राज एक्सप्रेस। कोरोना वायरस आज पूरे विश्व में भयानक रूप ले चुका है। इसलिए दुनिया भर के लगभग सभी वैज्ञानिक इसकी वैक्सीन बनाने में लग चुके हैं। लेकिन किसी भी वायरस की वैक्सीन बनाने के लिए सर्वप्रथम उस वायरस का इतिहास जानना बेहद जरुरी होता है। ऐसा ही कुछ कोरोना वायरस के साथ हो रहा है। वैज्ञानिकों की रिसर्च के साथ ही कोरोना वायरस के इतिहास के पन्नों को पलटाया गया। उसके बाद इस बात की पुष्टि हुई कि कोरोना वायरस सबसे पहले चीन के वुहान में नहीं बल्कि लंदन में पाया गया था।
कोरोना वायरस को आज से 55 साल पहले जून अल्मेडा(June Almeida) द्वारा खोजा गया था। अल्मेडा एक विरॉलॉजिस्ट थी। सेंट थॉमस अस्पताल में अल्मेडा की भर्ती हुई थी। ये वही जगह है जहां ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (Boris Johnson) का कोरोना वायरस का इलाज चल रहा था। सेंट थॉमस अस्पताल उस दौर का वायरस रिसर्च का बड़ा सेन्टर हुआ करता था। उस समय हैज़ा जैसी बिमारी का हमला बहुत हुआ करता था। अल्मेडा को वायरस इमेजिन के क्षेत्र में बहुत दिलचस्पी थी उसी दौरान उनके पास सर्दी जुखाम के एक वायरस का मामला सामने आया जिसकी आकृति सूर्य ग्रहण के दौरान दिखने वाली चमकदार छवि सूर्य कोरोना (Sun Corona) जैसी थी। तब इसकी एक नए वायरस होने की पुष्टि हुई। सूर्य कोरोना जैसी आकृति होने के कारण इसे कोरोना नाम दिया गया। अल्मेडा ने पहली बार मइक्रोस्कोप से कोरोना वायरस को देखा और इसे अल्मेडा द्वारा नया वायरस कहा। परन्तु किसी को भी उनकी इस बात का विश्वास नहीं हुआ।
कुछ समय बाद अल्मेडा की दोस्ती लैब में मेडिकल राइटर जॉर्ज विंटर से हो गयी। विंटर से शादी के बाद वे दोनों टोरंटो चले गए और वहीं रहने लगे। कुछ समय बाद अल्मेडा ने एक बच्ची को जन्म दिया। फिर अल्मेडा ओंटारियो कैंसर संस्थान से जुड़ गयी जहाँ उन्होंने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में कड़ी मेहनत करके वायरस इमेजिन में महारथ हासिल कर ली थी। वायरस इमेजिन की दुनिया में अल्मेडा ने एक अलग ही मौकाम हासिल कर लिया था। यहाँ अल्मेडा का नाम वायरस इमेजिन की दुनिया में बढ़ रहा था तभी सेंट थॉमस अस्पताल में सर्दी ख़ासी फ़ैलाने वाला एक नया वायरस पाया गया।
बोर्डिंग स्कूल के एक छात्र के बलगम में एक नए वायरस की पुष्टि हुई। इसका नमूना डॉ डेविड टायरेल(Dr David Tyrrell) ने लिया और इसको नाम दिया बी-814 इस वायरस की इमेजिन की सख़्त जरुरत थी। फिर जून अल्मेडा को इस वायरस के बारे में बताया गया। वायरस इमेजिन की दुनिया में ख्याति बटोर चुकी अल्मेडा सेंट थॉमस अस्पताल जहां कई वर्षो तक काम कर चुकी थी वहीं नए वायरस की इमेज के लिए वापस आ गयी। अल्मेडा ने इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप के साथ इस नए वायरस स्टडी शुरू की। यही वो पहली तस्वीर थी जो अल्मेडा ने पहली बार अपने माइक्रोस्कोप से खींची थी।
इस तस्वीर के बारे में ये कहा जा रहा था कि यह चूहों में पाए जाना वाला हेपेटाइटिस(Hepatitis) जैसा दिखता है। इसे इंसानो में पाए जाने वाला इन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस भी कहा जा सकता है। लेकिन विशेषज्ञों द्वारा ये कहा गया कि अल्मेडा आपने एन्फ्लूएंजा वायरस की बहुत ख़राब तस्वीर ली है इसमें कोई नयी बात नहीं है। इसकी एक वजह थी अल्मेडा का दुनिया में मशहूर हो जाना जो शायद विशेषज्ञों द्वारा बर्दास्त नहीं हुआ और एक जो मुख्य वज़ह थी वह था इस नए वायरस की संरचना जो एक पानी की बून्द के धब्बे की छवि जैसी थी। इसके बाद जर्नल ऑफ़ जनरल विरोलॉजी(Journal of General Virology) में तस्वीर छपी तभी से इसको कोरोना वायरस नाम दिया गया। रिसर्च की दुनिया में कोरोना एक नया नाम जुड़ गया।
