संस्कृत में अभ्यास करना गौरव की बात : आचार्य देवव्रत

संस्कृत में अभ्यास करना कोई हीनता या दीनता की बात नहीं बल्कि गौरव की बात है। संस्कृत ही तमाम भाषाओं की जननी है। आज कम्प्युटर भी संस्कृत भाषा को सबसे बेहतर समझता है।
संस्कृत में अभ्यास करना गौरव की बात : आचार्य देवव्रत
संस्कृत में अभ्यास करना गौरव की बात : आचार्य देवव्रतRaj Express

हाइलाइट्स :

  • संस्कृत ही तमाम भाषाओं की जननी है।

  • जो लोग संस्कृत भाषा नहीं जानते हैं वह उतने सौभाग्यशाली नहीं हैं।

  • धरती पर आए हैं तो एक इतिहास बनाएं, परिश्रमी और तपस्वी बनें।

सोमनाथ, गुजरात। राज्यपाल एवं कुलाधिपति आचार्य देवव्रत ने गुरूवार को यहां कहा कि संस्कृत वेदों की भाषा है, यह देवों की भाषा है। संस्कृत में अभ्यास करना कोई हीनता या दीनता की बात नहीं बल्कि गौरव की बात है। संस्कृत ही तमाम भाषाओं की जननी है। आज कम्प्युटर भी संस्कृत भाषा को सबसे बेहतर समझता है।

राज्यपाल देवव्रत की अध्यक्षता में श्री सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय का 16वां दीक्षांत समारोह आज वेरावल में आयोजित हुआ, जहां उन्होंने दीक्षांत सम्बोधन करते हुए यह उदगार व्यक्त किए। विद्यार्थियों को प्रेरणा देते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत सभी प्रकार से दक्ष भाषा है। इसी प्रकार यह खजाने से परिपूर्ण भाषा है। जो लोग संस्कृत भाषा नहीं जानते हैं वह उतने सौभाग्यशाली नहीं हैं।

गांधीजी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि गांधीजी कहा करते थे कि, "मैं संस्कृत नहीं जानता हूं, इसका मुझे रंज है।" यही संस्कृत की महत्ता को दर्शाता है।

राज्यपाल ने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वह युनिवर्सिटी से प्राप्त ज्ञान का उपयोग करें। जहां जल की आवश्यकता है, वहां जल संरक्षण के लिए कार्य करें, जहां वृक्षों की आवश्यकता है, वहां वृक्षारोपण के लिए कार्य करें, जहां दीन-दु:खी लोग हैं, वहां दीन-दु:खियों के लिए कार्य-सेवा करें और जहां जमीन बंजर है, वहां प्राकृतिक कृषि जैसे प्रयास कर समाजसेवा करें। धरती पर आए हैं तो एक इतिहास बनाएं, परिश्रमी और तपस्वी बनें। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव लाएं। उन्होंने कहा कि 'जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं।' अपने प्राप्त ज्ञान को उत्साह और उमंग से अन्य लोगों के साथ बांटें और अपने व्यक्तित्व में विद्यमान सभी श्रेष्ठ पहलुओं को उजागर करें।

हमारे वेद: ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद सहित परम्परागत शास्त्र संस्कृत भाषा में हैं, इस पर हमें गर्व होना चाहिए। संस्कृत ऋषि-मुनियों की भाषा है। संस्कृत के ज्ञाता के तौर पर इस भाषा के यदि आप जानकार हैं, तो आपको इसका गर्व होना चाहिए। हमारी गुरुकुल परम्परा में भी इसी भाषा से अध्यापन और अध्ययन करवाया जाता था। आज डिग्री प्राप्त करके जाने वाले विद्यार्थियों में, जिस उद्देश्य से वह विद्या प्राप्त करने आए थे, वह प्राप्त करने की सार्थकता होनी चाहिए। डिग्री प्राप्त करने के बाद समाज और देश की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का दायित्व विद्यार्थियों का है। इसके सिवाय आचार्य देवो भव:, मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव: की परम्परा का निर्वहन करने की जिम्मेदारी भी आप पर ही है।

राज्यपाल ने कहा कि यहां से उत्तीर्ण होकर जाने वाले विद्यार्थियों के पास उनके द्वारा प्राप्त ज्ञान रहेगा। वह जिन लोगों के सम्पर्क में आएं, उनके साथ सत्य का आचरण ही करें क्योंकि सत्य प्रकाश की तरह है। सत्य ही सार्वभौमिक सिद्धांत है, जो दुनिया में टिकाऊ है, इस संसार में जिन पर तंत्र चलता है। स्कूल-कॉलेज युनिवर्सिटी में अभ्यास हो या फिर कोर्ट में जज-वकील दलील कर रहे हों, यह तमाम सत्य की खोज के लिए ही है। विश्व में असत्य भी चलता है और खोटा सिक्का भी चलता है लेकिन वह तभी तक चलता है जब तक उसका पता नहीं चलता। जब पता चलता है कि वह नकली था, तब वह खत्म हो जाता है। अंतिम सत्य तो सत्य ही है। असत्य का पहाड़ चाहे जितना बड़ा हो, सत्य उसे धीरे-धीरे खोद ही डालता है। सत्य का आचरण करने से इस पृथ्वी पर सुख, शांति, निडरता, संतोष और आनन्द का वातावरण बन जाएगा।

