Anuppur : अपात्र को सीईओ बना, दे दिया वित्तीय अधिकार

अनूपपुर, मध्यप्रदेश : जुगाड़ व चाटुकारिता के सहारे मंडल संयोजक बने जनपद जैतहरी के सीईओ। दो दिनों में सीईओ ने बांटी करोड़ों की खैरात, राजपत्रित को किया दरकिनार।
अपात्र को सीईओ बना, दे दिया वित्तीय अधिकार
अपात्र को सीईओ बना, दे दिया वित्तीय अधिकारSitaram Patel

अनूपपुर, मध्यप्रदेश। जैतहरी जनपद बीते कुछ वर्षो से जुगाड़ में माहिर नौकरशाहों के लिए चारागाह बन गई है, नये मामले में मंडल संयोजक को सीईओ पद दिलाने और दो दिनों में बिना पात्रता के करोड़ों के भुगतान के गड़बड़झाले में जनपद सीईओ के साथ जिपं भी साथ खड़े नजर आ रहे हैं, वहीं राजपत्रित अधिकारी को दरकिनार कर अपात्र के नाम डीएससी निर्मित कर आहरण-संवितरण के अधिकार दे दिये।

11 जून 2021 को अपर कलेक्टर सरोधन सिंह ने अपने विभागीय आदेश क्रमांक-467 के माध्यम से मंडल संयोजक को जैतहरी जनपद के सीईओ की कुर्सी से नवाजा। हालांकि उन्होने पत्र में यह स्पष्ट किया कि सतीश तिवारी को जनपद सीईओ जैतहरी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा जाता है एवं कोषालयीन आहरण संवितरण संबंधी अधिकार एसडीएम जैतहरी को दिये जाते हैं। जब तक आयुक्त पंचायत एवं ग्र्रामीण विकास विभाग से अनुमोदन प्राप्त नहीं होता तब तक एसडीएम ही वित्तीय मामले देखेंगे। हांलाकि जैतहरी जनपद सीईओ की कुर्सी के लिए नियमों की होली जलाना कोई नया मामला नहीं है, इस मामले में जिला पंचायत के सीईओ मिलिंद नागदेवे की बड़ी भूमिका बताई जाती है, उनकी इस भूमिका ने कुछ वर्ष पूर्व कोतमा एसडीएम रहने के दौरान उनके द्वारा एनएच-43 के भूमि अधिग्रहण के समय हुए मुआवजेे के घोटाले की याद ताजा कर दी।

जुगाड़ से बना दी डीएससी :

पुष्पराजगढ़ में मंडल संयोजक रहे सतीश तिवारी को जैतहरी लाने के फेर में ही पहले अनूपपुर के सीईओ का प्रभार सौंपा गया, दूसरी तरफ इस दौरान श्री त्रिपाठी जैतहरी व अनूपपुर के सीईओ के प्रभार पर थे, पुराने कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर के यहां से स्थानांतरण और नये कलेक्टर के आने और स्थानीय माहौल को समझने के बीच में ही जिला पंचायत के सीईओ ने यह खेल कर दिया। आरोप तो यह है कि मिलिंद नागदेवे नियमों से परे हटकर न सिर्फ सतीश तिवारी को सीईओ बनाने व डीएससी जनरेट करने का का खेल खेला, बल्कि असली खेल तो डीएससी जनरेट होने के बाद शुरू हुआ।

दो दिनों में किये करोड़ों के भुगतान :

सतीश तिवारी और मिलिंद नागदेवे की इस जोडी को जैतहरी सीईओ की कुर्सी कब्जे में करने तथा डीएससी जनरेट के साथ ही आहरण व संवितरण के अधिकार अर्जित करने के लिए कितनी जल्दी थी कि यह इस बात से साफ हो गया कि आईडी जनरेट होते ही दो दिनों में करोडों के भुगतान कर दिये। कुछेक वेंडरों को आईडी जनरेट होते ही लाखों के भुगतान की खबर है, इस कतार में दर्जनों और भी थे, जिन्हे कमीशन की बोली लगाकर दो दिनों में रतजगा कर भुगतान किये गये।

सचिवों ने किया विरोध :

सतीश तिवारी के जैतहरी प्रभार लेने के अगले दिन हुए करोडो के खेल के पीछे एक चर्चा यह भी रही कि जिपं सीईओ ने नियमों को ताक पर रखकर उसे कुर्सी और आहरण के अधिकार तो दिलवा दिये, लेकिन डर इस बात का था कि यदि पूरी जानकारी नवागत कलेक्टर तक पहुंचेगी तो किसी भी समय सीईओ पर गाज गिर सकती है। दूसरी ओर लगातार हुए करोडो के भुगतान से सचिव संघ भी नाराज दिखा, उनका आरोप था कि बीते कई सप्ताहों व महीनों से लंबित भुगतान पहले से पडे, जिन्हे प्राथमिकता से करना था, लेकिन 7 से लेकर 10 प्रतिशत तक चले कमीशन के खेल में जिस-जिस ने बढकर बोली लगाई उनका भुगतान पहले क्रम में कर दिया गया।

योग्यता पर भारी जुगाड़ :

जिले में बीते दो से तीन वर्षो से जिसकी लाठी, उसकी भैस की कहावत चरितार्थ हो रही है, जैतहरी के साथ ही अनूपपुर और पुष्पराजगढ़ तक सीईओ की कुर्सी में इस दौरान नियुक्त किये गये और हटाये गये नौकरशाहों के पीछे वहीं खेल खेला गया जो इन दिनों जैतहरी में खेला जा रहा है। सतीश तिवारी से पहले इमरान सिद्दकी की सीईओ के पद पर थे, जिनके ऊपर इसी जनपद के वेंकटनगर सरपंच की शिकायत पर आपराधिक मामला कायम हुआ था, लेकिन आल-इज-वेल की तर्ज पर पुराने कलेक्टर के ढर्रे पर नई व्यवस्था भी जारी है।

राजपत्रित अधिकारी दरकिनार :

जनपद जैतहरी में सतीश तिवारी से पहले राजेन्द्र त्रिपाठी सीईओ थे, जिनकी नियुक्ति सीधे सीईओ की थी और वे राजपत्रित अधिकारी की श्रेणी में भी आते थे, कोषालय से आहरण संवितरण के अधिकारों के अलावा मनरेगा व अन्य योजनाओं से राशि के आहरण के अधिकार नियमत: राजपत्रित अधिकारी को ही होने चाहिए, 11 जून को जारी हुए पत्र में एसडीएम जैतहरी को उक्त अधिकार देने का उल्लेख भी किया गया, लेकिन पर्दे के पीछे जब जुगाड और कमीशन का खेल चला तो योग्यता और कायदे धरे के धरे रह गये।

इनका कहना है :

कलेक्टर की अनुपस्थिति में मेरे द्वारा आदेश जारी किया गया है, पत्र में आहरण संवितरण का अधिकार एसडीएम को दिये गये है, अब जिपं सीईओ डीएससी कैसे और कब बना दिये इसकी जानकारी मुझे नहीं है।

सरोधन सिंह, अपर कलेक्टर, अनूपपुर

शासन से वहां पर कोई सीईओ पदस्थ नहीं है, विभाग से इसका अनुमोदन चाहा है, जब तक निणर्य नहीं हो जाता है, चूंकि समय सीमा में भुगतान करना होता है, उसके अभाव में कार्य रूक जायेगा। तत्कालीन कार्यव्यवस्था के रूप से हमने इनको पदस्थ किया है।

सुश्री सोनिया मीणा, कलेक्टर, अनूपपुर

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