CMIE डेटा से जानिये लॉकडाउन में बेरोजगारी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी के बारे में आंकड़े क्या दर्शाते हैं? क्या वेतनभोगी वर्ग बच नहीं पाया? जानिये अहम सवालों के जवाब-
लॉकडाउन के दौरान शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ी बेरोजगारी।
लॉकडाउन के दौरान शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ी बेरोजगारी।Neelesh Singh Thakur – RE

हाइलाइट्स –

  • CMIE के रोजगार डेटा का अध्ययन

  • अप्रैल में बढ़कर 8% हुई बेरोजगारी

  • पिछले साल के मुकाबले कम रही LPR

राज एक्सप्रेस। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने कोविड-19 (COVID-19) के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान भारत में रोजगार की स्थिति के बारे में डेटा जारी किया है। राज एक्सप्रेस पर इस डेटा से जुड़ी खास बातें जानिये।

कहानी अब तक की -

COVID-19 संक्रमण की लगातार दूसरी लहर से प्रभावित भारत ने कई राज्यों में स्थानीयकृत तालाबंदी देखी है। गतिविधियों पर लगाम कसने से नौकरियों का नुकसान बढ़ा है।

इससे पारिवारिक आय और उपभोक्ता भावना प्रभावित हुई है। इस वजह से उम्मीद से कम आर्थिक विकास के लिए मंच स्थापित हुआ है। पिछले साल के कम के आधार पर इस वर्ष गतिविधि में वापस दौड़ की देश में आस जागी है।

लॉकडाउन ने नौकरियों को कैसे प्रभावित किया? -

किसी क्षेत्र के तालाबंदी से महसूस किए गए प्रभावों में से सबसे पहला नुकसान नौकरियों का है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी के बारे में आंकड़े क्या दर्शाते हैं? क्या वेतनभोगी वर्ग बच नहीं पाया? जानिये अहम सवालों के जवाब-

CMIE के मुताबिक -

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Center for Monitoring Indian Economy / CMIE/सीएमआईई) अर्थात भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र के अनुसार, मार्च में बेरोजगारी दर 6.5% थी, लेकिन अप्रैल में बढ़कर लगभग 8% हो गई।

दरअसल यह वही महीना था जब कई राज्यों ने तैयारी शुरू कर दी थी या पहले ही अपने प्रदेश में लॉकडाउन लागू कर दिया था।

अप्रैल में छूटीं इतनी नौकरियां -

अप्रैल में 73.5 लाख नौकरी छूटने के साथ, कर्मचारियों (वेतनभोगी और गैर-वेतनभोगी दोनों) की संख्या मार्च में 39.81 करोड़ से गिरकर अप्रैल में लगातार तीसरे महीने 39.08 करोड़ हो गई।

अप्रैल 2020 में, जो पिछले साल राष्ट्रीय तालाबंदी का पहला पूरा महीना था, बेरोजगारी दर बढ़कर 23.5% हो गई थी।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी के बारे में आंकड़े क्या दर्शाते हैं? -

दर 7.13% पर, अप्रैल 2021 के लिए ग्रामीण बेरोजगारी दर 9.8% के शहरी आंकड़े से कम है। मई के महीने में राष्ट्रीय स्तर पर दरों में और अधिक वृद्धि देखी गई है।

लॉकडाउन के दौरान शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ी बेरोजगारी।
ग्रामीण भारत में बेरोजगारी एक हफ्ते में दोगुनी होकर 14 प्रतिशत हुई

21 मई तक, कुल बेरोजगारी के लिए 30-दिवसीय मूविंग एवरेज 10.3% था। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रासंगिक आंकड़े क्रमश: 12.2% और 9.4% थे।

कम LPR -

अप्रैल 2021 के लिए लेबर पार्टिसिपेशन रेट (LPR/एलपीआर) अर्थात श्रम भागीदारी दर 40% पर पिछले साल के लॉकडाउन से पहले देखे गए स्तरों से कम रही।

लेबर पार्टिसिपेशन रेट (LPR/एलपीआर) अर्थात श्रम भागीदारी दर जनसंख्या के उस वर्ग को मापने में मदद करती है जो नौकरी करने के लिए तैयार है।

बेरोजगारी एक उपसमुच्चय है, जो उन लोगों का एक माप देने में मदद करता है जो नौकरी करने के इच्छुक हैं लेकिन कार्यरत नहीं हैं।