उसके बाद 35 वर्ष की अल्मेडा आगे की पढ़ाई में जुट गयी। 1980 में ऐड्स के वायरस की इमेजिन के लिए अल्मेडा को दोबारा लंदन बुलाया गया। ऐड्स उस समय का सबसे संक्रमित वायरस था। इन्फ्लुएंजा वायरस के सभी टिके बन चुके थे वहीं कोरोना वायरस सर्दी ख़ासी के आगे नहीं बढ़ा था। तब किसी को ये भी नहीं पता था कि सूर्य ग्रहण के दौरान दिखने वाले सूर्य जैसा कोरोना वायरस जीवित कोशिकाओं में घुसकर अपनी संरचना बदल लेगा।
समय के साथ-साथ अल्मेडा भी इस वायरस को भूलते चले गयी। क्योंकि तब यह वायरस सिर्फ जानवरों की कोशिकाओं में ही पाया जाता था। कोरोना चमगादड़ की प्रजाति के लिए सबसे अनुकूल माना जाता था। लेकिन 90 के दशक में कुछ ऐसे मामले सामने आये जिससे कोरोना वायरस इंसानों को अपनी चपेट में ले सकता था। कोरोना अपना रूप बदल सकता था इसी आधार पर कोरोना के जानवरों से इंसानों में फैलने वाले 4 रूप सबसे खतरनाक माने गए हैं।
1 . 229E अल्फा कोरोना वायरस
2 . NL63 अल्फा कोरोना वायरस
3 . OC43 बीटा कोरोना वायरस
4 . HKU1 बीटा कोरोना वायरस
कोरोना वायरस के इन चारो रूपों में सारे लक्षण वही थे जो एक आम फ़्लू में पाए जाते हैं ये लक्षण थे सर्दी, ख़ासी और बुखार और फैलने के साथ साथ फेफड़ो में इन्फेक्शन भी हो जाता था। लेकिन 2002 में रिसर्च द्वारा पता चला कि ये वायरस दिखता तो निमोनिया की तरह था परन्तु था उस से भी कहीं ज्यादा खतरनाक।
नवंबर 2002 SARS - Cov चमगादड़ों से इंसानो में आ गया था। कोरोना वायरस का ये पहला रोग था जिसने इंसानों के लिए खतरे की घंटी बजायी थी। ये वायरस दक्षिणी चीन से फैला था पहले चमगादड़ के साथ इंसानों में आया और फिर सारी दुनिया में फैल गया। परन्तु उस समय इस बिमारी का रोकथाम 2 तरीकों से किया गया पहला था बचाव करना और दूसरा आम फ़्लू की दवाई और ये दोनों ही फायदेमंद साबित हुए। लेकिन किसी को क्या पता था कि कुछ साल बाद यह अपना रूप फिर बदलने वाला था।
सितम्बर 2012 MERS-Cov ऊँटो से इंसानो में फैला था। यह वायरस चीन में नहीं बल्कि अरब देशो से फ़ैला था। देखते ही देखते 37 देशो में फ़ैल गया। तब भी इस वायरस को रोकने का एक ही उपाय था वो है रोकथाम, जो उस वक़्त हो गयी लेकिन ये वायरस आज तक जिन्दा है। 2019 में भी इसके 200 से अधिक मामले सामने आये थे। इसी वजह से कोरोना वायरस को लेकर रिसर्च दुनिया के तमाम देशोँ में होने लगी।
कोरोना जैसे वायरस से आगाह करने वाले एक वैज्ञानिक थे। माइकल लेविट, जिन्हें 2013 नोबेल पुरूस्कार मिला। माइकल लेविट ने ये आशंका जताई थी की चीन से फैलने वाले वायरस का विनाशकारी प्रकोप 2019-20 में देखने को मिल सकता है। इससे स्थानीय स्तर पर 3 हजार से ज्यादा लोग मारे जा सकते हैं। इसके बारे में सचेत रहने की जरुरत है।
दिसंबर 2019 SARS-COV-2 आज का कोरोना वायरस है जिसे COVID-19 कहा जा रहा है भयानक स्थिति पैदा कर चुका है। कोरोना वायरस को लेकर रिसर्च चीन में पहले से चल रही थी। चीन के वुहान की बायो लैब इस रीसर्च के लिए मशहूर थी। इसे WHO के साथ-साथ अमेरिका जैसे देशों की भी फंडिंग मिलती रही।
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