Bhopal : राजधानी में गुजरे दौर की निशानी बनकर खड़े हैं, डाक विभाग के लेटर बॉक्स
भोपाल, मध्यप्रदेश। सड़कों के किनारे या सार्वजनिक स्थानों पर लगा लाल रंग का लोहे का डिब्बा। अब शहर में गिने-चुने स्थानों पर ही लगा नजर आता है। वह भी उपेक्षित और गुजरे दौर की निशानी की तरह। जिस पर ताला लगा हुआ है। जो अब महीनों तक नहीं खुलता है। खुले भी क्यों? ना तो अब इन डब्बों में कोई चिठ्ठी डालता है, ना ही दूसरे शहरों को भेजने के लिए लिफाफे। राजधानी में चुनिंदा जगहों पर ही डाक विभाग के लेटर बॉक्स नजर आते हैं। चिठ्ठी-पत्री का दौर अब पुराने दिनों की बात हो चुकी है। डाकघरों में भी अब अंतरदेशीय और पोस्टकार्ड नाम मात्र को बिकते हैं। जो डाकें जातीं भी हैं, वे भी स्पीड पोस्ट और कुरियर के जरिये भेजी जाती है। ऐसे में अब इन लेटर बॉक्स की कोई उपयोगिता ही नहीं रह गई है। एक दौर में राजधानी में ही सैकड़ों स्थानों पर लेटर बॉक्स लगे थे जो रोज नियम से खुलते थे और उनमें से डाक निकाली जाती थी। लेकिन अब यह सिलसिला सालों पहले बंद हो चुका है। अब सिर्फ पहले जिन स्थानों पर डाक विभाग ने इन्हें लगा दिया था। अब ये वहीं शो पीस बनकर खड़े हैं, सालों से खाली। गुजरे समय की निशानी बनकर। ये भी अब थोड़े से ही बचे हैं।
डिजीटल युग ने खत्म की उपयोगिता :
नब्बे के दशक में निजी कुरियर कंपनियों के काम में तेजी आने के बाद से ही लेटर बॉक्स की उपयोगिता घटने लगी थी। फिर धीरे-धीरे फैक्स और एसटीडी के साथ डिजिटल युग की शुरूआत हुई, तो लोगों ने चिठ्ठी-पत्री लिखना भी छोड़ दिया। अब तो वाट्सएप और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर चैटिंग से लेकर वीडियो कॉल तक के अपडेट ऑपशन मौजूद हैं। लिहाजा अब ना तो पत्र लिखे जाते हैं, और ना ही लेटर बॉक्स में कोई पोस्ट करने आता है। कुल मिलाकर आधुनिक तकनीकों ने लेटर बॉक्स की उपयोगिता खत्म कर दी है।
एक दौर में लोग तलाशते थे लेटर बॉक्स :
राजधानी की बात करें तो अंग्रेजी दौर से लेकर स्वतंत्र भारत के कई दशकों तक लोगों के पास डाक विभाग के यही लेटर बॉक्स अपना संदेश परिवार और रिश्तेदारों तक पहुंचाने का एकलौता सहारा थे। उस दौर में लोग चिठ्ठी और पोस्ट कार्ड लेकर लेटर बॉक्स को तलाशते हुए आते थे। डाकिया भी हर रोज नियम से इनको खोलता था। इनके खुलने का समय भी बॉक्स पर अंकित होता था, ताकि लोगों को जानकारी रहे। लेकिन अब यह सब गुजरे जमाने की बातें हो गईं हैं।
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