Gwalior : 800 करोड़ खर्च फिर भी पानी के लिए टेंकरों का इंतजार

ग्वालियर, मध्यप्रदेश : शहर में पानी संकट एक समस्या बना हुआ है ओर इसका निराकरण कराने के लिए कई तरह की योजनाएं भी बनाई जा चुकी हैं, लेकिन इसके बाद भी पानी संकट का समाधान नहीं हो सका है।
800 करोड़ खर्च फिर भी पानी के  लिए टेंकरो का इंतजार
800 करोड़ खर्च फिर भी पानी के लिए टेंकरो का इंतजारRaj Express

ग्वालियर, मध्यप्रदेश। शहर में पानी संकट एक समस्या बना हुआ है और इसका निराकरण कराने के लिए कई तरह की योजनाएं भी बनाई जा चुकी हैं, लेकिन इसके बाद भी पानी संकट का समाधान नहीं हो सका है। जल संकट को लेकर राजनैतिक दल भी आंदोलन कर चुके हैं और 800 करोड़ की राशि अमृत योजना पर खर्च की जा चुकी है, लेकिन इसके बाद भी लोगों को पानी के लिए टेंकरों का इंतजार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। पानी संकट के समाधान के लिए चंबल से पानी लाने के लिए 1986-87 में सपना स्थानीय लोगों ने देखा था और उस पर चर्चा भी हुई थी उसी समय से चंबल से पानी लाने की योजना पर हर साल चर्चा होती रही है, लेकिन अभी तक चंबल से पानी आने का सपना सिर्फ सपना बना हुआ है।

हर साल गर्मी के मौसम में पानी संकट सामने आता है तो निगम के अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि पानी संकट का समाधान करने के लिए नई योजना पर काम करना शुरू कर देते हैं, लेकिन बारिश होते ही इस योजना पर काम बंद कर दिया जाता है। हालात यह है कि शहर की आधी आबादी इस समय पानी संकट का सामना कर रही है और कई इलाकों में बोर से पानी आता है,लेकिन गर्मी का असर बोर की मशीन पर दिख रहा है, क्योंकि वह एक-दो दिन में ही साथ छोड़ देती है। यही कारण है कि आधे शहर में पानी संकट से जूझ रहे लोगो को पानी पहुंचाने के लिए टेंकरो का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन टेंकर चालक भी लोगो की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं और उनसे पैसे वसूल करने में लगे हुए हैं।

पानी के लिए रात को जागने मजबूर :

पानी की जरूरत का अहसास इस बात से लगाया जा सकता है कि लोगों को रात की नींद भी उसके लिए उड़ानी पड़ती है। पानी संकट में बिजली भी अपना रोल अदा करने में लगी हुई है, क्योंकि जिस समय पानी सप्लाई का समय निर्धारित रहता है उसी समय बत्ती गुल हो जाती है। इस बत्ती गुल के कारण लोग रात के समय नींद खराब कर नलों की टोटी से पानी टपकने का इंतजार करने मजबूर रहते हैं।

लीकेज से दो माह का होता है पानी बर्बाद :

तिघरा लाइनों के साथ ही हाईडेंट से पानी सप्लाई करने के लिए डाली जाने वाली लाइनों में लीकेज होना लगातार जारी बना हुआ है। लीकेज को दुरुस्थ करने के बाद पुन: लीकेज होना यह दर्शाता है कि आखिर कहीं तो लापरवाही है। शहर में अगर लीकेज की समस्या का समाधान कर दिया जाए तो कम से कम दो माह का पानी बर्बाद होने से बच सकता है, ऐसे में लोगों को पानी के लिए संकट का सामना नहीं करना होगा।

नलकूपों की मोटरें छोड़ रही साथ :

शहर में पानी सप्लाई करने के लिए खोदे गए नलकूपों की मोटरें भी हर दूसरे दिन साथ छोड़ रही है। इस संबंध में निगम के अधिकारियों का कहना है कि तापमान का असर नलकूपों की मोटरों पर भी पड़ रहा है। हालत यह है कि मोटर बदलने के बाद एक दिन पानी की सप्लाई हो पाती है कि दूसरे दिन पुन: मोटर जवाब दे जाती है, ऐसी स्थिति में लोगों को पानी के लिए पैसे खर्च कर टेंकरों का सहारा लेने मजबूर होना पड़ रहा है।

अमृत पर करोड़ों खर्च फिर भी पानी नहीं :

पानी बेहतर मिले इसको लेकर अमृत योजना पर करीब 800 करोड़ की राशि खर्च की जा चुकी है। इस योजना के शुरू होते ही जनप्रतिनिधि से लेकर निगम के अधिकारियों ने कहा था कि अब लोगों के घरो में दूसरी मंजिल तक आसानी से बिना टिल्लू के पानी पहुंच जाएगा, लेकिन सवाल यह है कि जब पानी ही उपलब्ध नहीं है तो फिर अमृत की लाइनों में पानी कहां से आएगा। यही कारण है कि अमृत योजना पर करोड़ों की राशि खर्च करने के बाद भी लोगो को टेंकरों का इंतजार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और जब टेंकर किसी मौहल्ले में पहुंचता है तो वहां पानी भरने को लेकर एक-दूसरे में मारामारी तक होने लगती है।

चंबल से पानी लाना फिलहाल सपना :

ग्वालियर शहर की प्यास बुझाने के लिए चंबल से पानी लाने की दो दशक से भी ज्यादा पुरानी मांग पर अभी तक कोई अमल नहीं हो सका है। ग्वालियर की प्यास बुझाने का काम रियासत के समय बनाया गया तिघरा बांध आज भी कर रहा है। जब तिघरा बांध बना था उस समय शहर की आबादी 50 हजार थी, लेकिन अब 15 लाख से भी ऊपर पहुंच गई है, लेकिन पानी का सहारा सिर्फ तिघरा ही है। चंबल का पानी पिलाने का सपना सबसे पहले 1986-87 में ग्वालियर के कुछ प्रबुद्ध जनों ने देखा था। 1991 में चंबल से पानी लाने की योजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाई गई थी, उस समय इस परियोजना पर 237.72 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान था। इसके बाद उस योजना पर ध्यान नहीं दिया। 2007 में युवा कांग्रेस ने चंबल जल यात्रा निकाल कर इस परियोजना को फिर से जीवित किया, लेकिन न नगर निगम आगे बढ़ी और न राज्य सरकार ने इस योजना पर हाथ रखा। 2013 में एक बार फिर जलसंकट को देखते हुए नगर निगम को चंबल के बजाय ककेटो के पानी की याद आई।परिषद ने एक बार फिर 328 करोड़ े की योजना बना कर राज्य शासन को भेजी थी। 30 जून 2014 को मेयर इन काउंसिल ने एक संकल्प पारित कर शहर के लिए चंबल से पानी लाने की योजना को सैद्धांतिक स्वीकृति दी थी पर योजना पर अमल अभी तक नहीं हो सका है जिसके कारण शहर के लोगों के टेंकरों का इंतजार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

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