-समय पर राहत पैकेज की घोषणा भी इसी का भाग है। पहले 1.74 लाख करोड़ का राहत पैकेज, फिर 20 लाख करोड़ का पैकेज, इसी तरह रिजर्व बैंक ने भी राहत पहुंचाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। सभी प्रयास अर्थव्यवस्था को भंवर से निकालने में सहायक है। यह कहना है माता जीजाबाई शा. स्ना. कन्या महाविद्यालय की अर्थशास्त्र प्राध्यापक डॉ. विमला जैन का। उन्होंने बताया अधिक राजकोषीय व भौतिक उपायों की आवश्यकता है। लोक व्यय इस स्थिति से निपटने का कारगर उपाय है। हालांकि अधिक रोजगार सृजन करने वाले क्षेत्र कंस्ट्रक्शन में 50.3 प्रतिशत की गिरावट, मैन्युफेक्चरिंग में 39.3 प्रतिशत, व्यापार, होटल यातायात आदि में 47 प्रतिशत गिरावट से स्थिति चिंताजनक है।
इन क्षेत्रों पर पड़ा सबसे अधिक प्रभाव :
डॉ. जैन ने बताया इस संकट का सबसे अधिक प्रभाव सेवा क्षेत्र एवं औद्योगिक क्षेत्र पर पड़ा है। सूचना, प्रौद्योगिकी, परिवहन, तकनीकी, होटल, रेस्तरां, कला, मनोरंजन, पर्यटन, बैंक, बीमा आदि जबरदस्त रुप से प्रभावित हुए हैं। लगातार व्यवसायों के बंद रहने से क्षेत्र की सकल मांग में गिरावट दर्ज की गई, जबकि जीडीपी में लगभग 57 प्रतिशत भाग सेवा क्षेत्र से प्राप्त होता है। जुलाई माह से इस क्षेत्र में मामूली बढ़त जारी है। औद्योगिक क्षेत्र अर्थव्यवस्था का द्वितीय क्षेत्र माना जाता है। उत्पादन बंद होने से राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क'चे माल की पूर्ति व तैयार माल का वितरण प्रभावित हुआ है। उत्पादन गतिविधियां निचले स्तर पर आ गई है। यद्यपि अब उत्पादन गतिविधियां प्रारंभ तो हो चुकी है लेकिन कम उत्पादन क्षमता के साथ काम कर रही है।
डॉ. जैन का कहना है विपरित परिस्थितियों में कृषि उजाले की किरण सिद्ध हुई। अनुकूल मानसून के कारण कृषि क्षेत्र की विकास दर 3.4 प्रतिशत रही। ऑटो सेक्टर में संकट के बाद भी ट्रेक्टर व कृषि उपकरणें की बढ़ी हुई बिक्री क्षेत्र की प्रगति को दर्शाती है। सप्लाई चेन बाधित होने से कृषि उत्पाद, फल, फूल, सब्जियों की मांग में कमी हुई, जिससे किसानों की आय प्रभावित हुई।
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