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AIIMS Bhopal Research : 77 फीसदी युवा तनाव, 51% नशे के चलते कर रहे आत्महत्या

Psychological Autopsy Research: आत्महत्या के मामलों में 77 फीसदी केस ऐसे हैं, जिन्होंने तनाव के चलते मौत को गले लगा लिया। एम्स की रिसर्च में एक और चौकाने वाली बात सामने आई है।

भोपाल। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के फॉरेंसिक मेडिसिन और टॅक्सिकोलॉजी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने बढ़ते आत्महत्या के मामलों पर एक शोध (Research) किया है। इसकी रिपोर्ट (Report) में आत्महत्या के अलग-अलग कारण सामने आए हैं। आत्महत्या के मामलों पर मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी शोध (Psychological Autopsy Research) किया गया है। इस शोध का उदेश्य आत्महत्या के मामलों को रोकना और लोगों में बढ़ते तनाव को कम करना है।

एम्स डॉक्टरों द्वारा की गई इस रिसर्च में सामने आया है कि 19 से 40 साल के 79 प्रतिशत युवा आत्महत्या (Suicide) जैसे कदम उठा रहे हैं। इस आयु वर्ग के युवा (Youth) ज्यादा संवेदनशील होने के चलते आत्महत्या कर रहे हैं। वहीं एम्स की रिसर्च बताती है कि आत्महत्या केमामलों में 77 फीसदी केस ऐसे हैं, जिन्होंने तनाव के चलते मौत को गले लगा लिया। एम्स की रिसर्च में एक और चौकाने वाली बात सामने आई है। रिसर्च बताती है कि आत्महत्या करने वालों में 51 फीसदी ऐसे भी हैं, जो अलग-अलग तरह के नशा करते थे और नशा की इस प्रवृत्ति के चलते उन्होंने मौत को गले लगा लिया।

रिसर्च में आत्महत्या के 37 फीसदी मामलों में ऐसे लोग मिले हैं, जो आत्मघाती व्यवहार या जोखिम उठाने वाले थे। एम्स की यह रिसर्च मानसिक रोगियों का इलाज करने वाले अस्पतालों और अन्य संस्थानों के लिए उपयोगी साबित हो सकती है। इस रिसर्च से जुडे एम्स के डॉ. प्रोफेसर अनीत अरोड़ा का कहना है कि इस रिपोर्ट के आधार पर अवसाद पर रहने वाले और मादक पदार्थों का सेवन करने वालों का इलाज आसान हो जाएगा। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रोफेसर डॉ. अजय सिंह ने इस रिसर्च को ऐसे रोगियों के इलाज के लिए महत्वपूर्ण बताया है।

एम्स की टीम ने ऐसे की रिसर्च

आत्महत्या के मामलों की रिसर्च के लिए एम्स की टीम ने एक प्रश्नावली बनाई थी। इस प्रश्नावली के तहत आत्महत्या करने वालों के करीबी और रिश्तोदारों से बातचीत की गई है। इस बातचीत के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है। इस निष्कर्ष के बाद यह तथ्य सामने आए हैं। इस रिसर्च में एम्स के डॉक्टर डी दिव्य भूषण, डॉ. जयंती यादव, डॉ. अभिजीत रामदास रोजातकर, डॉ. संगीता मोहरगथेम और डॉ. अनीत अरोड़ा शामिल थे। यह रिसर्च हाल ही में प्रतिष्ठित पथमेड-इंडेक्स्ड जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंसेज इन रूरल प्रैक्टिस में भी प्रकाशित हुई है।

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