Vikram Batra Death Anniversary
Vikram Batra Death AnniversarySyed Dabeer Hussain - RE

कारगिल हीरो के नाम से जाने जाते थे कैप्टन विक्रम बत्रा, जानिए उनकी शहादत की कहानी

घायल होते हुए भी वे लगातार दुश्मनों से लड़ते रहे और दुश्मनों पर ग्रेनेड से हमला कर उन्हें मार गिराया। लेकिन इस दौरान अधिक घायल होने के चलते विक्रम बत्रा शहीद हो गए।

Vikram Batra Death Anniversary : जब कभी देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले शहीदों का जिक्र किया जाता है, तो उनमें एक नाम कैप्टन विक्रम बत्रा का भी शामिल होता है। यह एक ऐसा नाम है जिसे सुनकर दुश्मनों के पैर भी थर-थर कांपने लग जाते थे। कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल युद्ध के दौरान जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन का नेतृत्व किया था। इस दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे से कारगिल की कई चोटियों को मुक्त कराने के लिए एक ऑपरेशन शुरू किया था। जिसमें कैप्टन विक्रम बत्रा ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इस दौरान दुश्मनों से लड़ते हुए वे बुरी तरह से जख्मी हो गए और शहीद हो गए। आज यानि 7 जुलाई कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत का दिन है। आज भले ही विक्रम बत्रा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके साहस की कहानियां आज भी युवाओं में नया जोश भर देती हैं। चलिए जानते हैं कैप्टन के बारे में।

विक्रम बत्रा और उनका जज्बा

बता दें कि विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितम्बर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। उनका स्कूल सेना छावनी इलाके में था। जिसके चलते वे रोजाना जवानों को नजदीक से देखते और उनकी वीरता की कहानियां सुनते थे। इसके बाद उनका ध्यान देश सेवा की ओर बढ़ने लगा। हालांकि साल 1995 में उन्हें मर्चेंट नेवी के लिए चयनित किया गया, लेकिन उन्होंने नेवी को ना चुनकर पंजाब यूनिवर्सिटी से एमए में एडमिशन ले लिया। मगर जल्द ही उन्हें कॉलेज भी छोड़ना पड़ा। क्योंकि साल 1996 में उनका चयन सेवा चयन बोर्ड द्वारा हो गया और वे भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल हो गए।

भारत ने कहा ‘शेरशाह’

अपना प्रशिक्षण खत्म होने के बाद 6 दिसम्बर 1997 को विक्रम बत्रा भारतीय सेना में जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में बतौर लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया। यहाँ से कुछ दिनों तक यंग ऑफिसर्स कोर्स पूरा करने के लिए वे मध्य प्रदेश में रहे और वापस आकर फिर से बटालियन को ज्वाइन किया। इसके बाद विक्रम बत्रा और उनकी टुकड़ी को 1 जून 1999 को कारगिल युद्ध के लिए भेजा गया। इस दौरान उनका जिम्मा सबसे अहम चोटी 5140 को पाकिस्तान से कब्ज़ा मुक्त करवाना था। कैप्टन बत्रा ने बिना दुश्मनों के भनक लगे उनके ठिकाने पर हमला बोल दिया और 20 जून 1999 को इस चोटी पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। इस जीत के साथ ही विक्रम बत्रा को पूरे भारत में उनके कोड नेम शेरशाह के नाम से जाना जाने लगा।

विक्रम बत्रा की शहादत

लेकिन उनकी लड़ाई यहीं नहीं रुकी। 7 जुलाई 1999 को विक्रम बत्रा की बटालियन को चोटी 4875 पर कब्ज़ा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस चोटी तक पहुँचने का रास्ता खड़ी ढलानों से होकर गुजरता था। इसके बावजूद विक्रम बत्रा ने दुश्मनों के 5 सैनिकों को मार गिरा। लेकिन वे खुद भी इस गोलीबारी में जख्मी हो गए। हालांकि घायल होते हुए भी वे लगातार दुश्मनों से लड़ते रहे और दुश्मनों पर ग्रेनेड से हमला कर उन्हें मार गिराया। लेकिन इस दौरान अधिक घायल होने के चलते विक्रम बत्रा शहीद हो गए।

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