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Gwalior News: अंचल की डेढ़ दर्जन सीट पर भाजपा में घमासान होने की संभावना, टिकट वितरण में होगी मुश्किल

BJP POLITICS : भाजपा आलाकमान ने साफ तौर पर कह दिया है कि मैदान में उसी उम्मीदवार को उतारा जाएं तो पार्टी द्वारा कराए गए सर्वे में मजबूत नाम आ रहा है।

ग्वालियर। राजनीति में पहले विचारो को प्रमुखता दी जाती थी ओर टिकट न मिलने पर भी नेता अपने ही दल में रहकर पार्टी के लिए काम करते रहे है, लेकिन समय बदलने के साथ ही नेताओ की निष्ठा में भी बदलाव आया है ओर अब विचार नहीं बल्कि स्वंय का हित देखकर नेता निर्णय लेते है। यही कारण है कि चुनाव के समय दलबदलुओ की संख्या एकाएक बढ़ जाती है, क्योंकि हर दावेदार अपने लिए टिकट चाहता है, लेकिन एक विधानसभा में सिर्फ एक को ही टिकट मिल सकता है। आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए अंचल में डेढ़ दर्जन से अधिक विधानसभा सीटे ऐसी है जिनमें टिकट के समय घमासान होने की संभावना दिख रही है।

भाजपा के अंदर वैसे तो चुनाव के समय टिकट वितरण का काम संगठन के हिसाब से होता है, लेकिन इस बार कारण दूसरे नजर आ रहे है, क्योंकि भाजपा में कुछ नए लोग भी आ गए है ओर वह वर्तमान में भाजपा सरकार के पालनहार बने हुए है जिसके कारण उनको नकारना खासा मुश्किल भरा हो सकता है। इस समय मध्य प्रदेश की सियासत में आयाराम गयाराम की सुगबुगाहट तेज हो गई है। खासकर उन सीटों पर जहां सिंधिया समर्थक नेता विधायक हैं। हालांकि भाजपा संगठन के अन्दर संभावित भूचाल को थामने के लिए भाजपा आलाकमान ने साफ तौर पर कह दिया है कि मैदान में उसी उम्मीदवार को उतारा जाएं तो पार्टी द्वारा कराएं गए सर्वे में मजबूत नाम आ रहा है।

अब सवाल यह उठने लगा है जो नए नवेले भाजपाई बने है वह अपने नाम की सिफारिश के लिए अपने नेता की तरफ टकटकी लगाएं हुए है, लेकिन सवाल यह है कि क्या उनके नेता सिफारिश करते है कि नहीं, क्योंकि नेता को यह पता है कि भाजपा में सिफारिश से नहीं बल्कि संगठन के हिसाब से टिकट का वितरण किया जाता है। वैसे केन्द्रीय मंत्री सिंधिया भी अपने समर्थको से साफ कह चुके है कि सर्वे में जो नाम आएंगे टिकट उन्ही को मिलेगा इसलिए किसी सिफारिश के फेर में मत रहना। इसके कारण चुनाव के वक्त सर्वाधिक असर ग्वालियर-चम्बल संभाग की सियासत में देखने को मिल सकता है क्योंकि यही वह इलाका है जहां सिंधिया समर्थक कांग्रेस विधायकों की बगावत के चलते प्रदेश में सत्ता का परिवर्तन हुआ था।

सत्ता परिवर्तन के बाद अब मुश्किल....

वर्ष 2020 में अंचल के कांग्रेस विधायको की बगावत के चलते ही कमलनाथ सरकार की विदाई हुई थी। लेकिन अब आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए अंचल में भाजपा के लिए हालात पहले से ज्यादा खतरनाक दिख रहे है। यहां बता दे कि भाजपा के लिए अंचल में करीब डेढ़ दर्जन विधानसभा क्षेत्र ऐसे है जहां टिकट वितरण के बाद बगावती स्वर सुनाई दे सकते है साथ ही इधर से उधर जाने का सिलसिला भी देखने को मिल सकता है। वैसे भाजपा के अंदर जो हालात है उसको देखते हुए कांग्रेस नेता भी भाजपा के असंतुष्ट नेताओ पर नजर रखे हुए है।

भाजपा के लिए सबसे अधिक दिक्कत अंचल की उन विधानसभा क्षेत्रो में आने वाली है जहां नए नवेले भाजपाई विधायक है। इनमें ग्वालियर विधानसभा के अलावा ग्वालियर पूर्व, मुरैना, भितरवार, मेहगांव, डबरा, अम्बाह, दिमनी, सुमावली, बमौरी, अशोकनगर, मुंगावली, पोहरी, करैरा, भाण्डेर, गोहद, भिण्ड के साथ ही कुछ अन्य विधानसभा क्षेत्र है जहां सिंधिया समर्थक टिकट के लिए दावेदारी ठोकेगे जबकि उन्ही विधानसभा क्षेत्रो में पुराने भाजपाई भी ताल ठोकने के लिए अभी से तैयार हो गए है।

अब सवाल यह है कि भाजपा नए व पुराने के बीच किस तरह से तालमेल बैठा सकती है उस पर राजनीतिक पंडितो की नजर टिकी हुई है, क्योंंकि टिकट वितरण के बाद बगावती स्वर सुनने की संभावना अधिक दिखाई दे रही है। डेढ़ दर्जन विधानसभा क्षेत्र वह है जहां कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए विधायको ने इस्तीफा दे दिया था ओर उप चुनाव में मैदान में उतरे थे जिसमे से कुछ हार गए जबकि कुछ जीते थे जिसके कारण अब हारने वाले भी इस चुनाव में अपनी दावेदारी जता सकते है। वैसे भाजपा का संगठन इस समय बगावती स्वर को थामने के लिए अभी से सक्रिय हो गया है जिसको लेकर कुछ नेताओ को जिम्मेदारी भी सौप दी गई है।

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