जीआरएमसी एवं जेएएच प्रबंधन ने सुपर स्पेशलिटी अधीक्षक को किया बौना

ग्वालियर, मध्य प्रदेश : सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल अधीक्षक के पास सिर्फ नाम का पद। जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज में पद एक भेदभाव अनेक।
जीआरएमसी एवं जेएएच प्रबंधन ने सुपर स्पेशलिटी अधीक्षक को किया बौना
जीआरएमसी एवं जेएएच प्रबंधन ने सुपर स्पेशलिटी अधीक्षक को किया बौनाSocial Media

ग्वालियर, मध्य प्रदेश। जीआरएमसी एवं जेएएच प्रबंधन ने मिलकर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल अधीक्षक को बौना बना दिया है। उनके पास सिर्फ नाम का पद है। इसका अंदाजा इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह आउटसोर्स के माध्यम से एक कर्मचारी की भर्ती नहीं कर सकते। उन्हें सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में आउसटसोर्स के माध्यम से कर्मचारी रखने की अनुमति जीआरएमसी एवं जेएएच के आकाओं से लेना पड़ती है। सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल अधीक्षक के पास सिर्फ नाम का पद है, पावर कुछ नहीं। इतना ही नहीं अगर वह किसी कमेटी में रहकर विरोध जताते हैं तो उन्हें कमेटी से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है।

गजराराज चिकित्सा महाविद्यालय और जयारोग्य अस्पताल प्रबंधन ने सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल अधीक्षक डॉ. गिरजा शंकर गुप्ता को बौना बना दिया है। वह अपनी इच्छानुसार सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में कोई काम नहीं कर सकते। यदि उन्होंने नियमानुसार अपनी इच्छा से कोई कार्य किया तो प्रबंधन तलब कर लेता है। इतना ही नहीं डॉ.गुप्ता के पास इतनी भी पावर नहीं है कि वह सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के लिए एक आउटसोर्स कर्मी की भर्ती कर सकें। यदि उन्होंने सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के लिए आउटसोर्स कर्मी चाहिए तो उन्हें जेएएच के आकाओं की अनुमति लेना पड़ती है। जबकि अधीक्षक के पास कम से कम इतनी पावर तो होना चाहिए कि वह आवश्यकता पड़ऩे पर आउटसोर्सकर्मी की भर्ती कर सके । वहीं जेएएच में अधीक्षक के बिना आदेश के आउटसोर्सकर्मियों की भर्ती धड्ल्ले से हो रही है। इतना ही जेएएच अधीक्षक के पास कई तरह के पवार हैं। वह किसी को भी किसी का प्रभारी बना सकते हैं, लेकिन डॉ.गुप्ता ऐसा कुछ नहीं सकते। जानकारी के अनुसार डॉ.गुप्ता को स त निर्देश दिए गए हैं कि उन्हे जीआरएमसी और जेएएच प्रबंधन के कहने पर कार्य करना होगा।

विरोध करने पर दिखाया बाहर का रास्ता :

सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल अधीक्षक डॉ. गिर्राजा शंकर गुप्ता को स्टोर कंटेंजेंसी कमेटी में शामिल किया गया था। जब 10 रूपए वाला मास्क 50 रूपए में खरीदने की बात आई तो डॉ.गुप्ता ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। उन्होंने साफ इंकार कर दिया कि यदि 10 रूपए वाला मास्क 10 रूपए में ही खरीदा जाएगा, तभी मैं मास्क खरीदने की अनुमति दे सकता हूं। जब एप्रुवल सीट पर डॉ.गुप्ता ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। तो उन्हें जीआरएमसी और जेएएच के दबंग आकाओं ने उन्हें कमेटी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

ये सवाल मांग रहे जवाब :

  • आखिर अधीक्षक के साथ भेदभाव क्यों ?

  • क्या डॉ.जीएस गुप्ता नाम के अधीक्षक हैं ?

  • क्या उन्हें आउटसोर्स कर्मी भर्ती करने की अनुमति मिलना चाहिए?

  • विरोध करने पर क्यों हटाना पड़ा कमेटी से ?

  • क्या सही व्यक्ति के लिए अस्पताल में स्थान नहीं ?

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