फर्जी रजिस्ट्री के दम पर करोड़ों का घोटाला : दिग्विजय सिंह
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फर्जी रजिस्ट्री के दम पर करोड़ों का घोटाला : दिग्विजय सिंह

भोपाल, मध्यप्रदेश : नर्मदा घाटी के सबसे बड़े घोटाले पर पिछले छह सालों में नहीं हुई कार्रवाई। आज भी बना है मध्यप्रदेश शासन और दलालों का गठजोड़।

भोपाल, मध्यप्रदेश। नर्मदा घाटी परियोजना के अंतर्गत सरदार सरोवर बांध में करोड़ों के घेाटाले का आरोप पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर ने लगाते हुए इस मामले की जांच कराने की मांग प्रदेश सरकार से की है। श्री सिंह और सुश्री पाटकर ने यह आरोप सोमवार को पत्रकार वार्ता के दौरान लगाए हैं।

श्री सिंह एवं सुश्री पाटकर ने बताया कि सरदार सरोवर बांध में एक महा घोटाला हुआ। जिसमें 1600 गरीब किसानों की फर्जी रजिस्ट्री करवाकर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार अधिकारियों, कर्मचारियों और दलालों ने किया है। 2005 से डूब प्रभावित किसानों को वैकल्पिक खेती लायक जमीन नर्मदा ट्रिब्यूनल और पुनर्वास नीति तथा सर्वोच्च अदालत के फैसलों के आधार पर दी जानी थी। जमीन नहीं दे पाने पर पांच एकड़ सिंचित जमीन खरीदने के लिए 5.58 लाख रुपए का अनुदान घोषित हुआ तो उसमें सैकड़ों फर्जी रजिस्ट्रियां पेश करके राशि निकाली जाने लगी। पुनर्वास के अन्य कार्यों में जैसे मकान के लिए भू-खंडों का आवंटन जिसमें कई पुनर्वास स्थलों पर परिवर्तन होने लगा और पूनर्वास बसाहटों पर हो रहे सुविधाओं के निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार सामने आने लगा। तब 2007 में नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से मप्र उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की गई। मुख्य न्यायाधीश ने 21 अगस्त 2008 के आदेश से न्यायाधीश श्रवण शंकर झा की अध्यक्षता में भ्रष्टाचार जांच आयोग गठित किया।

इस आयोग के समक्ष चार मुद्दों पर चले कार्य में भ्रष्टाचार की जांच सम्मिलित रही, जिस पर सात साल के कार्यकाल में हजारों लोगों से सुनवाई की। स्थल निरीक्षण तथा बड़े पैमाने पर कागजातों की खोज के साथ, याचिकाकर्ता तथा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की गवाही प्रस्तुत की गई। जनवरी 2016 में प्रस्तुत हुए झा आयोग की रिपोर्ट में सभी मुद्दों पर भ्रष्टाचार और अनियमितताएं हुई। इस रिपोर्ट पर मप्र शासन ने उच्च न्यायालय में सुनवाई एवं कार्यवाही का विरोध किया। सर्वोच्च अदालत ने जांच आयोग अधिनियम 1952 के तहत उच्च न्यायालय को 900 से अधिक पन्नों की रिपोर्ट और संलग्नक कागजातों को विधान मंडल के समक्ष रखने पर मजबूर किया। जुलाई 2016 से यह रिपोर्ट विधान मंडल के पटल पर रखी गई। न कभी इस पर बहस हुई। न कोई कार्यवाही की रिपोर्ट उच्च न्यायालय में पेश की गई।

सर्वोच्च अदालत ने मुद्दों पर राज्य शासन से कार्यवाही की अपेक्षा की थी। वह आज तक पूरी नहीं की गई है। मात्र एक आदेश 5 अगस्त 2016 को निकालकर संभागीय आयुक्त इंदौर को फर्जी रजिस्ट्रियों के संबंध में कार्यवाही सौंप दी। आयोग ने पुनर्वास स्थल पर एमपीईबी के द्वारा विद्युत ट्रांसफार्मर्स रखे जाने में भी करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया था, इसकी जांच भी एमपीईबी के दोषी अधिकारियों को ही सौंपी गई है। राज्य शासन ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने आज तक दलालों और भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही किए जाने की कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी है। सभी दलाल आज भी वहां दलाली कर रहे हैं। राज्य सरकार सैकड़ों परिवारों के साथ धोखाधड़ी करने वाले दलालों और भ्रष्टाचार करने वाले कर्मचारियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। यह आपराधिक कृत्य सरकार ने लंबित कर रखा है।

श्री सिंह एवं सुश्री पाटकर ने कहा कि यह करोड़ों की बरबादी मप्र शासन द्वारा कार्यवाही नहीं करके भ्रष्टाचार को शह दी गई है। सरदार सरोवर जैसे परियोजना के संबंध में हुए एक घोटाले को शासन 7 साल की जांच रिपोर्ट के बावजूद कैसे दबा सकती है, विधान मंडल से लेकर संसद तक यह घोटाला उजागर होना चाहिए। मप्र ने जनप्रतिनिधियों के अलावा विस्थापित ही नही, प्रदेश और देश की जनता के समक्ष राज्य सरकार को देना होगा। जवाब के साथ हर दोषी के खिलाफ कार्यवाही नहीं की गई तो मप्र की सरकार को ही दोषी माना जाएगा जो गरीब किसानों मजदूरों को न्याय दिलाने की जगह भ्रष्टाचार करके उनका हक डकारने वालों को बचा रही है।

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