जानिए पसमांदा मुस्लिम कौन हैं और भाजपा क्यों इन्हें अपने साथ लाना चाहती है?
राज एक्सप्रेस। बीते दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं से पसमांदा मुस्लिमों के बीच पहुंच बनाने के लिए कहा। इससे पहले जुलाई 2022 में भी पीएम मोदी ने पसमांदा मुस्लिमों को भाजपा से जोड़ने के लिए स्नेह यात्रा की घोषणा की थी। ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर पसमांदा मुस्लिम कौन हैं? और पीएम मोदी इन्हें क्यों भाजपा से जोड़ना चाहते हैं?
पसमांदा मतलब पिछड़े लोग :
दरअसल पसमांदा एक फारसी शब्द है। इसका मतलब ऐसे लोगों से है जो समाज में पीछे छूट गया है। भारत में पिछड़े और दलित मुस्लिमों को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है। हिंदुओं की तरह भारतीय मुस्लिमों में भी जातीय व्यवस्था है। मुस्लिमों के उच्च वर्ग को अशरफ जबकि ओबीसी और दलित मुस्लिम को पसमांदा कहते हैं। खास बात यह है कि भारतीय मुस्लिमों में पसमांदा मुस्लिमों की आबादी 80 फीसदी से ज्यादा है।
पीएम मोदी के संदेश का मतलब :
दरअसल देश की आजादी के बाद अगड़े मुस्लिम सामाजिक और आर्थिक तौर पर मजबूत हुए जबकि पसमांदा मुस्लिम पिछड़ते चले गए है। सियासत में भी इनका कोई खास प्रतिनिधित्व नहीं है। राजनीतिक पार्टियों ने इनका वोट लिया, लेकिन इनके उत्थान के लिए कोई खास काम नहीं किया। ऐसे में भाजपा को लगता है कि पूरे मुस्लिम समाज के बजाय पसमांदा मुस्लिम को जोड़ना ज्यादा आसान है।
वोट बैंक होगा मजबूत :
उत्तरप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को 8 फीसदी पसमांदा मुस्लिम का वोट मिला था। ऐसे में भाजपा को लगता है कि मुस्लिमों की आबादी के इस बड़े हिस्से में वह थोड़ी भी सेंधमारी कर पाई तो इससे ना सिर्फ उसके वोट बैंक में बढ़ोत्तरी होगी बल्कि विपक्षी पार्टियों के लिए भी यह बड़ा झटका साबित होगा।
छवि में होगा सुधार :
भाजपा के इस कदम को अपनी छवि सुधारने के रूप में भी देखा जा रहा है। दरअसल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भाजपा की छवि हिंदुत्व की विचारधारा वाली पार्टी की रही है। ऐसे में भाजपा पसमांदा मुस्लिम को अपने साथ जोड़कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को दुरुस्त कर सकती है।
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