33 वें राजा बने कीर्ति बहादुर शाह
33 वें राजा बने कीर्ति बहादुर शाहRaj Express

आदिवासी शाह परिवार का क्षेत्र में है राजघराना, अभी भी होता है राजतिलक, निभाई जाती है राजसी परंपराएं

शोभापुर कस्बे का आदिवासी समुदाय अभी भी सांकेतिक रूप से ही सही लेकिन राज परंपरा का निवर्हन कर रहा है। यहां पुराने राजा के परलोकवासी होने पर नए राजा का विधिवत राज तिलक किया जाता है।

नर्मदापुरम, मध्यप्रदेश। देश में राजे रजवाड़े और रियासतें भले ही खत्म हो गई हो लेकिन जिला मुख्यालय से चंद किमी दूर स्थित शोभापुर कस्बे का आदिवासी समुदाय अभी भी सांकेतिक रूप से ही सही लेकिन राज परंपरा का निवर्हन कर रहा है। यहां पुराने राजा के परलोकवासी होने पर नए राजा का विधिवत राज तिलक किया जाता है, राजा पुराने जमाने की तरह आज भी बागर (गद्दी) पर बैठकर फैसला देते है। नाचना गाना होता है और रिसायत की परंपरा आज भी निभाई जा रही है। वर्तमान में कीर्ति बहादुर शाह का राजतिलक किया गया है और वे राजा है। यह सहाय परिवार की 35 भी पीढ़ी है।

अकबर के शासन से आज तक इस वंश की वंशावली उपलब्ध है जिनमें भीम जी राव, चैनशाह, अकबर शाह, निरंध शाह प्रथम, तोडल शाह, गोपाल शाह, जसवंत शाह, पूरन शाह, दुर्जन शाह, करण शाह, निरंध शाह द्वितीय, परताप शाह, नरवर शाह प्रथम, नरवर शाह द्वितीय, कीरत शाह द्वितीय, तरवर शाह, महाराज शाह, केसरी शाह, मर्दन शाह, कीरत शाह द्वितीय, नोने शाह, कल्याण शाह, राम शाह, नवल शाह, मकरंध शाह, आलम शाह, हृदय शाह, छत्र शाह, सूरत शाह, चंद्रचूड़ामन शाह, राजा उमराव शाह, प्रेम विजय शाह के नाम शामिल है। मौजूदा समय में कीर्ति बहादुर शाह अभी राज्य पद का दायित्व संभाल रहे हैं।

वंशावली को ध्यान से देखने पर पता लगता है कि इन गोंड वंशी राजाओं के साथ भीम राव जी को छोड़कर सबके साथ शाह जुड़ा हुआ है। शाह शब्द मूलत: हिन्दी भाषा का नहीं है और न ही किसी हिन्दू सम्राट एवं राजा उमरावों के साथ यह शब्द जुड़ा हुआ मिलता है। यह शब्द मूलत: पारसी भाषा का शब्द है एवं अफगानिस्तान होता हुआ मुसलमानों के साथ भारत में प्रविष्ट हुआ। शोभापुर का राजघराना भी गोंड वंशी है एवं भटगांव की जागीर भी दलपत शाह द्वारा दी गई थी। इसके साथ ही साथ शाह की उपाधि भी इन्हें दलपत शाह या रानी दुर्गावती द्वारा दी गई होगी। शोभापुर के गोंड वंशी राजाओं के वर्तमान उत्तराधिकारी राजा प्रेम विजय शाह जूदेव द्वारा इस तथ्य की पुष्टि हुई है।

राजा साहब ने बताया हैं कि हमारे पूर्वजों को भटगांव की जागीर एवं राजा की उपाधि मंडला के राजाओं द्वारा प्रदान की गई थी। इस वंश का राज पुरोहित द्वारा संकलित वंशावली में भी इस तथ्य का उल्लेख किया गया है। गोंडवाना गणराज्य परिषद के प्रमुख घटक के रूप में राजवंश का प्रतिनिधित्व करने वाले राजाओं के पराक्रम से इस वंश का इतिहास भरा पड़ा है। राजा प्रसन्नम तो गज भूमि दानम् लोकोक्ति सूत्र को अंगीकार करते हुए हाट, बाजार, पाठशाला, विद्यालय, चिकित्सालय, मठ-मंदिर, धार्मिक आस्था-चबूतरे, ब्राह्मण, साधु-संत और अपने अनुचर-सेवकों को भूमिदान कर अपने कुल की कीर्ति बढ़ाने वाले इसी घराने के राजवंशी योद्धा रहे हैं। सर्वधर्म समभाव के समर्थक और सनातन धर्म के रक्षक की भूमिका गोंड राजवंश की ही देन है, जो कि शोभापुर ग्राम में सतत् रामलीला का मंचन विगत सैकड़ों वर्षों से किया जा रहा है तथा मोहर्रम के अवसर पर चांदवली सॉ की स्मृति, इस्लाम के ताजिया और ईद की सिमैया भुलाई नहीं जा सकती। समदृष्टा होकर प्रजा के प्रत्येक उत्सवों में राजघराना हमेशा अग्रणी रहा है, जिसने ग्राम शोभापुर की कौमी एकता को बरकरार रखा है।

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