Chhatrapati Shivaji Maharaj Punyatithi
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Chhatrapati Shivaji Maharaj Punyatithi : जानिए शिवाजी महाराज को कब और क्यों दी गई थी ‘छत्रपति’ की उपाधि?

शिवाजी महाराज ने अपना पूरा जीवन सनातन धर्म की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया था। साल 1960 में आज ही के दिन एक बीमारी के चलते उनका निधन हो गया था। आज उनकी 343वीं पुण्यतिथि है।
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Chhatrapati Shivaji Maharaj Punyatithi : जब भी भारतीय इतिहास के महान राजाओं या योद्धाओं का जिक्र होता है, उनमें छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वीर योद्धा, कुशल शासक, सैन्य रणनीतिकार और मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को पुणे के पास स्थित शिवनेरी के दुर्ग में हुआ था। उनका पूरा नाम शिवाजी राजे भोंसले था। उनके पिता का नाम शाहजी भोसले जबकि माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी महाराज ने अपना पूरा जीवन सनातन धर्म की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया था। उनकी बहादुरी की तो उनके विरोधी भी प्रशंसा करते थे। हालांकि साल 1960 में आज ही के दिन एक बीमारी के चलते उनका निधन हो गया था। आज उनकी 343वीं पुण्यतिथि है। इस मौके पर हम शिवाजी महाराज के उस बहादुरी भरे किस्से के बारे में जानेंगे, जिसके चलते उन्हें ‘छत्रपति’ की उपाधि से नवाज़ा गया था।

आदिलशाह का षड्यंत्र :

दरअसल शिवाजी ने बीजापुर और मुगलों के खिलाफ युद्ध के दौरान अपने युद्ध कौशल का ऐसा परिचय दिया कि बीजापुर के शासक आदिलशाह तक भी उनके वीरता के चर्चे होंगे लगे। ऐसे में आदिलशाह ने एक षड्यंत्र के तहत उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बनाई। हालांकि शिवाजी को आदिलशाह के षड्यंत्र के बारे में पहले ही पता चल गया था, लेकिन उनके पिता शाहजी भोसले को आदिलशाह ने बंदी बना लिया था।

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पिता को कैद से छुड़ाया :

जब शिवाजी को पता चला कि उनके पिता को आदिलशाह ने बंदी बना लिया है तो उन्होंने तुरंत ही उन्हें छुड़ाने का फैसला किया। सबसे पहले तो उन्होंने उस जेल का पता लगाया, जहां उनके पिता को आदिलशाह ने बंदी बनाकर रखा था। इसके बाद उन्होंने हमला करके पहले अपने पिता को मुक्त कराया और उसके बाद पुरंदर और जावेली के किलों पर भी अपना अधिकार कर लिया।

औरंगजेब ने दिया धोखा :

जब मुगलों को लगा कि वह शिवाजी के युद्ध के मैदान में नहीं हरा पाएंगे तो उन्होंने शिवाजी को पकड़ने के लिए दोस्ती का जाल बुना। औरंगजेब ने पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए शिवाजी के साथ पुरंदर संधि की। इस संधि के तहत शिवाजी को 24 किले मुगलों को देने पड़े। इस संधि के बाद औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाया और धोखे से बंदी बना लिया। हालांकि वह ज्यादा दिनों तक शिवाजी को अपनी कैद में नहीं रख सका। शिवाजी जल्द ही वहां से बचकर निकल गए।

ऐसे मिली ‘छत्रपति’ की उपाधि :

औरंगजेब की कैद से छूटने के बाद शिवाजी ने उसकी सेना के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और पुरंदर संधि के तहत दिए हुए 24 किलो को वापस जीत लिया। इसके बाद 6 जून 1974 को रायगढ़ के किले में शिवाजी का राज्याभिषेक किया गया। इस दौरान उनकी बहादुरी को देखते हुए उन्हें ‘छत्रपति’ की उपाधि दी गई। इसके बाद से ही उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से जाना जाने लगा।

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