जनजातीय वर्ग के बच्चों को शिक्षा
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GOOD NEWS : जनजातीय वर्ग के बच्चों को अब पीपीपी मोड में पढ़ाएगी मध्यप्रदेश सरकार

राज्य सरकार ने इसके लिए तैयारी कर ली है और इस व्यवस्था को नए शिक्षण सत्र से प्रदेश में लागू किया जा सकता है।

भोपाल ( कन्हैया लोधी )। प्रदेश में राज्य सरकार ने जनजातीय वर्ग के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए पेसा एक्ट पहले ही लागू कर दिया है। इस क्रांतिकारी कदम से जनजातीय वर्ग को अपने क्षेत्र के बारे में कई नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है, वहीं उनके अधिकारों को भी सुरक्षित किया गया है। ये एक्ट प्रदेश के सभी 89 अधिसूचित ब्लॉक में लागू किया गया है। इस बीच सरकार अब प्रदेश में जनजातीय वर्ग के बच्चों को शिक्षा के मामले में प्रतिस्पर्धी बनाने की बड़ी तैयारी की है। इसके तहत विभाग के चुनिंदा स्कूलों को पीपीपी मोड पर संचालित किया जाएगा। ऐसे स्कूलों के संचालन की जिम्मेदारी नामी संस्थाओं को सौंपी जाएगी, जिनका शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा नाम होगा।

राज्य सरकार ने इसके लिए तैयारी कर ली है और इस व्यवस्था को नए शिक्षण सत्र से प्रदेश में लागू किया जा सकता है। सबसे बड़ी बात ये कि ये व्यवस्था जनजातीय कल्याण विभाग के तहत संचालित उन सामान्य स्कूलों में लागू नहीं की जाएगी, जो कि स्कूल शिक्षा विभाग के स्कूलों की तर्ज पर चल रहे हैं, बल्कि केवल विशेष स्कूलों में ही इस तरह की व्यवस्था लागू की जाएगी।

आदर्श आवासीय विद्यालयों में लागू होगी नई व्यवस्था

राज्य सरकार ने जो व्यवस्था तय की है उस हिसाब से जनजातीय कल्याण विभाग के तहत संचालित आदर्श आवासीय विद्यालयों को पीपीपी मोड में संचालन के लिए दिया जा सकता है। इसी तरह कन्या शिक्षा परिसरों को भी पीपीपी मोड में चलाने के लिए तैयारी की जा रही है। इतना ही नहीं पीपीपी मोड के लिए विशिष्ट आवासीय विद्यालयों का भी चयन किया गया है। इस तरह के सभी विद्यालयों के संचालन का जिम्मा निजी भागीदारी में दिया जा सकता है। अभी इन स्कूलों में व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी पूरी तरह विभाग के पास ही है। विभाग के शिक्षक ही यहां शिक्षण कार्य करते हैं और आवासीय परिसर के छात्रावासों की जिम्मेदारी विभाग के अधीक्षकों के पास होता है। यहां पढ़ाई से लेकर बच्चों के गणवेश और भोजन तक का इंतजाम करने की जिम्मेदारी सरकार के कंधे पर है।

क्यों पड़ रही जरुरत

दरअसल राज्य सरकार जनजातीय कार्य विभाग के आवासीय विद्यालयों पर बड़ी राशि खर्च कर रही है। इस विभाग में बच्चों का भविष्य संवारने के लिए बजट की कमी नहीं है। यदि कमी है तो केवल अच्छे परिणाम की। राज्य सरकाी के तमाम प्रयासों के बाद भी इस तरह के स्कूलों का परीक्षा परिणाम उतना बेहतर नहीं होता, जितना की उनसे अपेक्षा की जाती है। ये इसलिए कि इस तरह की संस्थाएं पूरी तरह सरकारी मानसिकता का शिकार है। ऐसे में उन्हें पता है कि बच्चों की परीक्षा का परिणाम भले ही कुछ हो, उनकी आर्थिक सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। इसलिए इसी सरकारी ढर्रे से इन विद्यालयों को उबारने के लिए ही अब सरकार को पीपीपी मोड के विकल्प की ओर बढऩा पड़ रहा है।

मिशनरी संस्थाओं से भी सरकार को परहेज नहीं

राज्य सरकार प्रदेश के इन तरह के जनजातीय कार्य विभाग के विद्यालयों के संचालन के लिए किसी तरह की कोई बंदिश नहीं रखी है। बस उनका अकादमिक रिकार्ड बेहतर होना चाहिए। फिर चाहे वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा से प्रभावित शिक्षण समितियां हो या फिर मिशनरी संस्थाएं। सरकार को इनमें से किसी से भी कोई परहेज नहीं होगा। सरकार एेसे स्कूलों के संचालन के लिए निविदा आमंत्रित करेगी।

धीरे से बढ़ाएंगे कदम, ताकि विरोध न हो

सरकार की भले ही इस मामले में जनजातीय वर्ग के बच्चों को बेहतर शिक्षा का माहौल देने का उद्देश्य है, लेकिन सरकार के इस कदम का विरोध भी हो सकता है। इसलिए इस योजना को चुनिंदा विशिष्ट आवासीय विद्यालय, आदर्श आवासीय विद्यालय और कन्या शिक्षा परिसरों में संचालित किया जाएगा। विभागीय शासकीय सेवक इस कदम का कहीं विरोध न करें, इसलिए भी सरकार सतर्क है और इस मामले में एक साथ बड़ा कदम उठाने के बजाय इसे पायलट प्रोजेक्ट की तरह लांच करने की तैयारी में है।

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