Khudiram Bose Death Anniversary
Khudiram Bose Death AnniversarySyed Dabeer Hussain - RE

पुण्यतिथि : जब देश के लिए महज 18 साल की उम्र में फांसी पर झूल गए खुदीराम बोस

बचपन से ही देशभक्ति के विचारों से ओतप्रोत खुदीराम बोस भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक हैं।

हाइलाइट्स :

  • खुदीराम बोस आजादी के लिए महज 18 साल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए थे।

  • साल 1908 में आज के दिन अंग्रेजों ने खुदीराम बोस को फांसी की सजा दी थी।

  • खुदीराम बोस बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों के थे।

Khudiram Bose Death Anniversary : आज के समय में 18 साल का लड़का आमतौर पर स्कूल या कॉलेज में पढ़ाई करते हुए अपने सुनहरे भविष्य के सपने देख रहा होता है। लेकिन भारत के इतिहास में एक लड़का ऐसा भी है, जो देश की आजादी के लिए महज 18 साल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गया था। भारत माता के उस सच्चे सपूत का नाम खुदीराम बोस है। बचपन से ही देशभक्ति के विचारों से ओतप्रोत खुदीराम बोस भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक हैं। साल 1908 में आज के दिन अंग्रेजों ने खुदीराम बोस को फांसी की सजा दी थी।

क्रांतिकारी विचारों के थे खुदीराम बोस

क्रांतिकारी खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था। बचपन में ही अपने माता-पिता को खो चुके खुदीराम बोस की परवरिश उनकी बड़ी बहन ने की थी। खुदीराम बोस बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों के थे। लॉर्ड कर्जन द्वारा 19 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन के फैसले ने खुदीराम बोस के मन में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश भर दिया। वह सत्येन बोस के नेतृत्व में देश की आजादी के आंदोलन में कूद पड़े।

15 साल की उम्र में हुए गिरफ्तार :

एक बार क्रांतिकारियों ने मिदनापुर में आयोजित एक मेले में अंग्रेजों के खिलाफ पर्चे बांटने की योजना बनाई। महज 15 साल के खुदीराम बोस उन पर्चों को बांटने के लिए मेले में पहुंचे। हालांकि किसी ने अंग्रेजों को इस बात की जानकारी पहले ही दे दी थी। जब एक अंग्रेज अफसर खुदीराम बोस को पकड़ने पहुंचा तो बोस ने उसके चेहरे पर घूंसा जड़ दिया। हालांकि बाद में बोस को पकड़ लिया गया। इसके बाद बोस को जब कोर्ट में पेश किया गया तो जज ने उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई।

18 साल की उम्र में हुई फांसी

8 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई। किंग्सफोर्ड पहले ही क्रांतिकारियों से डरकर मुजफ्फरपुर में अपना ट्रांसफर करवा चुके थे। ऐसे में बोस और चाकी भी मुजफ्फरपुर पहुंचे और एक दिन मौका मिलते ही किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक दिया। हालांकि उस समय किंग्सफोर्ड बग्घी में मौजूद नहीं था और एक दूसरे अंग्रेज अधिकारी की पत्नी और बेटी मारी गई। इसी मामले में अंग्रेजों ने 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी दे दी। जब खुदीराम को फांसी दी गई, तब उनकी उम्र महज 18 साल 8 महीने और 8 दिन थी।

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