Achleshwar Mahadev Mandir
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दोषियों को न लड़ने दें अचलेश्वर न्यास चुनाव, कलेक्टर कोर्ट में लगाई गुहार

मंदिर निर्माण 2019 में पूरा होना था,लेकिन छह साल बाद भी मंदिर निर्माण पूरा नहीं हो सका है। इसे लेकर निर्माण एंजेंसी के जगदीश मित्तल कह चुके हैं कि भुगतान मेें देरी से मंदिर निर्माण में देरी हुई है।

ग्वालियर। अचलेश्वर मंदिर की कथित अनियमिताओं को लेकर चल रही कलेक्टर की सुनवाई में फरियादी पूर्व न्यासी नरेंद्र सिंघल व संतोष सिंह राठौर ने गुहार लगाई है कि तुरंत मंदिर न्यास का बायलॉज तैयार कराया जाए। अनियमितता करने वाले मंदिर न्यास पदाधिकारियों को आगामी न्यास चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित किया जाए।

साथ ही दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। मंदिर निर्माण एजेंसी का भुगतान कराया जाए, ताकि शीघ्र अतिशीघ्र अचलेश्वर महादेव का भव्य मंदिर निर्माण पूरा हो सके। गौरतलब है कि मंदिर निर्माण 2017 में शुरू हुआ था जो 2019 में पूरा होना था,लेकिन छह साल बीत जाने के बाद भी मंदिर निर्माण पूरा नहीं हो सका है। इसे लेकर निर्माण एंजेंसी के जगदीश मित्तल सार्वजनिक तौर पर यह बात कह चुके हैं कि भुगतान मेें देरी की वजह से मंदिर निर्माण में देरी हुई है।

यहां बता दें कि हाईकोर्ट ने उक्त प्रकरण के निराकरण के लिए कलेक्टर कोर्ट को तीन महीने का समय दिया था। पहले कोर्ट द्वारा निर्धारित रिसीवर मंदिर न्यास की कमान संभाल रहे थे और अब प्रशासन के हाथों में मंदिर की व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी है। यहां बता दें कि उक्त विवादों के चलते मंदिर के धार्मिक कार्यक्रम प्रभावित हो रहे हैं। गरीब बेटियों का सामूहिक विवाह आयोजन भी नहीं हो पा रहा है।

महादेव मंदिर का विशेष महत्व

ग्वालियर के इस मंदिर का विशेष महत्व है। शिवजी की हठ का ये जीता-जागता साक्ष्य है। भक्तों की माने तो यहां पर महादेव अपनी जिद्द के कारण ही बीच सड़क पर विराजमान है। महादेव को इस स्थान से हटाने के भऱसक प्रयास हुए लेकिन इंच भर भी कोई हिला नहीं पाया। महादेव की शक्ति देखकर भक्तों ने यहीं पर बीच सड़क मंदिर को स्थापित कर दिया। अचलेश्वर महादेव का नामकरण सिंधिया रियासत के शासकों ने किया है। भक्तों के मुताबिक तत्कालीन शासकों का काफिला इस मार्ग से गुजर रहा था। तब उन्होंने महादेव की पिंडी को बीच रास्ते में देखा। उन्होंने पिंडी को हटाने का आदेश दिया। राजा की सेना ने पिंडी को हटाने के लिए हर संभव प्रयास किया। पिंडी को रस्सियों से बांधकर हाथियों से खिंचवाया लेकिन हिला भी न पाए। तब उन्हें महादेव की शक्ति का अहसास हुआ और इसका नाम अचलेश्लर पड़ा। अब ये स्थान आस्था का केंद्र बन चुका है।

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