आयुर्वेद से उपचार में भी मिल सकता है आयुष्मान योजना का लाभ
आयुर्वेद से उपचार में भी मिल सकता है आयुष्मान योजना का लाभसांकेतिक चित्र

आयुर्वेद से उपचार में भी मिल सकता है आयुष्मान योजना का लाभ

केंद्र की सहमति मिलने के बाद प्रदेश में आयुर्वेद पद्धति से यदि कोई व्यक्ति मान्यता प्राप्त अस्पतालों में इलाज कराता है तो इस पर होने वाले अधिकमत 5 लाख रु. तक का खर्च उठाने की जिम्मेदारी सरकार की होगी।

भोपाल, मध्यप्रदेश। प्रदेश में अब यदि कोई जड़ी-बूटी सहित अन्य प्राकृतिक औषधियों से उपचार कराता है, तो उस उपचार पर होने वाले खर्च को आयुष्मान योजना के दायरे में लाकर बीमार व्यक्ति पर पड़े खर्च के बोझ को हल्का किया जा सकता है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इसी वर्ष से आयुर्वेद से उपचार को आयुष्मान योजना के दायरे में शामिल किया जा सकता है।

राज्य सरकार ने इस संबंध में प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया है। अब इस प्रस्ताव पर केंद्र सरकार की सहमति का इंतजार है। केंद्र की सहमति मिलने के बाद प्रदेश में आयुर्वेद पद्धति से यदि कोई व्यक्ति मान्यता प्राप्त अस्पतालों में इलाज कराता है तो इस पर होने वाले अधिकमत 5 लाख रुपए तक का खर्च उठाने की जिम्मेदारी सरकार की होगी।

अभी ऐलापेथी में ही लागू है योजना :

आयुष्मान योजना के दायरे में अभी ऐलोपेथी से ही इलाज को शामिल किया गया है। यानी आयुष्मान योजना के दायरे में शामिल बीमारियां होने पर मरीज के लिए यह बाध्यता है कि यदि उसे योजना का लाभ लेना है तो इलाज ऐलोपेथी से ही कराना होगा। यदि किसी और पेथी से इलाज कराया तो फिर वह भले ही योजना का लाभ लेने के लिए पात्र हो, लेकिन पेथी योजना के दायरे में शामिल नहीं होने के कारण इलाज का पूरा खर्च स्वयं ही उठाना पड़ेगा। प्रदेश में ऐलीपेथी के अलावा आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपेथी से इलाज होता है। इसके लिए प्रदेश में अलग से आयुष विभाग गठित है, जो कि इस पेथी से बने अस्पतालों का प्रबंधन करती है और इलाज की व्यवस्था करती है।

इसलिए भेजा राज्य सरकार ने प्रस्ताव :

दरअसल ऐलोपेथी पर कई मरीजों को भरोसा नहीं है। वे आयुष्मान योजना के दायरे में शामिल हैं लेकिन इलाज ऐलोपेथी के बजाय अन्य पेथी विशेषकर आयुर्वेद से कराना चाहते हैं। आयुर्वेदिक तरीके से इलाज कराने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसमें मरीज के शरीर पर किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं होता है। मरीज को स्वस्थ होने में ऐलोपेथी के मुकाबले समय अधिक लगता है, लेकिन आयुर्वेदिक तरीके से इलाज कराने पर मरीज की बीमारी जड़ से समाप्त हो जाती है और फिर दोबारा होने की आशंका नहीं के बराबर होती है। राज्य सरकार को मरीजों से जो फीडबैक मिला है, उसमें कई मरीजों से ऐलोपेथी के साथ ही आयुर्वेदिक तरीके से उपचार को भी आयुष्मान योजना के दायरे में शामिल करने की पैरवी की है। केंद्र सरकार को इस संबंध में प्रस्ताव भेजने की दूसरी वजह यह भी है कि राज्य सरकार स्वयं आयुर्वेदिक सहित अन्य परंपरागत तरीके से उपचार को बढ़ावा देना चाहती है। आयुर्वेद उपचार का मूल भारत ही है। इलाज की यह पद्धति भारत में हजारों वर्षों से चल रहा है, लेकिन इसे सरकार की ओर पहले पर्याप्त संरक्षण नहीं मिला। इस कारण यह ऐलोपैथी के मुकाबले पिछड़ता चला गया। एक समय देश में उपचार का केवल यही एक तरीका था। ऐसे में राज्य सरकार को अब प्रदेश में आयुर्वेदिक पद्धति को बढ़ावा देना चाहती है।

रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे :

अभी ऐलीपेथी के मुकाबले आयुर्वेदिक अस्पताल सीमित संख्या में है। चाहे राज्य सरकार का मामला हो या फिर प्रायवेट अस्पतालों का मामला हो, दोनों ही सेक्टर में आयुर्वेदिक अस्पतालों की पहुंच आम लोगों तक कम ही है। यदि आयुष्मान योजना के दायरे में आयुष विभाग को भी शामिल कर लिया गया तो फिर निजी क्षेत्र में भी अस्पतालों को बढ़ावा मिलेगा। बेहतर संसाधन के साथ ही उपचार की बेहतर तकनीक विकसित हो सकेंगे। प्रदेश में बीएएमएस या बीएचएमएस करने वालों को सरकारी क्षेत्र में नौकरी के सीमित अवसर हैं। सीमित अवसरों के कारण वे निजी प्रेक्टिस के भरोसे रहते हैं, लेकिन सरकारी संरक्षण मिलने से आयुष से जुड़े नए निजी अस्पतालों को खुलने में प्रोत्साहन मिल सकेगा। इससे रोजगार के नए अवसर भी सृजित हो सकेंगे।

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