शराब दुकानों के टेण्डर
शराब दुकानों के टेण्डरRE Gwalior

liquor Shop Tenders : महंगी शराब दुकानों के आरक्षित मूल्य से कम में डाले टेण्डर , ठेकेदारों ने बनाई मोनोपॉली

ग्वालियर जिले में 112 दुकाने है जिसके 45 समूह है। अब 8 समूह की 18 मदिरा महत्वपूर्ण शराब दुकानो का रिन्युवल कराना आबकारी विभाग के लिए परेशानी का सबब बन गया है

ग्वालियर। नई आबकारी पॉलिसी आने के  बाद से यह लगने लगा था कि दुकानदार शायद नवीनीकरण में दिलचस्पी न दिखाएं, ऐसा दिखाई  भी दिया, क्योंकि ठेकेदारो ने उन्ही दुकानों का रिन्युवल कराया है जो सस्ती थी। जो दुकाने महंगी है उनको लेकर ठेकेदारो ने मोनोपॉली बना ली है ओर वह आरक्षित मूल्य से करीब 15 से 20 प्रतिशत कम रेट भरकर टेण्डर डाल रहे है जिसके कारण कई बार टेण्डर की प्रक्रिया आगे बढ़ चुकी है। ग्वालियर जिले में 112 दुकाने है जिसके 45 समूह है। अब 8 समूह की 18 मदिरा महत्वपूर्ण शराब दुकानो का रिन्युवल कराना आबकारी विभाग के लिए परेशानी का सबब बन गया है,क्योंकि यह सभी दुकाने मंहगी है ओर उनको ठेकेदार आरक्षिक मूल्य से कम दर पर लेने के लिए पूरी तरह से लामबंद्ध हो गए है।

वित्तीय साल समाप्त होने में मात्र 6 दिन का समय बचा है ऐसे में विभाग को 8 ग्रुप की 18 दुकाने ठेके पर देने की टेंशन सता रही है। पहले चरण में  नवीनीकरण 29 करोड़ राशि से अधिक में हुआ जिसमें जिले के 45 समूह की 112 कंपोजिट दुकानो में से 36 समूहो की 92 कंपोजिट मदिरा दुकानो का 326 करोड़ में नवीनीकरण आवेदन प्राप्त हुए थे जो जिले के कुल आरक्षित मूल्य 438 करोड़ का 75 प्रतिशत है। 35  समूहो पर पिछले साल की तुलना में 10 प्रतिशत( 29 करोड़) राशि अधिक प्राप्त हुई है। अब जो 8 ग्रूप की 20 दुकानें बची है उनके लिए कई बार टेण्डर लिए जा चुके है, लेकिन आरक्षिक मूल्य से कम दर प्राप्त होने से उन टेण्डरो को रिजेक्ट किया जाता रहा है। अब परेशानी यह है कि शराब ठेकेदारो ने सिंडीकेट बना लिया है, पहले ठेकेदार शराब दुकान लेने के बाद भाव को लेकर सिंडीकेट बनाते थे, लेकिन इस बार महंगी दुकानो को लेकर उन्होंने पहले ही एकजुट होकर सिंडीकेट बना लिया है ओर यह भी तय कर लिया है कि जो आरक्षित मूल्य है उससे 15 से 20 प्रतिशत कम रेट के ही टेण्डर डालना है। अब इसी से विभाग के अधिकारी परेशानी महसूस कर रहे है, क्योकि अगर 31 मार्च तक उक्त दुकानो के टेण्डर नहीं हुए तो उक्त दुकाने विभाग को ही संचालित करना होगी जिससे विभाग को एक मुश्त मिलने वाली राशि प्राप्त नहीं हो सकेगी।  

नई नीति के तहत 10 प्रतिशत फीस बढाई गई थी....

नई आबकारी नीति जब बनाई गई थी तो उसके तहत शराब दुकानो को रिन्युवल कराने के लिए मात्र 10 प्रतिशत राशि बढ़ाई गई थी, जबकि इससे पहले यह राशि 15 प्रतिशत रहती थी। इसके पीछे कारण यह था कि 1 अप्रैल से अहाते बंद होने से जो नुकसान शराब दुकानदार को होता उसे ध्यान में रखा गया था। अब शुरू आती चरण में तो 36 समूहो की 92 कंपोजिट मदिरा दुकानों का रिन्युवल तत्काल हो गया था ओर उसके बाद आबकारी विभाग के अधिकारी राहत महसूस कर रहे थे कि चलो जो शेष दुकाने है वह भी जल्द ठेकेदार रिन्युवल करा लेगें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब ठेकेदार आरक्षित मूल्य से कम दर पर दुकाने लेने के लिए लामबंद्ध हो गए है ओर एक भी ठेकेदार आरक्षित मूल्य के बराबर राशि का टेण्डर नही डाल रहा है। 

यह महत्वपूर्ण स्थानो की दुकाने रह गई शेष.....

पहले चरण मेें अधिकांश वह दुकाने रिन्युवल करा ली गई थी जो सस्ती थी, लेकिन उसके बाद शहर की महंगी दुकानो को लेने से ठेकेदार पीछे हट रहे है। बताया गया है सिटी सेंटर, नाका चन्द्रवदनी, रोशनीघर सहित कुछ महत्वपूर्ण स्थानो की दुकाने जिनसे विभाग को काफी राजस्व मिलता था ओर काफी महंगी इस कारण थी , क्योंकि वह दुकाने शहर की प्राइम लोकेशन पर है उनको ठेकेदार लेने से पीछे इस कारण हट रहे है, क्योंकि ठेकेदारो ने एक तरह से मोनोपॉली बनाकर उन दुकानो को आरक्षित मूल्य से कम दर पर लेने का मन बना लिया है। इसको लेकर अब विभाग के अधिकारी ठेकेदारो को समझाने में लगे हुए है, लेकिन ठेकेदारो ने साफ कर दिया है कि जो आरक्षित मूल्य है उससे कम दर पर ही उक्त दुकाने ले सकते है।  बताया गया है कि जो 8 ग्रुप की 18 दुकाने बची थी उनमें से 6 ग्रुप के लिए टेण्डर आएं है ओर उन टेण्डरो को जब खोला गया तो औसतन करीब 15 से 20 प्रतिशत आरक्षित मूल्य से कम दर लिखी हुई है। अब उसको लेकर क्या निर्णय लिया जाता है यह सोमवार को ही पता चल सकेगा।

इनका कहना है...

जिले में 8 ग्रुप की 18 दुकाने रिन्युवल होने से बची थी जिनको लेकर दो बार टेण्डर हो चुके है, लेकिन हर बार आरक्षित मूल्य से कम दर आ रही है जिसके  कारण टेण्डर आगे बढ़ाते रहे। अब 6 ग्रुप के लिए टेण्डर आएं है, लेकिन उन टेण्डरो में आरक्षित मूल्य से 15 से 20 प्रतिशत कम दर आई है। अब इस मामले को आबकारी आयुक्त के पास भेजा जा रहा है ओर वह क्या निर्णय लेते है उसके बाद ही तय हो पाएगा कि इसी दर पर दुकाने दी जाना है या फिर आगे टेण्डर नए सिरे से बुलाएं जाना है।

नरेश चौबे, संभागीय आबकारी उपायुक्त 

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