ग्वालियर, मध्य प्रदेश। नगर निगम में एक बार फिर प्राकृतिक तरीके से सीवर के पानी को साफ करने का नवाचार किया जा सकता है। इसके लिए हैदराबाद से बायोटैक कंपनी के विशेषज्ञों को बुलाया गया है। यह विशेषज्ञ शहर के नालों का निरीक्षण कर प्राकृतिक तरीके से बनाए जाने वाले सीवर ट्रीटमेंट प्लांट(एसटीपी) लगाने के विषय में जानकारी देंगे। कंपनी द्वारा दिल्ली सहित अन्य राज्यों में काम किया जा रहा है और इस पद्धति के लागू होने से जल सोधन पर अन्य तरह का व्यय नहीं होगा। रविवार को निगमायुक्त शिवम वर्मा विशेषज्ञों के साथ निरीक्षण कर सकते हैं।
शहर की सीवर लाईनों में बहने वाले पानी को स्वच्छ करना पूरे विश्व के लिए चुनौती बना हुआ है। कई देशों ने सीवर का पानी साफ करके पौधा रोपण एवं पीने योग्य भी बना लिया है। लेकिन अभी भारत में कई जगह इस पर रिसर्च चल रहा है। जो पानी साफ हो रहा है उसे भी फिल्टर करके पौधे या खेती के युक्त बनाया जा रहा है। इसी तर्ज पर हैदराबाद की कंपनी बायोटेक द्वारा काम किया जा रहा है। ग्वालियर से प्रतिदिन 80 से 90 एमएलडी सीवर का पानी निकल रहा है। इस पानी को साफ करना बड़ी चुनौती है। हालांकि अमृत योजना से चार जगह सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाये गए हैं लेकिन यह प्लांट पानी को बहुत ज्यादा फिल्टर नहीं कर पायंगे। यह पानी को साफ करके खेती के युक्त बना सकते हैं। वह भी तब जब जिम्मेदार अधिकारी इस काम में रूचि दिखाएं। सीवर के पानी को प्राकृतिक रूप से साफ करने के लिए हैदराबाद की बायोटैक कंपनी को ग्वालियर बुलाया गया है। कंपनी के विशेषज्ञ मिस्टर रेड्डी शनिवार को बाल भवन में निगमायुक्त शिवम वर्मा से मिले। उन्होंने कंपनी द्वारा किए जा रहे कार्य की जानकारी दी। इसके बाद वह सीवर अधिकारी शिशिर श्रीवास्तव के साथ नाका चन्द्रवदनी स्थित रानी पुरा नाले पर पहुंचे। रविवार को निगमायुक्त भी निरीक्षण पर जा सकते हैं।
पहले भी बुलाया गया था कंपनी को :
हैदराबाद की बायोटेक कंपनी को पहले भी नगर निगम में बुलाया जा चुका है। लेकिन पानी साफ करने पर आने वाले खर्च को लेकर अधिकारियों ने काम कराना मुनासिब नहीं समझा। सूत्रों के अनुसार कई अन्य कारण भी सामने आए थे जिससे अधिकारियों को इस पद्धति पर पैसा खर्च करना फिजूल लगा। चूंकि कई तरह के एसटीपी नगर निगम के मत्थे पहले की मढ़ चुके हैं इसलिए अधिकारी नवाचार करने से डर रहे थे। एक बार फिर नई कवायद की जा रही है। देखना यह है कि यह मामला कितना आगे बढ़ता है।
दो करोड़ रुपये में फिल्टर होगा एक एमएलडी पानी :
प्राकृतिक रूप से पानी फिल्टर करने पर जो राशि खर्च होगी वह बहुत ज्यादा है। अधिकारियों के अनुसार एक एमएलडी पानी को फिल्टर करने में दो करोड़ रुपये खर्च होंगे। साथ ही ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया जायका। इस पद्धति को विकसित करने के लिए बहुत ज्यादा जगह की आवश्यकता है इसलिए कई शहरों में यह तकनीक सफल नहीं हुई।
8 किलोमीटर का एरिया चाहिए प्लांट के लिए :
नगर निगम अधिकारियों के अनुसार 145 एमएलडी पानी को फिल्टर करने के लिए 8 किलोमीटर के एरिए की जरूरत होगी। यह बहुत बड़ी जगह है और शहर में इतनी जगह मिलना संभव नहीं है। जहां भी जगह है वहां अतिक्रमण हो रखा है। कंपनी किस तरह अपने प्रोजेक्ट को लगायेगी यह आने वाले समय में पता चलेगा।
यह परेशानी आयेगी सामने :
प्राकृतिक रूप से पानी साफ करने के लिए पौधों का इस्तेमाल किया जाता है।
नाले के दोनों तरफ पौधे लगाकर पानी साफ किया जायेगा।
जितनी अधिक जगह पर पौधे लगेंगे उतना ही पानी साफ होगा।
स्वर्ण रेखा पर पौधे लगाए तो बारिश में सारे पौधे बह जायंगे।
शहर के अन्य किसी भी नाले भी पौधे लगाए गए तो यही हश्र होगा।
नालों के ऊपर या पास में खाली पड़ी जमीन पर लगाए जा सकते हैं पौधे।
किस तरह पौधे लगाए जाये इसकी डिजाईन देगें विशेषज्ञ।
इनका कहना है :
अभी कंपनी के विशेषज्ञ आए हैं और उन्होंने एक जगह का नाला देखा है। प्राकृतिक रूप से पानी साफ करने के लिए एसटीपी लगाने के लिए अधिक जगह की आवश्यकता होगी। हालांकि अभी इस बारे में कुछ भी सही तरीके से कहना संभव नहीं है। रविवार को विशेषज्ञ अपनी बात रखेंगे तब सही जानकारी मिलेगी।
शिशिर श्रीवास्तव, प्रोजेक्ट प्रभारी, सीवर, नगर निगम
ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।