कर्मठता के आगे शोहरत और दौलत ने टेका माथा, रिटायर्ड हुए उप पुलिस अधीक्षक वी.डी. पाण्डेय

शहडोल, मध्यप्रदेश : 31 अगस्त को लगभग 38 वर्षाे के सेवाकाल के बाद उप पुलिस अधीक्षक शहडोल वी.डी. पाण्डेय सेवानिवृत्त हो गए। सेवानिवृत्त के बाद अब वे अपना पूरा समय जनसेवा को ही देंगे।
रिटायर्ड हुए उप पुलिस अधीक्षक वी.डी. पाण्डेय
रिटायर्ड हुए उप पुलिस अधीक्षक वी.डी. पाण्डेयराज एक्सप्रेस, संवाददाता

हाइलाइट्स :

  • 3 एनकाउंटर, 60 डकैतों की गिरफ्तारी और आउट ऑफ टर्न प्रमोशन

  • 38 वर्षाे की जन-सेवा के बाद सेवानिवृत्त हुए उपपुलिस अधीक्षक

  • पिता चाहते थे वकील बनाना, पर सेवा के जज्बे ने पहना दी वर्दी

  • अपराधी कांपते थे नाम से, छोड़ देते थे धंधा या शहर

Summary

22 वर्ष की उम्र में खाखी वर्दी मिली, पिता चाहते थे कि पुत्र काला कोट पहनकर वकील बने, लेकिन रीवा जिले के भनिगवां के ब्यौहर राजमणि पाण्डेय के पुत्र विष्णु देव पाण्डेय ने खाखी वर्दी पहनी तो, चंद वर्षाे में प्रदेश में अपनी अलग पहचान बना ली, 38 वर्षाे के सेवाकाल के बाद सहायक निरीक्षक से उप पुलिस अधीक्षक के पद तक पहुंचने के बाद बीते दिनों विभाग द्वारा उन्हें ससम्मान सेवानिवृत्त किया गया।

शहडोल, मध्यप्रदेश। 31 अगस्त को लगभग 38 वर्षाे के सेवाकाल के बाद उप पुलिस अधीक्षक शहडोल वी.डी. पाण्डेय सेवानिवृत्त हो गए। सरल-सहज स्वभाव के धनी श्री पाण्डेय 38 वर्षाे के कार्यकाल में शहडोल में सेवाकाल के अंतिम ढ़ाई वर्ष ही रहे, लेकिन इस दौरान मुख्यालय में उनका कार्यकाल संतोषजनक था। 19 अगस्त 1961 को वी.डी. पाण्डेय का जन्म रीवा जिले के भनिगवां ग्राम के ब्यौहर, उनके पिता राजमणि पाण्डेय के यहां हुआ थावां चार भाईयों में सबसे बड़े वी.डी. पाण्डेय का असली नाम विष्णु देव पाण्डेय बहुत कम ही लोग जानते हैं, भनिगवां के आस-पास के दर्जनों गांव सहित सतना, मैहर व शहडोल के श्री पाण्डेय को जानने वाले लगभग लोग विष्णु देव की जगह वी.डी. पाण्डेय के नाम से ही परिचित हैं, श्री पाण्डेय प्रदेश के अग्रिम पंक्ति के उन पुलिस अधिकारियों में शामिल है, जिनके पीछे शोहरत और रूपया खुद चलकर आता है, राज एक्सप्रेस से हुए साक्षात्कार के दौरान श्री पाण्डेय ने कहा कि देश भक्ति और जनसेवा की शपथ लेकर उन्होंने पुलिस वर्दी पहनी थी, रिटायर हो जाने से उनका यह मिशन खत्म नहीं हुआ है। सेवानिवृत्त के बाद अब वे अपना पूरा समय जनसेवा को ही देंगे।

डकैतों के दिलों में था खौफ :

1985 के बैच में एएसआई के रूप में वी.डी. पाण्डेय का चयन हुआ, जिसके बाद लगभग 1 वर्ष तक सागर स्थित जवाहर लाल नेहरू पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र में ट्रेनिंग हुई, अगले वर्ष उनकी पदस्थापना सतना जिले के लिए हो गई। यहां से उन्हें कोलगवां थाने में एक वर्ष बतौर ट्रेनी के रूप में बिताना पड़ा, जिसके बाद सिंहपुर थाने में नियुक्त हो गई, पिता से मिले आदर्शाे और वर्दी पहनते समय ली गई देश-भक्ति और जनसेवा की शपथ ने श्री पाण्डेय को अपने समकक्ष पुलिस अधिकारियों से अलग कर दिया। यही वजह थी कि चित्रकूट में जब उनकी पदस्थापना हुई तो, 90 के दशक में जब पूरा प्रदेश और खासकर उत्तरप्रदेश से जुड़ी सीमा के जिले डकैतों के आतंक से थर्रा रहे थे, अपनी सूझबूझ और साहस से वी.डी. पाण्डेय ने तीन दुर्दांत डकैतों का एनकाउंटर किया, चित्रकूट में महज 4 वर्षाे के सेवाकाल के दौरान 60 से अधिक ईनामी डकैत पकड़े, जिस कारण डकैतों के बीच वी. डी. पाण्डेय का नाम इस कदर छा गया कि डकैती उनके नाम से थर्राने लगे, प्रदेश सरकार ने इसी साहस और ज'बे को देखते हुए उन्हें आउट आफ टर्न प्रमोशन देकर सेवाकाल के 10 वर्षाे में ही सहायक निरीक्षक से निरीक्षक के पद पर आसीन कर दिया।

