Indore : फिर बनने लगीं प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां

इंदौर, मध्यप्रदेश : इंदौर में थोक में बनने वाली प्रतिमाएं इंदौर से आसपास के शहरों, कस्बों और गांवो में भी सप्लाई की जाती हैं। यहां बनने वाली अधिकांश प्रतिमाएं प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई जा रही हैं।
फिर बनने लगीं प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां
फिर बनने लगीं प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियांसांकेतिक चित्र

इंदौर, मध्यप्रदेश। आगामी माह में गणेश उत्सव के लिए घर-घर प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। इसके लिए मूर्तिकारों ने 1 माह पहले से ही प्रतिमा निमार्ण के आर्डर लेना प्रारंभ कर दिए हैं। इंदौर में थोक में बनने वाली प्रतिमाएं इंदौर से आसपास के शहरों, कस्बों और गांवो में भी सप्लाई की जाती हैं। यहां बनने वाली अधिकांश प्रतिमाएं प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई जा रही हैं। प्रदेश में जल प्रदूषण के लिए खतरनाक मानते हुए पीओपी से बनी प्रतिमाओं के निर्माण और पानी में विर्सजन पर रोक लगी है। लेकिन इस दिशा में कोई सख्ती नहीं होने से हर साल लाखों की संख्या में प्रतिमा निर्माण किया जाता है और नदियों और जल स्त्रोत में विर्सजन भी किया जा रहा है।

पीओपी नहीं घुलता पानी में :

मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल द्वारा हर वर्ष त्यौराहों के पहले प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाओं के संबध में चेतावानी जारी की जाती है। वहीं, जिला प्रशासन भी मूर्ति निमार्ण से जुड़े व्यवसायियों को पीओपी का उपयोग रोकने के लिए आदेश जारी करती है। जानकारी के अनुसार पीओपी से निर्मित प्रतिमाएं पानी में घुलनशील नहीं होती हैं। ये लम्बे समय पानी में ऐसी ही रहती हैं। साथ ही पीओपी में डलने वाले घातक केमिकल जलीय जीवों के लिए घातक होते और जल प्रदूषित हो जाता है। ऐसे में पीओपी की प्रतिमाओं के उपयोग पर रोक लगाई जाती है।

मिट्टी की प्रतिमाओं का निर्माण मंहगा :

प्रदेश में गणेश उत्सव और नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में प्रतिमाओं का निर्माण और विर्सजन किया जाता है। प्रदूषण नियंत्रण मंडल मिट्टी से र्निमित प्रतिमाओं को उपयोग करने की सलाह देता है। लेकिन मिट्टी से बनी प्रतिमाओं के निर्माण में लागत अधिक आने से लोग कम ही खरीदते हैं। बड़ी साइज की प्रतिमाओं के निमार्ण में अधिक समय लगने और कीमत बढ़ जाने से खरीदार नहीं मिलते हैं। ऐसे में मूर्ति निर्माता आर्डर पर ही निमार्ण करते हैं। वहीं पीओपी से बनी प्रतिमाओं को सांचे में डालने और कुछ देर छोड़ने पर ही मूर्ति तैयार हो जाती है। जिसे कलर कर दिया जाता है।

पहले ही पंहुच जाती है विक्रेताओं के पास :

बीते कुछ वर्षो में जिला प्रशासन और मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल की कोशिश से आम लोगो में भी जागरूकता आई है। अनेक स्वयंसेवी संगठन भी कार्यशाला का आयोजन कर मिट्टी से प्रतिमाओं के निमार्ण का प्रशिक्षण देते हैं। वहीं, बाजार में भी लोग मिट्टी से बनी प्रतिमाओँ की मांग करने लगे हैं। फिर भी पीओपी की मूर्तिओं का उपयोग बड़ी संख्या में किया जा रहा है। मूर्ति बनाने वाले उत्सव के ठीक पहले जिला प्रशासन की सख्ती से बचने के लिए पहले ही आर्डर लेकर सप्ताह भर पहले ही उन्हें थोक खरीददार को भेज रहे हैं। फिर त्यौहार पर प्रशासन की चेतावनी जारी होने पर तैयार प्रतिमाओं को बेचने की अनुमति मांगते हुए फिर से पीओपी की प्रतिमाओं को बेचना शुरू कर दिया जाता है। इसे रोकने के लिए शासन स्तर पर सख्त नियम और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार विभाग की आवश्कता है।

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