Anuppur : आदर्शों पर आधारित होगा गुरू पर्व
छत्तीसगढ़ की पावन भूमि पर जन्में सतनाम पंथ के प्रवर्तक प्रकृति के पुजारी सतगुरू संत शिरोमणि बाबा गुरू घासीदास जी के आदर्शो पर आधारित मानवता के संदेश गुरूवाणी को गुरुपर्व में 18 दिसम्बर से 31 दिसम्बर तक जन-जन तक पहुंचाने के लिए विशेष कार्यक्रम के तहत् जीवन के अनेक गतिविधियों व वास्तविक जीवन शैली से परिचय कराने के लिए रसौटा बलौदा जिला जांजगीर चांपा छ.ग. के लेखक संत पुनीराम गुरुजी का एक सार्थक प्रयास व पहल के माध्यम से समझाया है।
अनूपपुर, मध्यप्रदेश। 18 दिसम्बर से 31 दिसम्बर तक गुरु पर्व के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। सतगुरू घासीदास का जन्म छत्तीसगढ़ के वर्तमान जिला बलौदा बाजार के गिरौदपुरी ग्राम में सन् 1756 ई. को माता अमरौतिन पिता महंगूदास के घर जन्म हुआ था। गुरू घासीदास बचपन से ही चिंतन शील एकान्तवास व्यक्तित्व के धनी थे। जिस प्रकार से शरदऋतु में अमृत की वर्षा होती है, उसी समय गुरू घासीदास तपस्वी ज्ञानी संत का जन्म हुआ था। जो खेत खलिहान घर आंगन बाड़ी गली चौराहे जमे हुए मैले कुचैले होने पर जिस प्रकार से वर्षा के पानी से धुलकर साफ हो जाते हैं और नये पौधे ऊग आते हैं, ठीक उसी प्रकार से गुरु घासीदास के जन्म होने को छत्तीसगढ़ में माना जाता है। गुरू घासीदास ने सतनाम का एक पंथ चलाया और सतनाम को समझाया कि सतनाम क्या है।
जीव प्राणी स्वर के कारण जीवित है :
सतनाम चार अक्षर से मिलकर बना है पहला अक्षर स है जिसका अर्थ है 'स्वर' समस्त जीव प्राणी स्वर के कारण जीवित है। स्वर के बिना जीवन नहीं है। जो अपने स्वर को पहचान लेता है और उसका महत्व समझ जाता है। सभी जीव प्राणी श्वास लेते हैं और छोड़ते है इसकी जन्म के पूर्व माँ के गर्भ में समाते ही प्रारंभ हो जाता है उसी स्वर को संचालित करने के लिए तन का निर्माण माता के गर्भ में होता है। जिस दिन से तन बनना शुरू होता है उसका दूसरा नाम शरीर, तीसरा नाम देह का साधारण अर्थ है दिया हुआ। यह देह हमें माता पिता से प्राप्त होता है। सत कहने पर दूसरा अक्षर 'त' है, जिसका सीधा अर्थ तन अर्थात शरीर से है। अब 'स' अर्थात स्वर को 'त' अर्थात शरीर तन देह प्राप्त हो चुका है, जिसे जन्म लेने के लिए नौ महीने का समय लग जाता है। जन्म लेते ही बच्चा देखना सुनना बोलना शुरू कर देता है जैसे 2 शरीर का विकास होता है वैसे ही वह सीखना जानना पहचाना और अनुकरण करना शुरू कर देता है। बच्चा जैसे ही जन्म लेकर इस धरती में आता है तो उसका नाम करण किया जाता है। ना का अर्थ नहीं है अर्थात जन्म के पूर्व नहीं है जहाँ स्वर के लिए तन तैयार हुआ जो जन्म पूर्व नहीं था अब आ चुका है अर्थात शरीर और स्वर दोनों प्राप्त हो चुका है।
अपने आप को जानो :
इस लिए उसका नाम करण किया जाना है। नाम में अंतिम अक्षर 'म' है जिसका अर्थ माया से है। जो नहीं था वह आ गया है अर्थात बच्चा चाहे पुत्र हो या पुत्री हो जन्म लेकर आ गया है इसलिए माता पिता कुटुंब परिवार की माया हो गयी है। वही 'म' माया है। सतनाम का अर्थ हुआ कि जो हमें पूर्व में ज्ञात नहीं था आज वह हमारे पास हमारे साथ है। उसे जानों और पहचानों, उस पर अमल करो कि वह जो तुम्हारे पास नहीं था तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है उसी का नाम तो सतनाम है। बिना कारण कुछ भी उत्पन्न नहीं होता सभी का कारण मौजूद है, वह बाहर नहीं बल्कि स्वयं अपने पास है खोजता है वह भटक जाता है इसलिए सतगुरू घासीदास ने यह कहा था सतनाम को जानो अर्थात अपने आप को जानो, दूसरों को पहचानने के लिए स्वयं को जानना होगा स्वयं को पहचानना होगा तभी आप अन्य को अर्थात सभी को जान सकते हो।
