किसानों को प्राकृतिक कृषि ही बचा सकती है : आचार्य देवव्रत
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किसानों को प्राकृतिक कृषि ही बचा सकती है : आचार्य देवव्रत

गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के खिलाफ भारतवर्ष की जमीन नागरिकों के स्वास्थ्य, पानी, पर्यावरण और किसानों को प्राकृतिक कृषि ही बचा सकती है।

अहमदाबाद, गुजरात। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने आज कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के खिलाफ भारतवर्ष की जमीन नागरिकों के स्वास्थ्य, पानी, पर्यावरण और किसानों को प्राकृतिक कृषि ही बचा सकती है।

देवव्रत ने साणंद कृषि यूनिवर्सिटी में गुजरात नेचुरल फार्मिंग एंड ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हालोल द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षक शोध कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि प्राकृतिक कृषि धार्मिक भाव नहीं बल्कि शुद्ध विज्ञान है। इस कार्यशाला में पिछले तीन वर्षों से प्राकृतिक खेती करने वाले 600 किसान भाग ले रहे हैं। इस अवसर पर उन्होंने प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया।

उन्होंने कहा कि धरती माता को बचाने के लिए रासायनिक पद्धति से होने वाली खेती हमें छोड़नी पड़ेगी। रासायनिक खेती से जमीन की उर्वरकता घटी है। इतना ही नहीं इसमें से उत्पन्न होने वाले धनधान्य भी जहरयुक्त बने हैं जिसका नागरिकों के स्वास्थ्य पर व्यापक असर हो रहा है और वह कैंसर हृदय रोग जैसी असाध्य बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। रासायनिक कृषि पद्धति से जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन में कमी आती है। रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के अतिउपयोग के कारण जमीन बंजर होती जा रही है। प्राकृतिक कृषि पद्धति में जीवामृत और घनजीवामृत द्वारा जमीन में जीवाणु, केंचुए और मित्रजीव असंख्य तादाद में नजर आते हैं। इनके कारण जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन में बढ़ोतरी होती है और जमीन उत्पादक एवं उपजाऊ बनती है।

राज्यपाल ने इन सभी बातों को उदाहरण के साथ समझाते हुए कहा कि गुजरात में प्राकृतिक खेती का दायरा बढ़ाने के लिए आगामी एक वर्ष में राज्य की तमाम तहसीलों में प्रति दस गांव में एक क्लस्टर बनाया जाएगा जिसमें 'आत्मा' के अधिकारियों को भी शामिल किया जाएगा। राज्य में बड़ी संख्या में किसान प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित हो, इसके लिए राज्यभर में 1400 मास्टर ट्रेनर तैयार किए जाएंगे। जो गांव में जाकर देसी प्रजाति की गाय आधारित प्राकृतिक खेती, जीवामृत घनजीवामृत बनाने के बारे में किसानों को प्रशिक्षित करेंगे।

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को उनके कृषि उत्पादों का उचित बाजार मूल्य मिले, इसके लिए प्रति 10 गांव में प्राकृतिक कृषि उत्पादन बिक्री केंद्र शुरू किए जाएंगे, जहां किसान अपने उत्पाद बेच सकेंगे। गुजरात आज तमाम क्षेत्र में आगे बढ़कर देश को दिशा दे रहा है। इसका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि क्षेत्र में गुजरात को समग्र देश में रोल मॉडल राज्य बनाया जाएगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि गुजरात प्राकृतिक कृषि क्षेत्र में सिरमौर बनकर देश के किसानों को भी प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित करने का बड़ा मार्गदर्शक साबित होगा।

राज्यपाल ने मानवता और जीव कल्याण के लिए आरंभ किए गए प्राकृतिक कृषि अभियान में सभी किसानों को आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ शामिल होकर धरतीमाता और कृषि उत्पादों को जहरमुक्त बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि का महत्व समझते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद आईसीएआर ने प्राकृतिक कृषि के संबंध में पाठ्यक्रम बनाया है जिसका गुजरात सहित देश की अन्य कृषि यूनिवर्सिटी में बीएससी और एमएससी कोर्स में समावेश किया गया है।

हिसार कृषि यूनिवर्सिटी के डॉ. बलजीत सहारण ने इस अवसर पर कहा कि खेती में बहुत ज्यादा रासायनिक खाद के उपयोग के कारण जमीन में सूक्ष्म जीवाणुओं का प्रमाण घट रहा है, जिससे ऑर्गेनिक कार्बन कम हुआ है। प्राकृतिक कृषि एक वैज्ञानिक पद्धति है। प्राकृतिक खेती से जमीन में सूक्ष्म जीवाणु का प्रमाण बढ़ता है। इतना ही नहीं तेजी से जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन में भी बढ़ोतरी होती है। जमीन में सूक्ष्म जीवाणुओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। वैज्ञानिक दृष्टीकोण समझते हुए इन जीवाणुओं का पालन पोषण करना जरूरी है।

गुजरात यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. सीके टिम्बडिया ने कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यशाला का उद्देश्य समझाते हुए उपस्थित सभी महानुभावों का स्वागत किया। अंत में आणंद कृषि यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. केबी कथिरिया ने सभी का आभार प्रदर्शित किया।

इस अवसर पर प्राकृतिक कृषि गुजरात के संयोजक प्रफुल्ल भाई सेंजलिया, कलेक्टर डॉ. डीएस गढवी, जिला विकास अधिकारी मिलिंद बापना, कृषि वैज्ञानिक और प्राकृतिक कृषि करने वाले किसान बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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