इको फ्रेण्डली और वेजीटेरियन :

अपराधियों के लिए खौफ का पर्याय बन चुके वी.डी. पाण्डेय जब संभ्रांतजनों और आमजनों के बीच में रहते थे तो, लोग उनकी एनकांउटर वाली छवि को चाह कर भी नहीं ढूंढ पाते थे, स्वभाव से सरल और कर्म से कर्मठ व दबंग छवि वाले श्री पाण्डेय के सेवाकाल का अधिकांश समय सतना के विभिन्न थानों में बीता, हालाकि 38 वर्षाे के सेवाकाल में वे टीकमगढ़ जिले के ओरछा और जतारा थानों में भी रहे, इसके अलावा सागर तथा सिंगरौली जिले में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी। इन सभी कार्य क्षेत्रों में उनका पत्रकारों और विभिन्न धार्मिंक तथा सामाजिक संगठनों के मुखिया से इको फ्रेण्डली व्यवहार रहा। अध्यात्म से जुडऩे के साथ ही पूरा जीवन नशे व मांस से दूर रहने का ही कारण रहा कि तमाम विपरीत परिस्थितियों ने भी उन्होंने कभी अपना आपा नहीं खोया।

इस तरह चढे सीढ़ी दर सीढ़ी : 22 वर्ष की उम्र में सहायक निरीक्षक की वर्दी पहनने वाले विष्णुदेव पाण्डेय बताते हैं कि उनके पिता की इ'छा उन्हें अ'छा वकील बनाकर आस-पास के दर्जनों गांवो के वाशिंदो को न्याय दिलाने की थी, लेकिन प्रतियोगी परीक्षाओं के फार्म भरते-भरते उनका चयन सहायक निरीक्षक के पद पर हो गया, शुरूआती शिक्षा-दीक्षा गांव तथा समीप के विद्यालयों में अर्जित करने के बाद उन्होंने पिता की इ'छा पर बीएससी के बाद एलएलबी और एलएलएम की डिग्री हासिल की, चार भाईयों में सबसे बड़े श्री पाण्डेय की शादी वर्ष 1980-81 में हुई, चार पुत्रों के पिता श्री पाण्डेय ने 1985 में जब सहायक निरीक्षक के पद से जब अपना सफर शुरू किया तो, उसके बाद मुड़कर नहीं देखा, सबसे पहले कोलगवां थाने में एक वर्ष की ट्रेनिंग, फिर सिंहपुर थाने में तीन साल का प्रभार, चित्रकूट में चार वर्ष का प्रभार और उसके बाद हुए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन ने उन्हें टीकमगढ़, सागर के अलावा सिंगरौली के विंध्य नगर में वर्ष 2012 में विभाग ने सतना से प्रमोशन कर डीएसपी बनाकर भेजा। इसके बाद 2 वर्षाे तक मैहर में एसडीओपी व फिर दो वर्षाे तक सतना में सीएसपी के पद पर रहे। सेवाकाल के दौरान 6 वर्ष कोलगवां और 6 वर्ष मैहर में रहे। सतना के बाद अंतिम ढाई वर्ष शहडोल में बीते।

अंधे हत्या कांडों और डकैती के कुशल विशेषज्ञ :

38 वर्षाे के सेवाकाल में वी.डी. पाण्डेय ने 5 जिलो में ही अपनी सेवाएं दी, इस दौरान लगभग 175 से अधिक अंधे हत्या काण्डों का खुलासा किया, वहीं लूट और डकैती के 2 सैकड़ा से अधिक मामलों की गुत्थी सुलझाई, सतना में सेवाकाल के दौरान पुष्कर सिंह तोमर और धर्मेन्द्र सिंह हुडांग जैसे दबंग, जिनसे समाज और प्रशासन का हर तबका थर्राता था, शिकायत के बाद उनका सड़कों पर निकाला गया जुलूस सतना की जनता आज तक नहीं भूल पाई है, सरदार सिंह हत्याकाण्ड के अलावा मैहर में डीएसपी रहने के दौरान चित्रकूट में उत्तरप्रदेश के बार्डर पर हुए बच्चों के अपहरण और हत्याकाण्ड की जांच का प्रभार विभाग ने उनके अनुभव के आधार पर ही उन्हें सौंपा था, इस मामले में आरोपियों की न सिर्फ गिरफ्तारी हुई, बल्कि जुटाये गये साक्ष्यों और विवेचना के आधार पर न्यायालय ने उन्हें सजा भी सुनाई।

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