सतगुरू का संकेत स्वयं के प्रति :
सतनाम को जानने की जरूरत है सतनाम का नाम जपने की पूजा पाठ करने की जरूरत नहीं है। जो इंसान स्वयं को जान लेता है वह सबको जान लेता है। यहाँ पूजा पाठ करने की क्या आवश्यकता है। जो स्वयं को नहीं जान पायेगा वह किसी के बहकावे में आकर भ्रम में फंस जाता है और पूजा पाठ नाम जाप करने लगता है। संत शिरोमणी गुरु घासीदास ने खुद कहा है कि मंदीरवा में का करे बर जाथे अपन घर के देव ला मना ले। सतगुरू का संकेत स्वयं के प्रति है और हम बाहर सतनाम को खोजते हैं। इसलिए सतनाम के चारों अक्षरों की व्याख्या करके संत पुनीराम आपको सतगुरू के संकेत को उपदेश को, शिक्षा को आप तक पहुंचा रहे हैं।
सतनाम कोई मंत्र तंत्र नहीं है :
संत बाबा गुरू घासीदास ने कहा था कि जो ज्ञान तुमको भटकाने का कार्य करता है उसके पीछे मत भागो थक जाओगे। सतनाम कोई मंत्र तंत्र नहीं है। आप श्वास ले रहे हो श्वास छोड़ रहे हो, तुम्हारे पास शरीर भी है जन्म के पहले तुम यहाँ नहीं थे और तुम्हारा कुछ भी नाम भी नही था, तुम्हारे कोई माता पिता भाई बहिन नाता रिस्ता संगी साथी कुछ भी नहीं था। जन्म लेकर आये तो ये धन दौलत माया परिवार सब कुछ हैं। इसी को जान लेना ही सतनाम है। जैसे आपका इस धरती मे आना हुआ है ठीक वैसे ही सभी जीव जन्तु पेड़ पौधे सबका आना हुआ है इसी को समझ कर जान लेना ही तो सतनाम है। आपमे और मुझमे कोई अंतर नहीं है। इसी बात को गुरुघासीदास ने मानव-मानव एक समान कहा है। आप स्वयं निर्णय करो कि आपका जन्म और मेरे जन्म के साथ ही साथ सम्पूर्ण सृष्टि के जन्म में क्या अंतर है अर्थात कोई अंतर नहीं है।
समानता और भाईचारा का संदेश :
मानव-मानव के बीच भेद भाव मानना मानवता का अपमान है यदि आप मानव-मानव से किसी प्रकार का वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था धर्म व्यवस्था के रूप में भेद भाव करते हैं तो यह सम्पूर्ण सृष्टि का अपमान है दोष है सबसे बड़ा पाप है। चाहे किसी भी देवी देवता और भगवान की पूजा पाठ कर लो कोई भी आपकी मान्यता को स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि आपने सृष्टि का अपमान किया है। जरा चिंतन करो समझो और जानो आपका शरीर मन और श्वास आपके लिए प्रयोग शाला है, घर परिवार प्रयोग शाला है आप खुद माता पिता होंगे या किसी के पुत्र पुत्री होंगे आपको सब पता है कभी भी जानकर अनजान मत बनो नहीं तो प्रकृति आपको जानता है पहचानता है प्रायश्चित करने से किसी देवी देवता की भगवान की पूजा करने से कुछ भी होने वाला नहीं है अपनी गलती मान लेता है वह अपना इलाज जान लेता है किसी के द्वार जाने की कोई जरूरत नहीं है। सतगुरू घासीदास का उपदेश समस्त मानव समाज को सच्चाई का ज्ञान देवें और समाज में स्वयं के लिए न्याय समानता और भाईचारा का संदेश देवें समस्त माता पिता, भाई बहनों को मेरा जय सतनाम।
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