बर्थडे : हो गई है पीर पर्वत... लिखने वाले दुष्यंत कुमार के जीवन की खास बातें
राज एक्सप्रेस। हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए…ये कविता है भारत के दिवंगत कवि दुष्यंत कुमार की। जो हमें देश में कई बड़े मौकों पर असंतोष के फूटते स्वर के रूप में सुनने को मिल जाती हैं। दुष्यंत कुमार एक ऐसे कवि रहे है,जिनकी कविताएं सिस्टम को आईना दिखाती रही है। उनकी कलम में वह ताकत दिखाई देती थी जो सच को समाज के सामने लाती थी। ना उन्हें किसी बात का डर सताता था, ना वे किसी के सामने झुकते थे। वे बस अपनी कलम के माध्यम से अपने विचारों को निडर होकर जनता के सामने पेश कर दिया करते थे। आज उन्हीं दुष्यंत कुमार का जन्मदिवस है। तो चलिए बात करते हैं उनके बारे में।
दुष्यंत कुमार का शुरूआती जीवन :
दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितम्बर 1933 को राजपुर नवादा में हुआ था। मुरादाबाद से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद दुष्यंत कुमार ने एसएनएसएम इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। इसके बाद दुष्यंत ने चंदौसी के एमएस कॉलेज से स्नातक कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की। साथ में किरतपुर के इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य भी किया।
दुष्यंत कुमार ने की लेखन की शुरुआत :
मध्य प्रदेश के भोपाल में रहते हुए दुष्यंत कुमार ने ‘परदेसी’ उपनाम के साथ कविता और मुक्तक लेखन से शुरुआत की। हालांकि काव्ययात्रा की शुरुआत वे नहटौर से ही कर चुके थे। उनके इस उपनाम से जुड़ा एक किस्सा कुछ यूं है कि एमएस कॉलेज के पहले दिन जब प्रोफेसर सब छात्रों का परिचय ले रहे थे। तब दुष्यत ने कहा था, मैं परदेसी उपनाम से कविता लिखता हूं, लेकिन आगे प्रियतम बनने का इरादा है।
मंत्री-मुख्यमंत्री ने पूछी नाराजगी :
दुष्यंत कुमार को सरकार या अन्य ताकतों से कभी कोई भय नहीं रहा। वे मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरी करते हुए भी लेखन करते रहे। इस दौरान एक समय ऐसा भी आया जब वहां के तत्कालीन मंत्री और मुख्यमंत्री भी उनके घर पहुंचे और उनसे उनकी नाराजगी का कारण तक पूछा। लेकिन इस पर दुष्यंत कुमार का जवाब था, यदि आपको यह लेखन रास नहीं आ रहा तो नौकरी से निकालकर जेल भेज दीजिए।
दुष्यंत कुमार की कविताएं :
हो गई है पीर पर्वत-सी
बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं
अपाहिज व्यथा
आज सड़कों पर
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
गांधीजी के जन्मदिन पर
इनसे मिलिए
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे
अब तो पथ यही है
सूर्य का स्वागत
सूचना
सूर्यास्त: एक इम्प्रेशन
मापदंड बदलो
गीत का जन्म।
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