बृजेंद्र काला की शॉर्ट फिल्म मिलेंगे जन्नत में रिलीज के लिए तैयार
बृजेंद्र काला की शॉर्ट फिल्म मिलेंगे जन्नत में रिलीज के लिए तैयारRaj Express

बृजेंद्र काला स्टारर शॉर्ट फिल्म 'मिलेंगे जन्नत में' रिलीज के लिए तैयार

समीर इकबाल पटेल ने मुस्लिम समाज की एक धार्मिक मान्यता पर शॉर्ट फिल्म बनाई है और तीस मिनट की अवधि वाली इस शॉर्ट फिल्म का नाम है "मिलेंगे जन्नत में"।

राज एक्सप्रेस। समाज में घटती कई घटनाओं व रिवाजों को कहानी में पिरोकर रुपहले पर्दे पर सिनेमा के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। "भाभी जी घर पर हैं", "ये चंदा कानून है" आदि हास्य धारावाहिकों में अपनी लेखनी का कमाल दिखा चुके समीर इकबाल पटेल ने मुस्लिम समाज की एक धार्मिक मान्यता पर शॉर्ट फिल्म बनाई है और तीस मिनट की अवधि वाली इस शॉर्ट फिल्म का नाम है "मिलेंगे जन्नत में"। इस शॉर्ट फिल्म की प्रेरणा उन्हें अपनी ही जिंदगी में घटी एक घटना से मिली है।

मुस्लिम संप्रदाय में महिलाओं को कब्रिस्तान में दाखिल होने की इजाज़त नहीं है। इस रिवाज पर यह शॉर्ट फिल्म बनाने का ख्याल कैसे आया? इस बारे में समीर कहते हैं," पिछले साल जुलाई माह में मेरी मां का इंतेकाल हुआ था और उनके जनाजे में मेरी बहन भी शामिल हुई थी। वह कब्रिस्तान के दरवाजे पर रुक गयी और अंदर नहीं गई। उसने वहीं से सुपुर्द-ए-खाक की रस्म को अंजाम होते देखा और फातिया पढ़ अपनी मां को विदाई दी। मां की कब्र पर फूल चढ़ाने के लिए मैं कुछ दिनों तक कब्रिस्तान जाता रहा और वहां अक्सर महिलाओं को कब्रिस्तान के बाहर खड़ी रहकर अपने निकट जनों को विदा करते देखा। एक रोज मेरी नजर वहां लगे एक बोर्ड पर गई जिस पर महिलाओं को कब्रिस्तान के अंदर दाखिल न होने का संदेश था। यह देख मेरे दिल में सवाल उठा कि महिलाओं को कब्रिस्तान के अंदर दाखिल होने की इजाजत क्यों नहीं है। इसका जवाब पाने के लिए मैं कई मौलवियों से मिला और धार्मिक किताबों में उसका उत्तर जानना चाहा पर कहीं कोई जवाब नहीं मिला। मेरे एक रिश्तेदार सउदी अरब में रहते हैं। उनके जरिए भी इसका जवाब खोजने का प्रयास किया पर कहीं कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। हां, मिले वो तर्क जो कि अविश्वसनीय थे और कुछ तो हास्यास्पद भी। फिर ख्याल आया कि क्यों न इस सवाल को फिल्म के माध्यम से समाज के समक्ष रखा जाए और मैंने कहानी पर काम करना शुरू किया और जब निर्माता दीपक जयलवल को फिल्म के विषय के बारे में पता चला तो वे फिल्म का निर्माण करने को तैयार हो गए"।

इस शॉर्ट फिल्म में नामी अदाकार बृजेंद्र काला द्वारा सुलेमान की भूमिका निभाई गई है और क़ब्र खोदना उनका पेशा है। फिल्म में एक ऐसी बेटी की कहानी पेश की गई है जो कब्रिस्तान के गेट पर खड़ी रहकर अपनी मृतक मां की अंतिम विधि देखती है। बेटी शाहीन की यह भूमिका रिवा अरोरा द्वारा निभाई है है। रिवा पूर्व में फिल्म "मोम" में अभिनय कर चुकी हैं और "उरी" में नन्ही सुहानी की भूमिका में उन्होंने दर्शकों की आँखें नम कर दी थी।

फिल्म की शूटिंग के लिए जब समीर ने एक कब्रिस्तान के कर्ताधर्ता से बातचीत की तो उन्हें इजाज़त मिल गयी पर बाद में इजाज़त वापस ले ली गई। नतीजतन कब्रिस्तान का सेट खड़ा कर शूटिंग की गयी। समीर जब फिल्म के विषय को लेकर रिसर्च कर रहे थे तब यह पता चला कि पाकिस्तान समेत कई इस्लामिक देशों में महिलाओं को कब्रिस्तान के अंदर दाखिल होने की इजाज़त है। भारत व सउदी अरब में उन्हें इजाज़त नहीं है। भारत में शिया मुस्लिम में इजाज़त है पर सुन्नी संप्रदाय की महिलाएं कब्रिस्तान में दाखिल नहीं हो सकती।

फिल्म "द कश्मीर फाइल्स" व "द ताश्कंद फाइल्स" के कैमरामेन उदयसिंह मोहिते की फोटोग्राफी से सजी यह फिल्म ओटीटी पर प्रदर्शित होगी और चूंकि फिल्म के विषय में अंतरराष्ट्रीय अपील है तो यह फिल्म सब टाइटल के तहत कई विदेशी भाषाओं में भी रिलीज होगी।

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