किसान दुनिया के सच्चे संरक्षक : द्रौपदी मुर्मु
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किसान दुनिया के सच्चे संरक्षक : द्रौपदी मुर्मु

जैव विविधता के क्षेत्र में भारत पौधों और प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला से संपन्न देशों में से एक है। भारत की यह समृद्ध कृषि-जैव विविधता वैश्विक समुदाय के लिए अनुपम निधि रही है।
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हाइलाइट्स :

  • किसान अधिकारों पर पहली वैश्विक संगोष्ठी का उद्घाटन किया।

  • कृषक समुदाय ने ही प्रकृति के उपहार कृषि जैव विविधता को बचाकर रखा है।

  • जैव विविधता के क्षेत्र में भारत पौधों और प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला से संपन्न देशों में से एक है।

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा है कि किसानों ने मानवता को मिले प्रकृति के उपहार कृषि जैव विविधता को सदियों से बचाकर रखा है इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं कि किसान ही इस दुनिया के सच्चे संरक्षक हैं।

राष्ट्रपति मुर्मु ने मंगलवार को यहां किसान अधिकारों पर पहली वैश्विक संगोष्ठी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि दुनिया का कृषक समुदाय इसका असली संरक्षक है क्योंकि उसने ही प्रकृति के उपहार कृषि जैव विविधता को बचाकर रखा है। उन्होंने कहा कि सभी को फसलों, पौधों तथा प्रजातियों की विभिन्न किस्मों की रक्षा करनी चाहिए और उनके संरक्षण के किसानों के प्रयास की सराहना की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इन वनस्पतियों का संरक्षण सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

इस संगोष्ठी का आयोजन खाद्य और कृषि संगठन, रोम के खाद्य एवं कृषि पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि सचिवालय द्वारा किया जा रहा है।

राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि भारत विविधता से भरपूर विशाल देश है जिसका क्षेत्रफल विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत है लेकिन विश्व के पौधों की विभिन्न किस्मों और जानवरों की सभी दर्ज प्रजातियों का 7 से 8 प्रतिशत भारत में मौजूद है। उन्होंने कहा कि जैव विविधता के क्षेत्र में भारत पौधों और प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला से संपन्न देशों में से एक है। भारत की यह समृद्ध कृषि-जैव विविधता वैश्विक समुदाय के लिए अनुपम निधि रही है। उन्होंने कहा कि हमारे किसानों ने कड़े परिश्रम और उद्यमिता से पौधों की स्थानीय किस्मों का संरक्षण किया है, जंगली पौधों को अपने अनुरूप बनाया है और पारंपरिक किस्मों का पोषण किया है। इससे फसल कार्यक्रमों को बल मिला है तथा मनुष्यों और पशुओं के लिए भोजन एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हुई है।

उन्होंने कहा कि कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास ने भारत को 1950-51 के बाद से खाद्यान्न, बागवानी, मत्स्य पालन, दूध और अंडे के उत्पादन को कई गुना बढ़ाने में योगदान दिया है। इसका राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि कृषि-जैव विविधता संरक्षकों और परिश्रमी किसानों, वैज्ञानिकों तथा नीति निर्माताओं के प्रयासों ने सरकार के समर्थन से देश में कई कृषि क्रांतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि प्रौद्योगिकी और विज्ञान जगत देश के विरासत ज्ञान के प्रभावी संरक्षक तथा संवर्द्धक के रूप में कार्य कर सकते हैं।

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