वेद विज्ञान का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आज की पृथ्वी दो अरब वर्ष पुरानी है। पश्चिम के कुछ वैज्ञानिक कहा करते थे कि पृथ्वी चपटी है, वर्गाकार है। परंतु हमारे ऋषि-मुनियों के शास्त्र दर्शाते हैं कि समग्र पृथ्वी गोल है और इसी कारण से इसके अभ्यास को भी हम 'भू-गोल' कहते हैं। इसमें 'गोल' शब्द अंकित है। ऐसी दुर्लभ और ऐतिहासिक ज्ञान विरासत पर हमको गर्व होना चाहिए।

विद्यार्थियों को सीख देते हुए उन्होंने कहा कि आप हासिल की गई विद्या जनमानस तक नहीं पहुंचा सकते और उनके जीवन के अंधकार को मिटा नहीं सकते तो इस विद्या का कोई मतलब नहीं है। विद्या प्रकाशवान उजाला फैलाने वाली होनी चाहिए। इस विद्या के ज्ञान के साथ सामाजिक जीवन में जहां भी अधूरापन है, उसे पूर्ण करने का कार्य कर समाज को दिव्य, भव्य और गुणवान बनाने का कर्तव्य निभाना है। जिस प्रकार बादल समुद्र के पानी को मीठा बनाकर जहां जरूरत होती है, वहां बरसाते हैं, उसी प्रकार आप अपने ज्ञान को जहां जरूरत हो, वहां पर बांटें और ज्ञान का प्रकाश फैलाएं।

गुजरात ने समय-समय पर देश को अनेक महानुभाव दिए हैं। इसका उल्लेख करते हुए राज्यपाल ने कहा कि आज यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी भारत की भव्य और दिव्य विरासत को बचाने के साथ ही भौतिक रूप से भी उन्नति के मार्ग पर अग्रसर बना रहे हैं। एक बड़ा कार्य पूरा होते ही वह दूसरा बड़ा कार्य हाथों में ले लेते हैं। देश को वर्ष 2047 तक विकसित बनाने के लिए हमें जिम्मेदार नागरिक के तौर पर अपना कर्तव्य निभाकर योगदान देना चाहिए।
राज्यपाल ने एक अखबार में छपी जामनगर के युवक की बात का उल्लेख करते हुए कहा कि कैसे एक सामान्य किसान ने अपनी पत्नी के गड्ढे में गिरने से हुई दु:खद मृत्यु से भी प्रेरणा ली है। यह युवा समाज के हित के लिए अपनी मेहनत के 21 लाख रुपए खर्च कर प्रदेश में गड्ढे भरने का कार्य कर रहा है। इस भावनात्मक बात से सीख लेने की उन्होंने सभी से अपील की कि किस प्रकार एक जिम्मेदार नागरिक बना जा सकता है।

शिक्षा राज्यमंत्री प्रफुल्लभाई पानशेरिया ने वर्च्युअली सम्बोधन से सभी को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि संस्कृति को जीवंत रखने का भगीरथी प्रयास है संस्कृत भाषा। उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी ने इस युनिवर्सिटी की नींव रखी थी, तब इस दृष्टि से रखी थी कि संस्कृत का जतन होगा तो संस्कृति का जतन होगा।

इस दीक्षांत समारोह में गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भाग्येश झा, सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति सुकांत कुमार सेनापति ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संस्कृत युनिवर्सिटी में चल रहे विभिन्न अभ्यासक्रमों में से इस वर्ष शास्त्री (बी.ए.)-304, आचार्य (एम.ए.)-222, पीजीडीसीए-201, शिक्षा शास्त्री (बी.एड.)-54, तत्वाचार्य (एम.फिल.)-05 और विद्यावारिधि (पीएच.डी.)-11 सहित कुल 797 डिग्रियां विद्यार्थियों को प्रदान की गई।

इस दीक्षांत समारोह में 23 गोल्ड मेडल और 4 सिल्वर मेडल सहित 27 पद भी अर्पण किए गए। साथ ही, गोपालकृष्ण ट्रस्ट जूनागढ़ तथा संस्कृत युनिवर्सिटी के बीच हुए एम.ओ.यु. के अंतर्गत प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी व्याकरण विषय के संस्कृत विद्वान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला को 'श्रीमती सरस्वतीबेन जयंतीलाल भट्ट संस्कृत विद्वान' 2024 पुरस्कार प्रदान किया गया।
इस अवसर पर गुजरात विद्यापीठ के कुलपति हर्षद पटेल, विभिन्न विद्याशाखाओं के डीन, प्राध्यापकगण, विद्यार्थी और अभिभावक भारी संख्या में उपस्थित थे।

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