ग्वालियर : भारत और चीन के तनाव से डरी ईकोग्रीन इसलिए पीछे खींचे हाथ

शहर का कचरा प्रबंधन संभालने वाली ईकोग्रीन कंपनी भारत और चीन के बीच युद्ध होने की संभावना के चलते डरी हुई है। अगर युद्ध हुआ तो सभी तरह के व्यापारिक रिश्ते खत्म हो जायगे और कंपनी का पैसा डूब जायगा।
ईकोग्रीन, ग्वालियर
ईकोग्रीन, ग्वालियरSocial Media

हाइलाइट्स

  • कंपनी को आशंका है कि कभी भी बंद हो सकते हैं व्यापारिक रिश्ते

  • युद्ध की आशंका को देखते हुए लिया गया है निर्णय

  • कचरा प्रबंधन के लिए ग्वालियर सहित 16 निकायों पर खर्चा बताया 90 करोड़

  • भारत की कंपनी काम करने की है इच्छुक

ग्वालियर, मध्य प्रदेश। शहर का कचरा प्रबंधन संभालने वाली ईकोग्रीन कंपनी भारत और चीन के बीच युद्ध होने की संभावना के चलते डरी हुई है। अगर युद्ध हुआ तो सभी तरह के व्यापारिक रिश्ते खत्म हो जायगे और कंपनी का पैसा डूब जायगा। यही वजह है कि कंपनी ने किसी भी तरह की राशि देने से इंकार कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ चाईनीज कंपनी की भारत में सहयोगी कंपनी काम करने को तैयार है। लेकिन उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह कचरे से बिजली बनाने वाला प्लांट लगा सके। इस संबंध में शासन स्तर पर चर्चा के बाद ही किसी तरह का अंतिम निर्णय लिया जा सकता है।

स्वच्छता सर्वेक्षण अभियान में बेहतर रैकिंग पाने के लिए शहर में वैज्ञानिक पद्धति से कचरे का विनिष्टीकरण(प्रबंधन) करना आवश्यक है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी इस संदर्भ में कुछ वर्ष पहले निर्णय लिया जा चुका है। यही वजह है कि देश के महानगरों में कचरे से बिजली बनाने सहित खाद बनने एवं फ्यूल बनाने जैसे बड़े प्लांट लगाए जा रहे हैं। इसी क्रम में ग्वालियर सहित मुरैना, दतिया एवं आसपास की 16 नगर पालिका एवं नगर पंचायतों में कचरा प्रबंधन शुरू कराने के लिए 372 करोड़ की लागत से ठेका किया गया था। चाईनीज कंपनी ईकोग्रीन को यह टेण्डर मिला और कंपनी ने 2016-17 से काम शुरू किया। लेकिन जिस तरह अधिकारियों ने इस कार्य में लापरवाही बरती उसके चलते दो साल में कंपनी का बेण्ड बज गया। विभागीय सूत्रों के अनुसार कंपनी ने लगभग 90 करोड़ रुपय कचरा प्रबंधन पर खर्च किए हैं और इसके एवज में 15 प्रतिशत राशि भी रिफंड नहीं हुई। वर्तमान स्थिति में ईकोग्रीन कंपनी के चाईनीज सहयोगी ने पैसा देना बंद कर दिया है। इसका मुख्य कारण भारत और चीन के रिश्तों में बढ़ती खटास है। लद्दाख में दोनों देशों की सेनाएं आमने सामने हैं और युद्ध की आशंका व्यक्त की जा रही है। अगर युद्ध हुआ तो चाईनीज कंपनियों से सभी तरह के रिश्ते खत्म कर दिए जायंगे और जो पैसा कंपनी से खर्च किया है वह वापस नहीं मिल पायगी। इसी डर के वजह से कंपनी ने हाथ पीछे खींच लिए हैं।

इंडियन कंपनी है ईकोग्रीन, जेड जी है चाईनीज कंपनी :

ईकोग्रीन को अब तक चाईनीज कंपनी कहा जा रहा है जबकि हकीकत में यह नाम भारतीय कंपनी का है। चाईनीज कंपनी का नाम जेडजी है और उसके साथ जिंगयान कंपनी भी शामिल है जिसे चाईना की सरकारी कंपनी बताया जाता है। इंडिया में काम करने के लिए चाईनीज कंपनी ने ईकोगीन इंडिया नामक कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर टाईटल अपने नाम कर लिया था। अब चाईनीज कंपनी के हाथ पीछे खीचने पर ईडिंयन कंपनी ईकोग्रीन कचरा प्रबंधन का कार्य करना चाह रही है लेकिन उसके पास फाईनेंसियल सपोर्ट नहीं है। इसी वजह से कचरा प्रबंधन के लिए जो शुल्क नगर निगम दे रहा था उससे ही कर्मचारियों को वेतन दिया जा रहा था।

लेमन होल्डिंग कंपनी करती है फाईनेंस :

कचरा प्रबंधन का ठेका लेने में चार कंपनियों का नाम सामने आता है। इसमें ईकोग्रीन, जेड जी, जिंगयान एवं लेमन होल्डिंग शामिल है। लेमन होल्डिंग कंपनी भी चाईनीज है और यह फाईनेंस का काम करती है। लैण्डफिल साईड पर कचरे से जो बिजली बनाई जानी थी उसके प्लांट पर लगभग 156 करोड़ रुपय खर्च होने की बात कही जा रही थी। इस प्लांट के लगने पर जो बिजली बनती उसकी खरीदारी बिजली कंपनी करती और कचरा उठाने का भी भुगतान किया जाता। इससे कंपनी को आय होना थी। लेकिन अन्य नगरीय निकायों द्वारा कचरा उठाने का शुल्क नहीं दिए जाने से यह प्रबंधन ठप्प होने की कगार पर पहुंच गया है।

उठने लगा कचरा, जल्द शुरू करेंगे डोर टू डोर :

ईकोग्रीन कंपनी के काम बंद करने के बाद नगर निगम ने कचरा प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया है। शुरूआत के तीन दिन तक शहर से लगभग 40 टन कचरा उठाकर लैण्डफिल साईट भेजा गया है। अब स्थिति नियंत्रण में हैं और प्रतिदिन 400 से 500 टन कचरा उठाया जा रहा है। अभी अधिकारियों का फोकस दीवाली तक शहर में सफाई कराकर कचरा उठाने का है। इसके बाद डोर टू डोर कचरा कलेक्शन को व्यवस्थित रूप से चलाने का प्रयास किया जायगा।

इनका कहना है :

त्यौहार का सीजन देखते हुए अभी हमारा प्रयास शहर से कचरा उठाना है। जब यह व्यवस्था ठीक हो जायगी तब अगले चरण पर ध्यान दिया जायगा। हम सभी गलियों से कचरा उठाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए हाथ गाड़ी, टिपर सहित अन्य सभी संसाधन काम पर लगा दिए हैं।

नरोत्तम भार्गव, अपर आयुक्त, नगर निगम

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