Gwalior : तानसेन समारोह के बाद महाराज बाड़े पर पुत्रों के साथ सरोद बजाएंगे उस्ताद अमजद अली खान
ग्वालियर, मध्यप्रदेश। संगीत नगरी ग्वालियर से ताल्लुक रखने वाले विश्वविख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान एक बार फिर चर्चा में है। इसकी वजह यह है कि तानसेन सम्मान से अलंकृत हो चुके उस्ताद ग्वालियर तो आ रहे हैं, लेकिन वे तानसेन समारोह में नहीं बल्कि तानसेन समारोह समाप्त होने के बाद 25 दिसम्बर को गौरव दिवस पर महाराज बाड़े पर अपने पुत्रों के साथ प्रस्तुति देंगे।
तानसेन समारोह में पूछपरख नहीं होने को लेकर उस्ताद का दर्द समय-समय पर मीडिया के माध्यम से उजागर होता रहा है। वे कहते हैं कि मेरे घर में ही मेरी पूछपरख नहीं होती है, जबकि दिलचस्प बात यह है कि वे खुद को ग्वालियर घराने की बजाय बंगस घराने का कहते हैं। सरोदघर में उनके पूवर्जों के वाद्ययंत्रों का महज संग्रहालय बनकर रह गया है। अपने पुत्रों के सिवाय ग्वालियर के किसी भी बच्चे को उन्होंने यहां सरोद नहीं सिखाया, जबकि सरोदघर में एक अच्छा सरोद सिखाने का प्रशिक्षण केंद्र बनाने के लिए सभी साधन और सुविधाएं मौजूद हैं।
एक बार तानसेन समारोह की स्थानीय समिति की बैठक में उनके प्रतिनिधि ने यह सवाल उठाया था कि उस्ताद को अपने घर में ही आयोजित तानसेन समारोह में आमंत्रित नहीं किया जाता। प्रतिउत्तर में संस्कृति विभाग के उपनिदेशक राहुल रस्तोगी ने कहा था कि उस्ताद के फन पर सबको गर्व है। वे जिस भी सभा में चाहें प्रस्तुति दे सकते हैं, इससे श्रोता और आयोजक दोनों को खुशी होगी, लेकिन जब उनके पुत्रों की प्रस्तुति आई तो अफसरों ने साफ कहा कि उस्ताद की तुलना उनके बेटों से नहीं की जा सकती। उनका फैसला तो ज्यूरी उसी तरह करेगी जिस तरह अन्य कलाकारों का चयन होता है।
भोपाल में चाहते थे तानसेन सम्मान :
यहां बताना दिलचस्प होगा कि 2001 में उस्ताद अमजद अली खान को तानसेन सम्मान प्रदान करने की घोषणा हुई थी, लेकिन वे ग्वालियर के बजाय अपना सम्मान समारोह भोपाल में करवाना चाहते थे। इसका तानसेन के शहर में जर्बदस्त विरोध हुआ, जिसकी वजह से उन्हें न चाहते हुए भी सम्मान लेने ग्वालियर आना पड़ा, जिसकी वजह से तानसेन समारोह के श्रोताओं को उनका सरोद सुनने को मिला था।
मानद उपाधि लेने भी नहीं आए ग्वालियर :
राजा मानसिंह कला एवं संगीत विश्वविद्यालय ने 2013 में आयोजित दीक्षांत समारोह में शिक्षा जगत की सबसे बड़ी मानद उपाधि डीलिट से नवाजने का निर्णय लिया था, लेकिन वे ये सम्मान लेने भी ग्वालियर नहीं आए। उन्होंने अपने प्रतिनिधि को भेजा, जबकि पिछले दिनों मानद उपाधि लेने शहर में उस्ताद जाकिर हुसैन आईटीएम युनिवर्सिटी में आए।
बिन बुलाए आए थे हनुमानगढ़ी के महंत :
संस्कृति विभाग के मान मनब्वल के बाद भी जब उस्ताद तानसेन समारोह में आने को राजी नहीं हैं, वहीं अयोध्या हनुमानगढ़ी के महंत रमाशंकर को जब तानसेन समारोह में नहीं बुलाया गया तो वह बिन बुलाए ही तानसेन की समाधि पर अपने पखावज लेकर आ धमके और उन्होंने ऐसी पखावज बजाई कि लोग समारोह को छोड़कर उनकी पखावज सुनने एकत्रित हो गए। यहां बता दें कि पं. भीमसेन जोशी, पं. जसराज, पं. हरिप्रसाद चौरसिया, पं. छन्नूलाल मिश्रा जैसे अनेक दिग्गज कलाकार यहां प्रस्तुति दे चुके हैं और देश दुनिया का हर कलाकार यहां हाजिरी लगाने के लिए लालायित रहता है, लेकिन उस्ताद की बात अलग है।
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