आइए, जानते हैं कठिनाइयों के बावजूद भी इन बिजनेसमैन ने कैसे हासिल की सफलता

आज हम कुछ ऐसे लोगों के बारे बात करते हैं जिन्होंने अपने बिजनेस की शुरुआत बहुत ही छोटे स्तर से की थी लेकिन आज उनका नाम दुनिया के बड़े-बड़े बिजनेसमैन की गिनती में शामिल हैं।
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यूँ तो बहुत लोग अपना बिजनेस शुरू करते हैं, लेकिन उसमें से कुछ लोग ही ऐसे होते हैं जिनकी मेहनत रंग लाती है। आज हम कुछ ऐसे लोगों के बारे बात करते हैं जिन्होंने अपने बिजनेस की शुरुआत बहुत ही छोटे स्तर से की थी लेकिन आज उनका नाम दुनिया के बड़े-बड़े बिजनेसमैन की गिनती में शामिल है। आइये जानें कैसे यह लोग धीरज के साथ खुद को इस सफल मुकाम तक लाये हैं। जब भी हम अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने के बारे में सोचते हैं, तो हमारे मन में KFC, McDonald's और Domino's जैसी कंपनियों का ख्याल आता है। लेकिन कभी आपने इन कामयाब कंपनियों की सफलता के पीछे की कहानी जानने की कोशिश की। अगर आप नहीं जानते हैं तो चलिए हम आपको आज इनकी सफलता की कहानी बताते हैं।

कुछ सफल बिजनेसमैन की कहानी

कर्नल हरलैंड सैंडर्स (Colonel Harland Sanders):

कर्नल हरलैंड सैंडर्स, KFC के फाउंडर के रूप में जाने जाते हैं। जब यह 5 साल के थे तब इनके पिताजी का निधन हो गया था। इतना ही नहीं 16 साल की आयु में इन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। इनकी माता ने तो दूसरी शादी कर ली परन्तु यह घर से भाग गए और 17 साल की आयु तक इनको 4 नौकरियों से निकाला जा चुका था। उन्होंने 18 साल की उम्र में शादी कर ली। इसके बाद उन्होंने 4 साल तक बस में कंडेक्टर की नौकरी की उसके बाद उन्होंने आर्मी ज्वाइन की लेकिन वहाँ से भी निकाल दिए गए। इतना ही नहीं उन्होंने लॉ स्कूल में दाखिला लेने के बारे में सोचा लेकिन उसमे भी सफल न हो सके। फिर उन्होंने लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में नौकरी की लेकिन वहाँ भी वह सफल न हो सके। 19 साल की उम्र में ही वे पिता बन गए।

होटल में बावर्ची की नौकरी:

पिता बनने के बाद उन्होंने होटल में बावर्ची की नौकरी करना शुरू कर दी, परन्तु उनकी पत्नी अपनी बेटी को लेकर उन्हें छोड़ कर चली गई। अपनी ही बेटी से मिलने के लिए उन्हें अपनी बेटी की किडनेपिंग की कोशिश करना पड़ा। वह उसमे तक सफल नहीं हुए। 65 साल की उम्र में वे रिटायर हो गए। सरकार की तरफ से उनको मात्र 5 डॉलर का चेक मिला। उन्होंने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की। एक दिन वह अपनी जिंदगी के बारे में लिख रहे थे। तब उन्हें लगा कि अभी बहुत कुछ करना बाकी रह गया है और बहुत कुछ किया जा सकता है। उनका एक बहुत छोटा सा बिजनेस था। जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती थी। जहाँ उनका बिजनेस था वहाँ हाइवे बनने के कारण उन्हें उसे भी बंद करना पड़ा। अब उनकी स्थित इतनी ज्यादा ख़राब हो गई की उनके पास कुछ खाने तक को नहीं था।

नए जीवन की शुरुआत:

कर्नल हरलैंड सैंडर्स ने इतना कुछ होने के बाद भी हार नहीं मानी। उन्हें पता था कि, वह एक अच्छे बावर्ची हैं। उन्हें चिकन बनाना पसंद था और वो उन्हें बहुत ही अलग-अलग तरह से बनाते रहते थे। बस फिर क्या वह अपना कुकर और मसाले उठा कर अपने चिकन की मार्केटिंग करने निकल गए। उन्होंने अलग-अलग रेस्टोरेंट के मालिकों से मिलना शुरू किया। यहाँ भी वे सफल नहीं हुए। क्योंकि लगभग सबने फ्राइड चिकन को नकार दिया। तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। इतना ही नहीं वह 1009 इंटरव्यू में फेल होने के बाबजूद भी हारे नहीं और फिर उनको सफलता प्राप्त हुई। उन्होंने 65 साल की उम्र में अपने चिकन के साथ एक ऐसा बिजनेस खड़ा कर दिया। जो आज 120 देशों में स्थित है। इसकी ब्रांचे 1018 से भी ज्यादा है। यह रेस्ट्रोरेंट KFC है। आज KFC की साल की इनकम 20000 डॉलर से ज्यादा है।

