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आईबीसी कानून में 2019 में जोड़े प्रावधान सही, दिवालिया प्रक्रिया में पर्सनल गारंटर भी जिम्मेदार

गारंटी देने वालों की भूमिका निर्धारित करने के लिए केंद्र ने कानून बनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इन प्रावधानों को सही ठहराया है।

हाईलाइट्स

  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार की ओर से किये गए प्रावधानों को बिल्कुल सही ठहराया

  • इंसॉल्वेंसी व बैंकरप्सी कोड के खिलाफ अदालत में सैकड़ों याचिकाएं दायर की गई हैं

  • इन्हीं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाया।

राज एक्सप्रेस। इंसॉल्वेंसी व बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) में संशोधन करके गारंटी देने वालों की भूमिका निर्धारित करने के लिए केंद्र सरकार ने कानून बनाया था। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए सरकार की ओर से किये गए प्रावधानों को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें लेकर आदेश जारी किया है। इन कानूनों के खिलाफ अदालत में सैकड़ों याचिकाएं दायर की गई थीं। इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाया।

ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने 2019 में इंसॉल्वेंसी व बैंकरप्सी कोड (दिवालिया कानून) में संशोधन करके गारंटी देने वालों की भूमिका तय करने का कानून बनाया था सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद जिन कंपनियों के खिलाफ दीवालिया प्रक्रिया जारी है, उन कंपनियों की ओर से बैंकों को पर्सनल गारंटी देने वालों पर गाज गिरना तय हो गया है।

दरअसल, 2019 में केंद्र सरकार ने इंसॉल्वेंसी व बैंकरप्सी कोड (दिवालिया कानून) में संशोधन करके गारंटी देने वालों की भूमिका तय करने का कानून बनाया था, लेकिन इसके खिलाफ अदालत में सैकड़ों याचिकाएं दायर कर दी गई थीं। याचिकाओं में दावा किया गया था कि इससे गारंटी देने वालों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। इसकते बाद सैकड़ों दिवालिया प्रक्रियाएं ठप पड़ गई थीं।

केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में इंसॉल्वेंसी व बैंकरप्सी कोड में संशोधन करके गारंटी देने वालों की भूमिका निर्धारित करने के लिए कानून बनाया था। आज गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की ओर से किये गए इन प्रावधानों को बिल्कुल सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर आदेश जारी कर स्थिति स्पष्ट कर दी है। इस मामले में जानकारों का कहना है कि इससे कंपनियों से बकाया वसूलने में काफी सहूलियत होगी।

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश जे बी पार्दीवाला व न्यायाधीश मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा आईबीसी में जोड़ा गया संबंधित प्रावधान संविधान की अनुच्छेद 14 में समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है और इसे मनमाना प्रावधान नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने आईबीसी के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली 391 याचिकाओं पर भी स्थिति साफ कर दी है।

आइबीसी की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों से जुड़े कानूनी प्रावधानों जैसे धारा 95(1), 96(1), 97(5), 99(1), 99(2), 100 को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं की मुख्य मांग यह रही है कि किसी कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने से पहले उसके लिए गारंटी देने वालों की बात भी सुनी जाए। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ये प्रावधान नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है और जीवन यापन करने, कारोबार या कोई प्रोफेशन करने के मौलिक अधिकार के भी खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके तर्कों को सही नहीं मानते हुए सरकार के पक्ष में अपना फैसला सुनाया।

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