KM Cariappa Birth Anniversary 2024: आज साहस, शौर्य और वीरता की प्रतिमूर्ति, 1947 के भारत-पाक युद्ध में अपनी नेतृत्व क्षमता से पाकिस्तान को पीछे हटाने वाले भारतीय सेना के प्रथम कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा की जयंती है। इस मौके पर मध्यप्रदेश के नेताओं ने उन्हें याद कर यह संदेश साझा किया है।
केएम करिअप्पा की जयंती पर कोटि-कोटि नमन करता हूं: CM
केएम करिअप्पा की जयंती पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि, अपने कुशल नेतृत्व के द्वारा 1947 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सैन्य बल को मजबूती प्रदान कर दुश्मनों से माँ भारती की रक्षा करने वाले भारतीय सेना के प्रथम कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन करता हूं, राष्ट्र की सेवा व सुरक्षा के लिए समर्पित आपका सम्पूर्ण जीवन सभी देश प्रेमियों के लिए प्रेरणादायक रहेगा।
शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि, स्वतंत्र भारत के प्रथम सेना प्रमुख; जिनकी कुशल रणनीति और अद्भुत कौशल के समक्ष 1947 में पाकिस्तानी सेना ने मुंह की खायी, ऐसे भारतीय सेना के प्रथम कमांडर इन चीफ, श्रद्धेय केएम करिअप्पा जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन करता हूं। आपके शौर्य, साहस और वीरता की कहानियाँ भारतवासियों को सदैव गौरवान्वित एवं राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करती रहेंगी।
वही वीडी शर्मा ने ट्वीट कर लिखा- 1947 के भारत-पाक युद्ध में अपने कौशल और रणनीतियों से पाकिस्तान को नाकों चने चबवाने वाले, भारतीय सेना के प्रथम कमांडर-इन-चीफ केएम करिअप्पा की जयंती पर उन्हें भावपूर्ण नमन, मां भारती की सेवा और सुरक्षा में उनका अविस्मरणीय योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।
साहस, शौर्य और वीरता के प्रतिमान, भारतीय सेना के प्रथम कमांडर इन चीफ फिल्ड मार्शल केएम करिअप्पा की जयंती पर सादर नमन करता हूं।
मंत्री सारंग
28 जनवरी सन 1899 में दक्षिण में कुर्ग के पास हुआ था केएम करियप्पा का जन्म
बता दें, केएम करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी सन 1899 में दक्षिण में कुर्ग के पास हुआ था। कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा भारत के पहले नागरिक थे, जिन्हें 'प्रथम कमाण्डर इन चीफ़' बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
करिअप्पा ने जनरल के रूप में 15 जनवरी, 1949 ई. को पद ग्रहण किया था। इसके बाद से ही 15 जनवरी को 'सेना दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा। करिअप्पा भारत की राजपूत रेजीमेन्ट से सम्बद्ध थे। 1953 ई. में करिअप्पा सेवानिवृत्त हो गये थे लेकिन फिर भी किसी न किसी रूप में उनका सहयोग भारतीय सेना को सदा प्राप्त होता रहा।
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