रे क्रोक (Ray Croc):

आइए पहले हम McDonald's के सफल होने के पीछे जिस इंसान का हाथ है, उसके बारे में जान लें। उनका नाम है, रे क्रोक (Ray Croc) इनका जन्म 5 अक्टूबर 1902 में अमेरिका के इल्लिनोइस जगह के ओएक पार्क में हुआ था। यह बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुआ थे। इसलिए वह 15 साल की उम्र में ही प्रथम विश्व युद्ध के समय रेड क्रॉस में एम्बुलेंस के ड्राइवर बन गए। विश्व युद्ध खत्म होते ही उन्हें ड्राइवर की जॉब को छोड़ना पड़ा। उसके बाद वह कागज के ग्लास बेचने लगे। कुछ साल तक ये सेल्स की जॉब करने के बाद वह एक लोकल रेडियोे स्टेशन में पियानो बजाने का काम शुरू कर दिया। इसी तरह वह 25 साल तक अलग-अलग जॉब करते रहे।

दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद

दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने मिल्कशेक बनाने की मशीन बेचने का काम शुरू किया। कुछ साल यही करने के बाद उन्होंने अपनी सेल्स का एनालेसिस किया। तब उन्होंने देखा कि, केलिफोर्निया के एक अकेली कंपनी के छोटे से रेस्टोरेंट ने उनकी सबसे ज्यादा मशीने(6) खरीदी हैं। क्रोक इस कंपनी से बहुत प्रभावित थे। वह विजिट करने भी गए। जब वह वहाँ पहुंचे तो उन्होंने देखा कि, रेस्टोरेंट बहुत छोटा होने के बाद भी वहाँ ग्राहकों की लम्बी लाइन लगी हुई है। तब उन्होंने लाइन में लगे एक ग्राहक से पूछा कि, यहाँ क्या खास है और इतनी भीड़ क्यों है। तब ग्राहक ने जबाब दिया कि आपको यहाँ सबसे अच्छा बर्गर सिर्फ 15 सेंट में मिल जाएगा। इसके अलावा आर्डर की डिलवरी के लिए ज्यादा समय भी नहीं देना पड़ेगा। क्रोक को ये कांसेप्ट बहुत पसंद आया और उन्होंने गहराई से उस रेस्टोरेंट की जानकारी प्राप्त की।

रे क्रोक द्वारा प्राप्त जानकारी:

जानकारी में पता चला कि रिचर्ड (Richard) और मॉरिस मैकडोनाल्ड (Maurice McDonald) नाम के 2 भाइयों ने मिल कर 1940 में एक रेस्टोरेंट खोला था। परन्तु तब यह ज्यादा सफल नहीं था। उन्होंने रेस्टोरेंट के खुलने के 8 साल बाद 1948 में जब मीनू में से डिशों को कम करके कुछ ही आइटम कर दिए और अपना पूरा ध्यान उन पर ही केंद्रित रखा। तब से उन्हें सफलता मिलना शुरू हुई, तब रे क्रोक ने मक्डोनल्ड ब्रदर्स से उसकी रेस्ट्रॉन्ट की फ्रेंचाइजी मांगी दोनों भाई इसके लिए तैयार हो गए। रे क्रोक ने 15 अप्रैल 1955 में इल्लिनोइस के डेस प्लैन्स नाम के शहर में इस रेस्टोरेंट का एक ब्रांच खोला। देखते ही देखते उनकी अच्छी सर्विस के चलते यह बहुत चलने लगा। यह रेस्टोरेंट और कोई नहीं बल्कि McDonald's था। तब रे क्रोक ने मक्डोनल्ड ब्रदर्स से और फ्रेंचाइजी बेचने की बात की।

ठुकराया प्रस्ताव:

