इसरो ने थ्रस्टर फायर करके तीसरी बार बढ़ाई कक्षा, अब पृथ्वी से 71,767 किमी दूर पंहुचा आदित्य एल1

इसरो के वैज्ञानिकों ने आज 10 सितंबर को अर्द्धरात्रि के बाद 2.30 बजे तीसरी बार थ्रस्टर फायर करके आदित्य एल1 की कक्षा में बदलाव किया।
Aditya L1
Aditya L1Raj Express

हाईलाइट्स

  • इसरो वैज्ञानिकों ने बताया कि 15 सितंबर को एक बार फिर आदित्य एल1 की कक्षा में बदलाव किया जाएगा

  • वैज्ञानिकों ने आज रविवार की रात 2.30 बजे तीसरी बार थ्रस्टर फायर करके आदित्य एल1 की कक्षा में बदलाव किया

  • आदित्य एल1 6 जनवरी 2024 को एल1 पॉइंट तक पहुंचेगा, यहां से निर्बाध की जा सकेगी सूर्य का निगरानी

राज एक्सप्रेस। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने आज रविवार 10 सितंबर को अर्द्धरात्रि के बाद लगभग 2.30 बजे तीसरी बार थ्रस्टर फायर करके आदित्य एल1 की कक्षा (ऑर्बिट) में बदलाव किया। आदित्य एल1 अब पृथ्वी की 296 किमी x 71,767 किमी की कक्षा में है। यानी अब इसकी पृथ्वी से सबसे ज्यादा दूरी 71,767 किलोमीटर और सबसे कम दूरी 296 किलोमीटर है। इसरो ने बताया कि उपग्रह की कक्षा में बदलाव का काम आईएसटीआरएसी बेंगलुरु से संचालित किया गया। इस दौरान सैटेलाइट को मॉरिशस और पोर्ट ब्लेयर में बने इसरो के ग्राउंड स्टेशनों से ट्रैक किया गया। इसरो वैज्ञानिकों ने बताया कि 15 सितंबर को एक बार फिर आदित्य एल1 की कक्षा में बदलाव किया जाएगा।

3 और 5 सितंबर को भी बढ़ाई गई थी ऑर्बिट

इसरो ने 5 सितंबर को आधी रात के बाद करीब 2.45 बजे आदित्य एल 1 स्पेसक्रॉफ्ट की कक्षा में दूसरी बार बदलाव किया था। तब इसे पृथ्वी की 282 किमी x 40,225 किमी की कक्षा में भेजा गया। यानी उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 282 किमी और सबसे ज्यादा दूरी 40,225 किमी थी। पहली बार इसरो के वैज्ञानिकों ने 3 सितंबर को आदित्य एल1 की ऑर्बिट बढ़ाई थी। तब इसे पृथ्वी की 245 किमी x 22459 किमी की कक्षा में भेजा गया। यानी उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 245 किमी और सबसे ज्यादा दूरी 22459 किमी हो गई थी।

2 सितंबर लॉन्च किया गया था आदित्य एल1

इसरो ने 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे पीएसएलवी-सी57 के एक्सएल वर्जन रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से आदित्य एल1 को लॉन्च किया था। लॉन्चिंग के 63 मिनट 19 सेकेंड बाद इस स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी की 235 किमी x 19500 किमी की कक्षा में स्थापित कर दिया था। इसे 15 लाख किमी दूर स्थित लैगरेंज पॉइंट-1 तक पहुंचने में करीब 5 माह का समय लगेगा। यह वह स्थान है, जहां ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता। यहां से सूर्य की लगातार निगरानी की जा सकती है। जिसके चलते यहां से सूरज पर आसानी से शोध किया जा सकता है।

शू्न्य हो जाता है लैगरेंज पॉइंट-1 पर गुरुत्व बल

लैगरेंज पॉइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच मैथमैटीशियन जोसेफी-लुई लैगरेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में एल1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच पॉइंट धरती और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बैलेंस हो जाता है यानी यहां गुरुत्व बल काम नहीं करता। ऐसे में इस जगह पर अगर किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाता है, तो वह आसानी उस पॉइंट के चारो तरफ चक्कर लगाना शुरू कर देता है।

पहला लैगरेंज पॉइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसे कुल 5 लैंगरेंज पॉइंट मोजूद है। इसरो का कहना है कि एल1 पॉइंट के आस-पास हेलो ऑर्बिट में रखा गया सैटेलाइट सूर्य को लगातार देख सकता है। इससे रियल टाइम सोलर एक्टिविटीज और अंतरिक्ष के मौसम पर नजर रखी जा सकेगी। उपग्रह 6 जनवरी 2024 को एल1 पॉइंट तक पहुंचेगा।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

और खबरें

No stories found.
logo
Raj Express | Top Hindi News, Trending, Latest Viral News, Breaking News
www.rajexpress.com