बकस्वाहा हीरा खदान देश को दुनिया के 10 सबसे बड़े कच्चा हीरा उत्पादक देशों में करा देगा शामिल

भोपाल, मध्यप्रदेश : इस खदान का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि यह दुनिया की 15 सबसे बड़े हीरा उत्पादक खदानों में से एक होगी।
बकस्वाहा हीरा खदान
बकस्वाहा हीरा खदानसांकेतिक चित्र

हाइलाइट्स :

  • दुनिया की सबसे बड़ी 15 हीरा उत्पादक खदानों में एक होगी

  • अब तक एक लाख करोड़ रुपए मूल्य से अधिक हीरा होने का अनुमान

  • राज्य सरकार को मिलेंगे 28 हजार करोड़ रुपए से अधिक

भोपाल, मध्यप्रदेश। प्रदेश के छतरपुर जिले के बकस्वाहा में हीरा खनन से पहले ही पेड़ों की कटाई को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है। हालांकि अभी पेड़ों की कटाई का काम शुरू भी नहीं हुआ है, लेकिन यह खदान प्रदेश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने का काम कर सकती है। सबसे बड़ी बात यह कि यह हीरा खदान देश को दुनिया के 10 सबसे बड़े कच्चा हीरा उत्पादक देशों में शुमार करा सकता है। इस खदान का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि यह दुनिया की 15 सबसे बड़े हीरा उत्पादक खदानों में से एक होगी।

खनिज साधन विभाग ने इस संबंध में एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें इस परियोजना से होने वाले प्रभाव के बारे में बताया गया है। पहले जब परियोजना के लिए बिड की प्रक्रिया पूरी की गई थी, तब यहां 60 हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के हीरा होने की संभावना जताई गई थी, अब इसका मूल्य एक लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाने की संभावना जताई जा रही है। राज्य सरकार को बकस्वाहा हीरा खनन परियोजना से 28 हजार करोड़ रुपए से अधिक राजस्व मिलेगा।

देश के 115 आकांक्षी जिलों में शामिल हो गया है छतरपुर :

जो रिपोर्ट तैयार की गई है उस हिसाब से वर्तमान में छतरपुर जिला सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है। यह परियोजना छतरपुर जिले को विकसित करने में मदद करेगी। छतरपुर जिले को मप्र के आकांक्षी जिलों में एक माना गया है। केंद्र सरकार ने भी देश के 115 जिलों को आकांक्षी जिले के रूप में चिन्हित किया है, उनमें छतरपुर भी शामिल है।

सबसे पहले मप्र में होगी नीलामी :

रिपोर्ट के हिसाब से बंदर डायमंड ब्लॉक से उत्पादित हीरों की नीलामी एलओआई की शर्तों के हिसाब से सबसे पहले मप्र में की जाएगी। इसी को ध्यान में रखते हुए मप्र में एक नीलामी केंद्र बनाना प्रस्तावित किया गया है। इस पहल से मप्र में हीरा कटिंग, पॉलिशिंग और हीरों का आभूषण बनाने जैसे उद्योग को विकसित करने में मदद मिलेगी।

हर वर्ष राज्य सरकार को मिलेंगे 472 करोड़ :

राज्य सरकार प्रदेश में आमदनी बढ़ाने के उपाय लगातार तलाश रही है। ऐसे में बंदर डायमंड ब्लॉक मप्र की आमदनी बढ़ाने में भी मददगार साबित हो सकता है। परियोजना को लेकर जो व्यवस्था तय की गई है, उस हिसाब से खनन पट्टा देने से पहले उत्खनन करने वाली एजेंसी मप्र सरकार को 275 करोड़ रुपए का अग्रिम भुगतान करेगी। इसमें से 10 फीसदी राशि यानी 27.5 करोड़ रुपए का भुगतान पहले ही कर दिया गया है। इसी तरह खनन पट्टा देने से पहले मप्र सरकार को एनपीवी, सीए भूमि लागत आदि के लिए 200 करोड़ रुपए भी मिलेंगे। एनआईटी में सरकारी मूल्यांकन के हिसाब से ब्लॉक को 30.05 प्रतिशत के राजस्व शेयर मूल्य पर नीलाम किया गया था। इसलिए सरकार को परियोजना की अवधि में कम से कम 28 हजार करोड़ रुपए मिलेंगे। इस तरह राज्य सरकार को प्रतिवर्ष 472 करोड़ रुपए का राजस्व मिलने लगेगा। इसके अलावा जीएसटी आदि अलग से मिलेगा। अब ब्लॉक से खनन होने वाले हीरा की कीमत बढ़ने से एक लाख करोड़ रुपए मूल्य के हीरा खनन की संभावना जताई जा रही है। पहले लगभग 60 हजार करोड़ रुपए का अनुमान जताया गया था। ऐसे में अब यहां से राज्य सरकार को मिलने वाली राशि में और बढ़ोतरी की संभावना है।

34 मिलियन कैरेट से अधिक हीरा होने की संभावना :

बंदर डायमंड ब्लॉक में कम से कम 34 मिलियन कैरेट हीरा होने की संभावना जताई गई है। इस परियोजना के लिए वर्ष 2019 में ही ऑक्शन की प्रक्रिया पूरी की गई है। तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। आदित्य बिरला गु्रप की एसेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने बिड में खनन की अनुमति हासिल की थी। इस परियोजना से लगभग 1500 प्रत्यक्ष रोजगार मिलने की संभावना है।

इनका कहना :

बकस्वाहा हीरा खनन परियोजना छतरपुर जिले के साथ ही प्रदेश और देश के लिए महत्वपूर्ण परियोजना है। इस परियोजना से राज्य सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी होगी, वहीं स्थानीय स्तर पर भी रोजगार के मौके बढ़ेंगे। यह परियोजना बेहद संभावनाओं वाला है। छतरपुर जिला इस परियोजना से देश के अग्रणी राज्यों में शुमार हो सकता है।

सुखबीर सिंह, प्रमुख सचिव, खनिज साधन विभाग

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