जब रे क्रोक ने मक्डोनल्ड ब्रदर्स को यह प्रस्ताव दिया तब उन्होंने उसे मना करते हुए कहा कि हमे और पैसे नहीं चाहिये। अगर तुम्हे इस रेस्टोरेंट की चेन को आगे बढ़ाने का शोक है तो, तुम इसे खरीद लो और अपने मन मुताबिक इसे चलाओ। तब क्रोक ने कुछ साल पैसा इकट्ठा करने के बाद 1961 में इसे 2.7 मिलियन डॉलर और फायदे की 1.9% रॉयल्टी दे कर उसे खरीद लिया। धीरे-धीरे उनके रेस्टोरेंट की चेन बढ़ती गई। उन्होंने अपनी मृत्यु (1983) तक McDonald's के रेस्टोरेंट की चेन को 31 देशों में फैला दिया था। भारत में McDonald's की पहली ब्रांच 13 अक्टूबर 1996 में वसंत विहार नई दिल्ली में खोली गई। आज संसार में 119 देशों से भी ज्यादा में McDonald's के आउटलेट्स फैले हुए हैं। इतना ही नहीं यह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी फास्टफूड रेस्टोरेंट कंपनी है। जो हर दिन 1 करोड़ बर्गर बेचती है।

टॉम मोनाघन:

टॉम मोनाघन को डोमिनोस का फाउंडर माना जाता है इनका जन्म 25 मार्च 1937 को अमेरिका के मिशिगन में हुआ था। उनके पिता की मृत्यु काम उम्र में हो जाने के कारण उनका जीवन अनाथालय और रिश्तेदारों के घर बीता। इतनी कठिन परिस्थितियों के चलते भी उन्होंने हार न मानते हुए स्वयं से अपने कॉलेज तक की पढ़ाई के खर्चे की जुगाड़ कर ली। कॉलेज के बाद उन्होंने छोटी-मोटी नौकरियां करना शुरू कर दिया। उन नौकरियों से पैसे इकट्ठा करके और थोड़ा कर्ज लेकर उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर मिशिगन शहर में एक छोटी सी पिज़्ज़ा की दुकान खोली। जिसका नाम उन्होंने Dominic's रखा। 8 महीने में ही उनके भाई जेम्स ने अपनी नौकरी के चलते उनका साथ छोड़ दिया। भाई के छोड़ने के बाद भी उन्होंने कई कठिनाइयों के साथ अपनी उस दुकान में होम डेलिवरी की शुरुआत कर दी और इससे उनकी बिक्री 8 गुना बढ़ गई।

कई तरह के पिज़्ज़ा:

अपने बिजनेस को आगे बढ़ाते हुए टॉम मोनाघन ने अपने पिज़्ज़ा में कई तरह के पिज़्ज़ा को ऐड किया। जैसे-जैसे फायदा बढ़ता गया वैसे-वैसे बिजनेस भी बढ़ता चला गया। इसके बाद 1965 में उन्होंने अपनी कंपनी का नाम बदल कर Domino's Pizza कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने अपने 2 स्टोर और खोल लिए। उन्होंने उसे अपने लोगो में डॉट्स के रूप में दिखाया उन्होंने सोचा था जैसे जैसे स्टोर बढ़ेंगे वह इन डॉट्स को बढ़ा देंगे। लेकिन जितनी तेजी से स्टोर बढ़े उतनी तेजी से डॉट्स को बढ़ाना मुश्किल था। यह 3 डॉट्स ही आज उनकी कंपनी का लोगो है। इसके बाद 1968 में उनके पहले स्टोर में आग लग गई। इससे उनको काफी नुकसान भी हुआ। लेकिन उन्होंने उस नुकसान के बाद भी 5 स्टोर और खोले। इसके बाद 1970 में ख़राब बिक्री और अन्य परेशानियों के चलते Domino's घाटे में जाने लगी थी।

समस्याओं से छुटकारा:

टॉम मोनाघन ने हार न मानते हुए सभी समस्याओं से छुटकारा पा ही लिया। इसके बाद 1973 में उन्होंने 30 मिनट ग्यारेन्टी डिलवरी का कांसेप्ट पेश किया। जिसके बाद से कंपनी को काफी फायदा हुआ। इतना ही नहीं 1978 तक Domino's के 200 स्टोर खोल लिए गए। इसके बाद 12 मई 1983 को Domino's ने कनाडा में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय स्टोर खोला। आज Domino's के 75 देशों में लगभग 11000 स्टोर खुल चुके हैं। 2007 में इसी कंपनी ने ऑनलाइन और मोबाईल आर्डर की सुविधा शुरू कर दी। इतना ही नहीं 2008 में उसने पिज़्ज़ा ट्रेकर ऐप के जरिये लोगो को आर्डर ट्रैक करने की सुविधा भी शुरू कर दी।

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