जीएसटी परिषद ने न्यूट्रल अल्कोहल को जीएसटी के दायरे से बाहर निकाला, कई अन्य अहम फैसले लिए
हाईलाइट्स
जीएसटी काउंसिल ने मोटे अनाज के आटे पर जीएसटी दर 18% से घटाकर 5% की है
जीएसटी की यह दर केवल पैकेज्ड और लेबल्ड मोटे अनाज के आटे पर ही लागू होगी
आटा बिना पैक किए बेचा जा रहा है तो इस पर जीएसटी की कोई भी दर लागू नहीं होगी
राज एक्सप्रेस। 52वीं जीएसटी काउंसिल की आज शनिवार 7 अक्टूबर को हुई बैठक में कई अहम फैसले लिए हैं। जीएसटी काउंसिल ने मानव उपय़ोग के लिए अल्कोहलिक शराब के एक प्रमुख रॉ मटेरियल एक्स्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल (ईएनए) को जीएसटी के दायरे से बाहर करने का फैसला किया है। जीएसटी काउन्सिल की अध्यक्ष और केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि राज्य चाहें तो इस पर टैक्स लगा सकते हैं। इसके साथ ही बैठक में शीरा पर जीएसटी 18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी करने का निर्णय लिया गया है।
अब कानून समिति मानव उपयोग के लिए अल्कोहलिक शराब के निर्माण में इस्तेमाल के लिए ईएनए को जीएसटी के दायरे से निकालने के लिए कानून में जरूरी संशोधन की जांच करेगी। यह जान लेना जरूरी है कि औद्योगिक इस्तेमाल के लिए निर्मित होने वाला ईएनए जीएसटी के दायरे में बना रहेगा और इस पर 18 फीसदी की दर से टैक्स वसूला जाएगा।
वित्त मंत्रालय ने कहा इंडस्ट्रियल यूज के लिए संशोधित स्पिरिट को कवर करने के लिए कस्टम टैरिफ एक्ट में 8 अंकों के स्तर पर एक अलग टैरिफ एचएस कोड बनाया गया है। निर्मला सीतारमण ने कहा कि कानून के अनुसार जीएसटी काउंसिल को ईएनए पर टैक्स लगाने का अधिकार है, जैसा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया था। काउंसिल ने आज ईएनए पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को सौंप दिया है। उन्होंने कहा कि अगर राज्य इस पर कर लगाना चाहते हैं, वे ऐसा कर सकते हैं। अगर वे इसे वैसे ही छोड़ना चाहते हैं, तो वे यह भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि राज्यों के हित में केंद्र ने यह अधिकार उन्हें सौंप दिया है।
जीएसटी काउंसिल की बैठक में मोटे अनाज के आटे पर जीएसटी की दर को मौजूदा 18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी करने का फैसला किया है। यह दर प्रीपैकेज्ड और लेबल्ड फॉर्म में बिकने वाले मिलेट्स आटे के लिए लागू होगी। अगर आटा खुले में बिक रहा है तो जीएसटी नहीं वसूला जाएगा। परिषद ने यह भी निर्णय किया है कि मोलेसेस या शीरे पर 28 फीसदी लगने वाले कर को घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया है। इससे गन्ना मिलों को फायदा होगा और वे आसानी से गन्ना किसानों का बकाया भुगतान कर पाएंगे। इसके साथ ही पशु आहार उत्पादन की लागत भी कम होगी।
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