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विकास दर पर पड़ सकता है मध्य पूर्व में व्याप्त अनिश्चितता का असर, ब्याज दर में गिरावट संभव

वैश्विक फलक पर अनिश्चितता की धुंध गहराने की आशंका के बीच देश के दो बड़े संस्थानों ने चालू साल में देश की विकास दर घटने की आशंका जताई है।

हाईलाइट्स

  • अगले दिनों में वैश्विक फलक पर अनिश्चितता की धुंध गहराने की आशंका

  • फिक्की ने कहा 2023-24 में आर्थिक विकास दर रह सकती है 6.3 फीसदी

  • क्रिसिल का अनुमान है कि 5.5 प्रतिशत रह सकती है भारत की विकास दर

राज एक्सप्रेस। वैश्विक फलक पर अनिश्चितता की धुंध गहराने की आशंका के बीच देश के दो संस्थानों ने चालू साल में देश की विकास दर घटने की आशंका जताई है। इनमें से एक उद्योग संगठन फिक्की ने कारपोरेट, बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में कार्यरत आर्थिक विशेषज्ञों के बीच कराए गए सर्वे के आधार पर अनुमान प्रकट किया है कि 2023-24 में आर्थिक विकास दर 6.3 फीसदी रह सकती है। वहीं क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का अनुमान है कि विकास दर 5.5 प्रतिशत रहेगी। वित्त वर्ष 2022-23 में देश ने 7.2 प्रतिशत आर्थिक विकास दर हासिल की थी। फिक्की और क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट नए वैश्विक हालात पर भी नजर बनाए रखने की बात कह रही हैं। मध्य पूर्व के देशों में जो हालात बन रहे हैं, उसका दीर्घकालिक असर क्या होगा इसको लेकर अनिश्चितता कायम है।

देश ने पिछले वित्त वर्ष में 7.2 प्रतिशत आर्थिक विकास दर हासिल की थी। इस माह की शुरुआत में भारतीय रिजर्व बैंक ने आर्थिक विकास दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। एजेंसियां अलग-अलग तरह से बता रही हैं कि विकास की रफ्तार सुस्त होने वाली है। फिक्की और क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट में मध्य पूर्व में पैदा हुए तनाव पर नजर बनाए रखने की बात कही गई है । इजराइल-हमास के बीच संघर्ष की वजह से खाड़ी क्षेत्र में जो हालात बने हैं, उसका असर भविष्य में क्या होने वाला है, इसको लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। क्रिसिल के अनुसार पूरे साल भारत में खुदरा महंगाई की दर औसतन 5.5 प्रतिशत रहने वाली है। पिछले साल के 7.2 प्रतिशत महंगाई दर के मुकाबले यह काफी कम है, लेकिन यह आरबीआइ के तय लक्ष्य (चार प्रतिशत) से काफी ज्यादा है।

फिक्की के सर्वे के अनुसार कच्चे तेल की कीमतों में नई वृद्धि की आशंका पैदा हो गई है । जिसका असर देर-सबेर तेल की कीमतों पर पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में आरबीआइ द्वारा ब्याज दरों में वृद्घि की संभावना नहीं के बराबर ही है। खास बात यह है कि उक्त दोनों एजेंसियां इस बात पर रजामंद है कि अगले वित्त वर्ष के दौरान ब्याज दरों में कमी भी की जा सकती है। क्रिसिल ने उम्मीद जताई है कि 2024-25 की पहली तिमाही में ब्याज दर में कमी की जा सकती है, जबकि फिक्की को भी वर्ष 2024-25 की पहली दो तिमाहियों के दौरान आरबीआइ के द्वारा ब्याज दरों में कमी किए जाने की उम्मीद दिखाई दे रही है।

फिक्की ने कहा है कि महंगाई को काबू में रखने के लिए अब पूरा जोर आपूर्ति पर दिया जाना चाहिए। हाल ही में देखा गया है कि दाल और अनाजों की कीमतों को सरकार ने आपूर्ति बढ़ाकर नियंत्रित किया है। इस तरह के उपाय आगे भी करने पड़ सकते हैं। इसके लिए ट्रांसपोर्टेशन पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। कई बार देखने में आया है कि जल्द नष्ट होने वाले उत्पादों की कीमतों में वृद्धि की वजह से महंगाई दर बेलगाम हो जाती है। यातायात व्यवस्था को बेहतर बना कर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।

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