निकाय चुनाव परिणाम, विस चुनाव के लिए कहीं ओपिनियन पोल तो नहीं?
निकाय चुनाव परिणाम, विस चुनाव के लिए कहीं ओपिनियन पोल तो नहीं?Raj Express

निकाय चुनाव परिणाम, विस चुनाव के लिए कहीं ओपिनियन पोल तो नहीं?

इन चुनाव परिणाम को यदि विधानसभा चुनाव के लिए ओपिनियन पोल मान लें तो फिर प्रदेश में भाजपा की राह जहां आसान होती दिख रही है, वहीं कांग्रेस के लिए राह कांटों भरी हो सकती है।

हाइलाइट्स :

  • यदि इसे ओपिनियन पोल मान ले तो फिर भाजपा की राह हो सकती है आसान।

  • कांग्रेस के लिए होगी कांटों भरी राह।

  • इस चुनाव में भी भाजपा ने पाया ही है और कांग्रेस ने केवल खोया है।

  • जनजातीय समुदाय का भरोसा जीतने के मामले में अव्वल साबित हुई भाजपा।

भोपाल, मध्यप्रदेश। प्रदेश के 19 नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम सोमवार को सामने आ गए है। वैसे तो ये चुनाव प्रदेश की आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से बहुत छोटा है, लेकिन इस चुनाव में दो धुर आदिवासी बहुल जिला धार और बड़वानी भी शामिल था। जहां तक इन दोनों ही जिलों की बात करें तो यहां के निकाय चुनाव में भले ही धार जिले में कांग्रेस ने बढ़त बनाती दिख रही है, लेकिन भाजपा ने बड़वानी सहित धार में जिस तरह से पैठ बनाई है, उससे कांग्रेस के खेमे में बेचैनी फिर बढ़ गई है। ये इसलिए भी कि अब प्रदेश में विधानसभा चुनाव में महज आठ माह ही बाकी है। इन चुनाव परिणाम को यदि विधानसभा चुनाव के लिए ओपिनियन पोल मान लें तो फिर प्रदेश में भाजपा की राह जहां आसान होती दिख रही है, वहीं कांग्रेस के लिए राह कांटों भरी हो सकती है। ये इसलिए कि इस बार कांग्रेस के सामने आदिवासी बहुल क्षेत्रों में अपना किला बचाने की बड़ी चुनौती होगी। मौजूदा हालातों में भाजपा कांग्रेस के किले में सेंध लगाती साफ नजर आ रही है।

निकाय चुनाव परिणाम इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस यदि सत्ता की दहलीज पर पहुंची थी तो इसमें जनजातीय बहुल क्षेत्रों का बड़ा योगदान रहा है। यहां कि 49 सीटों में से कांग्रेस ने 28 सीटें जीत ली थी, वहीं भाजपा को महज 21 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था, लेकिन लगता है कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव कुछ अलग ही करवट लेंगे। ये इसलिए भी कि निकाय चुनाव में भाजपा ने तीन नगर पालिका कांग्रेस से छीन ली है। पहले यहां कांग्रेस काबिज थी, लेकिन इस बार बड़वानी, धार और मनावर में तस्वीर बदल गई है। भाजपा ने यहां कांग्रेस को पीछे धकेल दिया है, वहीं सेंधवा नगर पालिका ऐसा है, जिसे बचाने में भाजपा सफल रही है। इतना जरुर हुआ कि प्रतिष्ठापूर्ण पीथमपुर नगर पालिका जो कि पहले भाजपा के पास थी, उसे कांग्रेस ने छीन ली है। एक बात और कि इन नगर पालिका में पहले के मुकाबले भाजपा की सीटें दोगुना तक बढ़ी हैं।

दो नगर परिषद भी भाजपा ने कांग्रेस से छीनी :

19 निकायों में से 5 नगर पालिका और 13 नगर परिषद शामिल थे। इनमें से भाजपा पहले की तरह 6 नगर परिषदों में बरकरार है। इनमें ओंकारेश्वर, पानसेमल, जैतहारी, पलसूद, राजपुर और डही शामिल है। इसके अलावा दो नगर परिषद ऐसी हैं, जहां पहले कांग्रेस का बहुमत था, लेकिन इन दोनों ही नगर परिषद को भाजपा ने कांग्रेस से छीन ली है। इनमें खेतिया और अंजड़ शामिल हैं। इधर पलसूद में निर्दलीय भाजपा के पक्ष में आ गए हैं, जिससे भाजपा को यहां बहुमत अब आसानी से हासिल हो गया है। धामनोद और कुक्षी दो नगर परिषद ऐसे रहे हैं जिसे कांग्रेस ने भाजपा ने छीनकर हिसाब बराबर करने की कोशिश की है।

इन चुनाव परिणाम का इसलिए बढ़ा महत्व :

प्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें है। इनमें से 49 जनजातीय वर्ग के लिए और 35 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। प्रदेश के कुल वोटों में लगभग 21 फीसदी जनजातीय वर्ग से हैं, वहीं अनुसूचित जाति वर्ग के वोट लगभग 15 फीसदी है। पिछले विधानसभा चुनाव में जनजातीय क्षेत्रों में कांग्रेस ने भाजपा के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया था। इस कारण उसे बहुमत के करीब पहुंचने में मदद मिली थी, वहीं भाजपा कुल वोट अधिक पाने के बाद भी सीट के मामले में कांग्रेस से पिछड़ गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज 21 जनजातीय सीटें जीतने में कामयाबी मिली थी, वहीं कांग्रेस के खाते में 28 सीटें गई थी। यदि सीटें कांग्रेस को सत्ता की दहलीज तक पहुंचाने में निर्णायक साबित हुई थी, लेकिन इस बार निकाय चुनाव में जिस तरह से भाजपा ने कांग्रेस पर बढ़त ली है, उससे यह साफ है कि इसका असर अगले विधानसभा चुनाव में भी दिखेगा। ऐसे में ये परिणाम दोनों ही दलों के लिए अपने किले को मजबूत करने का समय है। जिस तरह की स्थिति अब तक नजर आ रही है। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि भाजपा जनजातीय बहुल क्षेत्रों में इस बार सेंधमारी कर सकती है। लिहाजा इस छोटे चुनाव के परिणाम का महत्व बढ़ गया है। भाजपा एक बार फिर जनजातीय वर्ग का भरोसा जीतती हुई दिख रही है। ऐसे में कहीं ये 19 निकायों के चुनाव परिणाम विधानसभा चुनाव के लिए ओपिनियन पोल साबित न हो जाए? इस बात की संभावना बढ़ गई है।

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