महिलाओं के लिए दोहरी चुनौती -

महिलाओं को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है, जिसमें पुरुषों की तुलना में कम श्रम भागीदारी और महिलाओं के लिए उच्च बेरोजगारी दर (15 वर्ष से अधिक आयु के लिए) होती है।

फीमेल LPR -

सीएमआईई (CMIE) के आंकड़ों से पता चलता है कि; जनवरी-अप्रैल 2021 की अवधि के लिए, शहरी पुरुष के 64.8% की तुलना में शहरी महिला एलपीआर 7.2% था। शहरी महिला बेरोजगारी दर 6.6% की शहरी पुरुष बेरोजगारी दर के मुकाबले 18.4% थी।

कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन कैसा रहा?

पहली लहर के दौरान कृषि बचत का सहारा था, लेकिन दूसरी लहर के दौरान ऐसा नहीं है। CMIE के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020 में कृषि क्षेत्र नौकरियों को जोड़ने वाला एकमात्र सेक्टर था।

कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या वित्त वर्ष 2020 में औसत गणना की तुलना में 6 मिलियन या 5% बढ़ गई थी।

लॉकडाउन के दौरान शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ी बेरोजगारी।
ई-उपार्जन रबी 2021-22: ऑनलाइन पंजीकरण नहीं, दूर केंद्र जाना मजबूरी

नौकरियों का सहारा -

अप्रैल 2021 में, कृषि ने एक महीने पहले की तुलना में 6 मिलियन रोजगार का सहारा दिया। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में इस साल महामारी से कहीं अधिक प्रभावित होने की रिपोर्ट से जुड़ा है।

दिहाड़ी मजदूरों से जुड़ा रोजगार -

दिहाड़ी मजदूरों और छोटे व्यापारियों को अप्रैल महीने में 0.2 मिलियन के क्रम में रोजगार का नुकसान हुआ।

निर्माण उद्योग में काम -

इनमें से कुछ कृषि और दिहाड़ी मजदूरों को निर्माण उद्योग में काम मिल गया होगा क्योंकि इस क्षेत्र में अप्रैल माह के दौरान 2.7 मिलियन रोजगार की वृद्धि देखी गई।

लेकिन, जैसा कि सीएमआईई (CMIE) का मानना ​​है, कृषि और दैनिक मजदूरी के रोजगार से मुक्त किए गए 6.2 मिलियन लोगों में से अधिकांश लोग महीने के दौरान बेरोजगार रह गए होंगे।

यह एक स्पष्ट संकेत है कि पिछले साल के कोविड हमले की स्थिति से ठीक होने से पहले ही नौकरियों का परिदृश्य कमजोर हो रहा है।

रोजगार गारंटी के आंकड़े -

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act) के आंकड़ों से पता चला है कि अप्रैल में नौकरियों की मांग में वृद्धि देखी गई। अप्रैल 2021 में 2.7 करोड़ परिवारों ने काम के लिए साइन अप किया, जो एक साल पहले 1.3 करोड़ की रफ्तार से बढ़ रहा था।

क्या वेतनभोगी वर्ग बच नहीं पाया? -

नहीं, सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार महामारी शुरू होने के बाद से वेतनभोगी नौकरियों का संचयी नुकसान 12.6 मिलियन आंका गया है।

साथ ही यह प्रवृत्ति अप्रैल 2021 के साथ जारी है, इस प्रतिष्ठित श्रेणी में मार्च 2021 के स्तर से 3.4 मिलियन नौकरियों की गिरावट देखी गई है।

कौन से राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित?

सीएमआईई (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा ने अप्रैल 2021 में सबसे अधिक बेरोजगारी दर 35% दर्ज की। इसके बाद बेरोजगारी दर राजस्थान में 28%, दिल्ली में 27.3% और गोवा में 25.7% है।

गौरतलब है कि गुजरात, जिसने उपरोक्त राज्यों की तरह, महामारी की दूसरी लहर की तीव्रता को भी देखा, में बेरोजगारी 1.8% के काफी निचले स्तर पर देखी गई।

बढ़ती बेरोजगारी के आर्थिक परिणाम क्या हैं?

