जनता को कम मत आंकिए : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
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जनता को कम मत आंकिए : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि राजनीतिक दलों को आम जनता की समझ को कम नहीं आंकना चाहिए। यह जनता सब कुछ जानती हैं और पहचानती है।

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद में सामान्य कामकाज नहीं होने पर कड़ी चिंता व्यक्त करते हुए आज कहा कि राजनीतिक दलों को आम जनता की समझ को कम नहीं आंकना चाहिए।

श्री धनखड़ ने बुधवार को भारतीय लोक प्रशासन संस्थान में डॉ. राजेंद्र प्रसाद व्याख्यानमाला कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि संसद पर भारी भरकम धन खर्च होता है और उसे जिस काम के लिए नियत किया गया है, वह उस काम को नहीं कर पा रही है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को आम जनता की समझ को कम नहीं आंकना चाहिए। यह जनता सब कुछ जानती हैं और पहचानती है।

मैं इस देश के राजनीतिक समुदाय से अपील करता हूं‌ कि लोगों की समझ को कभी कम मत आंकिए। वे सब जानते हैं कि क्या हो रहा है, वे बहुत समझदार हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

गौरतलब है कि संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कई मुद्दों को लेकर गतिरोध बना हुआ है और अभी तक सामान्य कामकाज संभव नहीं हो पाया है।

श्री धनखड़ ने कहा कि संसद में कामकाज नहीं होने के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जनप्रतिनिधियों को अपना कर्तव्य भले भली भांति पूर्ण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति के लिए संसद से बड़ी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई दूसरा स्थान नहीं हो सकता। इसी कारण से सांसदों को दीवानी और आपराधिक कार्रवाई से छूट प्रदान की जाती है। उन्होंने कहा कि यह अनिवार्य है कि विधानमंडल के सदस्य अपने विधायी दायित्वों और पार्टी बाध्यताओं के बीच अंतर करें। राजनीतिक रणनीति के रूप में लंबे समय तक व्यवधान और गड़बड़ी की सराहना नहीं की जा सकती। यह लोकतंत्र के विपरीत है और जो हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करता है, वह राजनीतिक रणनीति कैसे हो सकती है।

उन्होंने कहा कि हमारे विधायी निकायों को नेतृत्व प्रदान करना चाहिए, सार्वजनिक नीति के लिए वैचारिक रूपरेखा निर्धारित करनी चाहिए और समाज के व्यापक कल्याण के लिए लोक प्रशासन का मार्गदर्शन करना चाहिए। लोकतंत्र के मंदिर - विधानमंडलों में, जहां बहस मुख्य होनी चाहिए, अगर वे व्यवधान, अशांति हैं, तो आसपास के लोग खालीपन को भरने के लिए होंगे। यह लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक प्रवृत्ति होगी।

उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद की एक उक्ति-

“एक मशीन की तरह एक संविधान एक बेजान चीज है। यह उन लोगों के कारण जीवन प्राप्त करता है जो इसे नियंत्रित करते हैं और इसे संचालित करते हैं, और भारत को आज ईमानदार व्यक्तियों के एक समूह से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए जो उनके सामने देश का हित रखेंगे।”

का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें अपनी स्वतंत्रता के इस अमृत काल में राजेंद्र बाबू की गंभीर टिप्पणियों की पृष्ठभूमि में एक ईमानदार मूल्यांकन करना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्र के तीनों अंग संविधान से वैधता प्राप्त करते हैं। यह उम्मीद की जाती है कि ये तीनों अंग संविधान की प्रस्तावना में वर्णित संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक सहयोगी तालमेल विकसित करेंगे।संवैधानिक शासन तीन अंगों के बीच स्वस्थ परस्पर क्रिया में गतिशील संतुलन प्राप्त करने के बारे में है।विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच हमेशा मुद्दे रहेंगे, क्योंकि हम गतिशील समय में हैं। लेकिन इन सभी मुद्दों को एक सुनियोजित तरीके से संविधान की भावना को ध्यान में रखते हुए निपटाया जाना चाहिए। इसके लिए टकराव नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक राजनीति मुख्य रूप से निर्वाचित विधायिका को कानून बनाने की शक्ति प्रदान करती है जो लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को दर्शाती है। उन्होंने कहा, “मैं कभी भी संदेह में नहीं रहा, न तो राज्यसभा और न ही लोकसभा सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का विरोध कर सकती है, जो संसद का काम नहीं है, यह न्यायपालिका का अनन्य क्षेत्र है। इसी प्रकार, कार्यपालिका और विधायिका के लिए कुछ विशेषाधिकार संरक्षित हैं। इन संस्थानों को अपने संबंधित क्षेत्रों का ईमानदारी से पालन करने की आवश्यकता है। जनता के जनादेश की प्रधानता उनके प्रतिनिधियों के माध्यम से एक वैध मंच पर परिलक्षित होता है, और मेरे अनुसार यह अनुल्लंघनीय है।”

उन्होंने कहा कि विधान संसद का विशेष विशेषाधिकार है और किसी अन्य को इसका विश्लेषण, मूल्यांकन या हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। विधायिका को कमजोर करने का कोई भी प्रयास एक ठीक नहीं होगा और नाजुक संतुलन को बिगाड़ देगा।

उन्होंने कहा कि एक ऐसा तंत्र विकसित करने की जरूरत है जिसमें संस्थानों के शीर्ष नेतृत्व आपस में विचार विमर्श कर सकें। इससे देश के लिए बहुत आवश्यक सौहार्द उत्पन्न होगा।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “मैं, राज्यसभा के सभापति के रूप में आश्चर्य करता हूं कि इसका क्या हुआ। किसी भी बुनियादी ढांचे का आधार कानून बनाने में संसद की सर्वोच्चता होनी चाहिए। इसका अर्थ जनता की सर्वोच्चता है।

उन्होंने कहा कि भारत असाधारण गति से प्रगति कर रहा है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत है। उन्होंने कहा कि ऐसे कुछ लोग हैं जो भारत की प्रगति और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पसंद नहीं करते हैं। ऐसे लोग सोशल मीडिया आदि पर सक्रिय है। ऐसे लोगों से सतर्क रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमारे कुछ अरबपति उद्योगपति ऐसे संस्थानों में कंपनी सामाजिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत धन देते हैं। फिर यह संस्थान भारत विरोधी सेमिनार आयोजित करते हैं। उन्होंने कहा कि न्यायिक निर्णय को राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए।

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