सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उत्तराखंड सरकार को भी इस मामले में लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट की यह ट्प्पणी आईएमए द्वारा द्वारा दायर याचिका के संबंध में आई
आईएमए कहा कि रामदेव-बालकृष्ण दवाओं के खिलाफ भ्रामक प्रचार कर रहे
राज एक्सप्रेस : सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान पतंजलि आयुर्वेद के बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की माफी को खारिज करते हुए अवमानना के मामले में कार्रवाई के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की बिना शर्त माफी को कोर्ट की अवमानना के मामले में स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पतंजलि-रामदेव भ्रामक विज्ञापन मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस गलती के लिए उन्हें कार्रवाई के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी है। इसके साथ ही उनकी माफी को कोर्ट में आने के पहले ही मीडिया में जारी करने की आलोचना की।
यह मामला कोविड-19 टीकाकरण और आधुनिक दवाओं के खिलाफ कथित बदनाम करने के अभियान से पैदा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पतंजलि आयुर्वेद के बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के "बिना शर्त" को स्वीकार करने से इनकार करते हुए अवमानना मामले में कार्यवाही का सामना करने के लिए तैयार रहने को कहा है। न्यायमूर्ति पीठ ने पूछा, हमें आपके माफीनामे पर क्यों भरोसा करना चाहिए? हम आश्वस्त नहीं हैं। अब इस माफी को खारिज कर दिया जाएगा। अब समाज में एक संदेश जाना चाहिए। आप किस तरह की दवाएं बना रहे हैं?
न्यायमूर्तियों हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ मामले की सुनवाई करते हुए इस तथ्य पर आपत्ति जताई कि दोनों की माफी अदालत के उस तक पहुंचने से पहले ही मीडिया में आ गई। जस्टिस कोहली ने कहा, "रामदेव और बालकृष्ण ने मंगलवार को शीर्ष अदालत को नवंबर 2023 के एससी के आदेश में दर्ज "बयान के उल्लंघन" के लिए 'बिना शर्त और बिना किसी योग्यता के' माफी दी। जब तक मामला खबरों में नहीं आया, इस अदालत को हलफनामे का लाभ नहीं मिला। उन्हें इस अदालत के समक्ष रखने से पहले ही सार्वजनिक कर दिया गया।
हालिया सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उत्तराखंड सरकार को भी पतंजलि और उसके उत्पादों, विज्ञापनों के संबंध में 'आंखें मूंद लेने' के लिए फटकार लगाई थी। बुधवार को, उच्चतम न्यायालय ने एक बार फिर उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई और कहा कि अधिकारियों ने जानबूझकर आंखें मूंद लीं। सु्प्रीम कोर्ट ने कहा, आपने जो पत्र का हवाला दिया, उसमें कहा गया है कि दवाओं का निर्माण कंपनियों द्वारा किया जाता है। यह कहता है कि विज्ञापन अपनी प्रकृति में सामान्य रूप से लोगों को सुझाव भर देते हैं, यह बात अधिनियम के दायरे में है।
उन्होंने अपनी सफाई में कहा उनका लक्ष्य अधिक से अधिक लोगों को आयुर्वेद से जोड़ने का है, मानों वे आयुर्वेद की दवा लाने वाले पहले व्यक्ति हैं। जस्टिस कोहली ने कहा कि जब तक मामला समाचारों में नहीं आया, तब तक इस न्यायालय को आपके हलफनामों की जानकारी नहीं थी। उन्हें इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने से पहले ही सार्वजनिक कर दिया गया। इससे माफी की सत्यता पर प्रश्न उठता है। विज्ञापनों के संबंध में अदालत ने कहा, यह स्पष्ट है कि विज्ञापन दवाओं और कॉस्मेटिक्स अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं।
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