जाहिर है, नौकरी छूटने का आय पर असर पड़ता है। सीएमआईई (CMIE) के प्रबंध निदेशक और सीईओ (CEO), महेश व्यास ने कहा कि 90% भारतीय परिवारों ने पिछले 13 महीनों में अपनी आय में कमी देखी है। आय का नुकसान स्वाभाविक रूप से उपभोक्ता भावना और आर्थिक मांग को कम करता है।

RBI का बुलेटिन -

मई महीने की शुरुआत में प्रकाशित आरबीआई के मासिक बुलेटिन में स्वीकार किया गया कि; महामारी की दूसरी लहर का सबसे बड़ा टोल “एक मांग झटका – गतिशीलता की हानि, विवेकाधीन खर्च और रोजगार, इन्वेंट्री संचय के अलावा।” के संदर्भ में था।

RBI ने बताया -

बुलेटिन में 'स्टेट ऑफ द इकोनॉमी' (State of the Economy) शीर्षक वाले एक लेख में, आरबीआई के अधिकारियों ने बताया कि कुल मांग की स्थिति प्रभावित हुई थी। "यद्यपि पहली लहर के पैमाने पर नहीं।"

लॉकडाउन के दौरान शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ी बेरोजगारी।
RBI ने बुलेटिन में यूं बताया COVID का U-shaped इम्पेक्ट, बताई अपनी तैयारी

e-way bill में अशुभ संकेत -

उन्होंने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि; घरेलू व्यापार के एक संकेतक ई-वे बिल (e-way bills ) में अप्रैल 2021 में महीने-दर-महीने के आधार पर 17.5% की दर से दोहरे अंकों का संकुचन दर्ज किया गया।

अंर्त एवं अंतर राज्यीय ई-वे बिल (intrastate and inter-state e-way bills) में क्रमशः 16.5 प्रतिशत और 19 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह आने वाले महीनों में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी/GST) संग्रह के लिए एक अशुभ संकेत है।

नई कर व्यवस्था लागू होने के बाद से अप्रैल 2021 में संग्रह 1.41 लाख करोड़ रुपयों के उच्चतम स्तर पर था।

कमी की ओर इशारा -

आरबीआई बुलेटिन लेखकों के मुताबिक; "ई-वे बिल में संकुचन आने वाले महीनों में जीएसटी संग्रह में कमी की ओर इशारा कर सकता है।"

हालांकि, मार्च 2021 में गिरावट के बावजूद, कुल ई-वे बिल फरवरी 2020 की महामारी-पूर्व आधार रेखा से ऊपर रहे।

"यह दर्शाता है कि बिक्री प्लेटफार्मों के डिजिटलीकरण के कारण घरेलू व्यापार लचीला बना हुआ है।"

यहां सीमित प्रभाव -

आरबीआई के अधिकारियों ने अप्रैल 2019 के पूर्व-महामारी आधार पर अप्रैल में बिजली उत्पादन में 8.1% की वृद्धि का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि; दूसरी लहर का अब तक औद्योगिक गतिविधियों पर सीमित प्रभाव पड़ा है।

यदि वर्तमान लॉकडाउन आज समाप्त हो जाता तो क्या स्थिति में सुधार होता? -

आर्थिक झटके के बाद के महीनों में खाद्य असुरक्षा (Food insecurity) एक प्रमुख कारक है। इस कारक पर विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट तैयार की गई है।

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट की 'स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2021, वन ईयर ऑफ COVID-19' (State of Working India 2021, One year of COVID-19) शीर्षक वाली रिपोर्ट में परिवारों की आय पर अध्ययन किया गया है।

रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि; अक्टूबर 2020 को समाप्त आठ महीनों में औसतन आधार पर परिवारों ने अपनी संचयी आय का लगभग 22% खो दिया। साथ ही, गरीब परिवारों ने अपनी पहले से ही कम आय का एक बड़ा हिस्सा खो दिया।

पेट काटकर सामना -

शोधकर्ताओं के मुताबिक इससे न केवल गरीबी के स्तर में वृद्धि हुई, बल्कि जिस तरह से परिवारों ने इस झटके का सामना किया, वह बड़े पैमाने पर अनौपचारिक स्रोतों से उधार लेना, संपत्ति बेचना और भोजन की खपत में कटौती करना था।

इसका मतलब यह है कि लॉकडाउन हटने के बाद रोजगार पहले के स्तर के करीब लौटना शुरू हो जाता है, ऐसे में किसी भी अर्थव्यवस्था का प्राण 'उपभोक्ता खर्च' मौन रह सकता है।

डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

और खबरें

No stories found.
logo
Raj Express | Top Hindi News, Trending, Latest Viral News, Breaking News
www.rajexpress.com