हाल के दिनों में धीमी पड़ने लगी है कि चीन की आर्थिक विकास दर
भारत तीव्र गति से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा
भारतीय शेयर बाजारों के प्रति विदेशी निवेशकों का बढ़ रहा भरोसा
राज एक्सप्रेस । हाल के दिनों में चीन की विकास दर धीमी पड़ने लगी है। पश्चिमी देश अब उसे आर्थिक भागीदार के रूप में कम और प्रतिद्वंद्वी के रूप में अधिक देखते हैं। इस परिदृश्य में, इसकी दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर, एक और उभरती हुई अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित होते हुए दुनिया के अगले ग्रोथ ड्राइवर के रूप में उसकी जगह लेने के लिए होड़ करती दिखाई दे रही है। भारत तीव्र गति से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है। भारत में वैश्विक विकास में चीन का स्थान लेने की भी सामर्थ्य है। भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश लगातार बढ़ रहा है। सरकारें 1.4 अरब युवाओं वाले इस बाजार के साथ नए व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करने को लेकर उत्सुक हैं।
भारत में ढ़ांचागत विकास तेजी से हो रहा है। अधिकांश प्रमुख शहर हवाई मार्गों से जुड़ चुके हैं। विमान बनाने वाली कंपनियां भारत से रिकॉर्ड ऑर्डर प्राप्त कर रही हैं। भारत हाल के दिनों में आईफोन निर्माता के रूप में अपनी वैश्विक पैठ बना चुका है। एप्पल और सैमसंग जैसे सभी दिग्गजों ने भारत में उत्पादन शुरू कर दिया है। भारत से किए जाने वाला निर्यात बहुत बढ़ गया है। हालांकि, भारत की 3.5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था अब भी 17.8 ट्रिलियन डॉलर के आकार वाली चीन की अर्थव्यवस्था से अभी काफी पीछे है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत को चीन तक पहुंचने में अभी काफी समय लग सकता है। बुनियादी ढांचे की कमियाँ, शिक्षा प्रणाली में असमानता, अनावश्यक सरकारी नियम और कुशल श्रमिकों की कमी कुछ ऐसी प्रमुख चुनौतियाँ हैं, जिनका सामना भारत को करना होगा।
लेकिन, एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जहां भारत चीन को तेजी से पछाड़ सकता है वह है वैश्विक आर्थिक विकास में योगदान । बार्कलेज़ जैसे प्रमुख निवेश बैंकों का मानना है कि भारत प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अगले कार्यकाल के दौरान ही विकास में दुनिया में सबसे अधिक योगदान करने वाला देश बन सकता है। ब्लूमबर्ग के अर्थशास्त्रियों ने अपने विश्लेषण में और भी अधिक आशावादी राय व्यक्त की है। उनके अनुसार क्रय शक्ति समता के आधार पर भारत 2028 तक यह लक्ष्य हासिल कर सकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भारत को चार महत्वपूर्ण विकास क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा: पहला है बेहतर बुनियादी ढ़ांचा तैयार करना, कार्यबल के कौशल और भागीदारी का विस्तार, बेहतर शहरों का निर्माण और अधिक कारखानों को आकर्षित कर रोजगार सृजन।
चीन के विस्तार के पीछे 1970 के दशक के अंत में किए गए सुधारों का बहुत बड़ा योगदान रहा, जिसने उसकी अर्थव्यवस्था को वैश्विक व्यापार के लिए खोल दिया गया था। इसके बाद चीन की विकास दर औसतन तीन दशकों तक 10 प्रतिशत प्रति वर्ष रही है। इसने विदेशी पूंजी को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया और वैश्विक मंच पर उसका प्रभाव बढ़ाया। हालांकि, चीन का तेजी से विकास का दौर अब अतीत की बात हो चुका है। संपत्ति क्षेत्र का संकट और पश्चिमी देशों की आपूर्ति शृंखलाओं और संवेदनशील तकनीकों में चीन के प्रभुत्व को लेकर बढ़ती चिंताओं ने उसकी विकास की रफ्तार को धीमा कर दिया है। यही वह जगह है, जिसने भारत को चीन के आकर्षक विकल्प के रूप में उभरने में मदद की है।
मोदी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने का प्रयास कर रही है। यह बदलाव उन पश्चिमी कंपनियों के लिए लुभावना है, जो सस्ते श्रम की तलाश में हैं और चीन से अलग उत्पादन सुविधाएं विकसित करना चाहती हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को अपने चुनाव प्रचार का एक प्रमुख हिस्सा बनाया है। उन्होंने एक रैली में कहा था कि तीसरे कार्यकाल में एक बार फिर सत्ता लौटा तो अर्थव्यवस्था को "दुनिया में शीर्ष स्थान पर" ले जाने का वादा किया था। गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2025 के लिए बुनियादी ढांचे के लिए सरकार का आवंटन 5 साल पहले की तुलना में 3 गुना बढ़कर 11 ट्रिलियन रुपये ($132 बिलियन) से अधिक हो गया है।
यह आंकड़ा 20 ट्रिलियन रुपये से अधिक हो सकता है, यदि राज्यों के खर्च को शामिल कर दिया जाए। पीएम मोदी ने 2030 तक रेल, सड़क, बंदरगाह, जलमार्ग और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 143 ट्रिलियन का निवेश करने की योजना बनाई है । इसके साथ ही उनकी सरकार ने गेहूं और चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर मुद्रास्फीति को कम करने की कोशिश की है। इस दशक की शुरुआत में, सरकार ने घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए लगभग 2.7 ट्रिलियन के प्रोत्साहन कार्यक्रम शुरू किए, जिसमें कंपनियों को टैक्स में छूट, कम भूमि दर और राज्यों से भारत में कारखाने स्थापित करने के लिए पूंजी भी मिली।
ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के आधार परिदृश्य में, भारत की अर्थव्यवस्था दशक के अंत तक 9% तक बढ़ जाएगी, जबकि चीन की गति धीमी होकर 3.5% हो जाएगी। भारत 2028 तक दुनिया के सबसे बड़े विकास चालक के रूप में चीन से आगे निकलने की राह पर है। सबसे निराशावादी परिदृश्य में भी जो कि आईएमएफ के अगले पांच सालों के अनुमानों के अनुरूप है, जिसमें विकास 6.5% से नीचे रहेगा - भारत 2037 में चीन के योगदान से आगे निकल जाएगा। सबसे निराशावादी परिदृश्य में भी, जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अगले 5 सालों के अनुमानों के अनुरूप है, जिसमें विकास 6.5% से नीचे रहने वाला है, भारत 2037 में चीन से आगे निकल जाएगा।
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