शहडोल : 35 लाख की छात्रवृत्ति डकार गया सांई पैरामेडिकल

शहडोल, मध्यप्रदेश : प्रमाणित जांच व वसूली के आदेश, रसूख से पड़े ठण्डे बस्ते में। उच्च न्यायालय की आड़ लेकर, पैरामेडिकल संचालकों ने किया किनारा।
35 लाख की छात्रवृत्ति डकार गया सांई पैरामेडिकल
35 लाख की छात्रवृत्ति डकार गया सांई पैरामेडिकलसांकेतिक चित्र

शहडोल, मध्यप्रदेश। आदिवासी छात्रों को मिलने वाली लगभग 35 लाख की छात्रवृत्ति के गबन का मामला वसूली और एफआईआर के लिए शासकीय कार्यालयों में दबा पड़ा है। सांई इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल टेक्नालॉजी प्रबंधन ने उच्च न्यायालय की आड़ में नौकरशाहों का मैनेजमेंट कर मामले को ठण्डे बस्ते में डलवा दिया।

30 मार्च 2015 को तत्कालीन सहायक आयुक्त ने थाना सोहागपुर को लिखे गये पत्र क्रमांक 1092 में छात्रवृत्ति घोटाले का हवाला देकर एफआईआर दर्ज करने का पत्र लिखा था, सांई इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल टेक्नालॉजी शहडोल में फर्जी छात्रों के नाम दर्शाकर, वर्ष 2010-11 से 12-13 तक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए लगभग 32 लाख 61 हजार 730 रूपये लिये गये, जांच के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि यह पूरी राशि गबन कर ली गई है, सहायक आयुक्त ने उक्त पत्र आदिम जाति कल्याण विभाग के तत्कालीन क्षेत्र संयोजक आर.पी. मलैया के मार्फत, सोहागपुर थाने व कोतवाली में भेजकर अपराध कायम करने का उल्लेख किया था।

पत्रों से सुलझा था भ्रष्टाचार :

सहायक आयुक्त के द्वारा सोहागपुर थाने में भेजे गये विभागीय पत्र क्रमांक 1092 के उपरांत सोहागपुर थाने से 4 मार्च 2015 को पत्र क्रमांक 367 भेजकर उक्त मामले से संदर्भित दस्तावेज भी चाहे गये, जिसके बाद 16मार्च को तत्कालीन सहायक आयुक्त सुधांशु वर्मा ने पत्र क्रमांक 1280 प्रेषित करते हुए आदिवासी विकास विभाग भोपाल के द्वारा भेजे गये पत्र क्रमांक 20047, कलेक्टर डॉ. अशोक भार्गव शहडोल द्वारा इस मामले में कराई गई जांच रिपोर्ट जिसमें के.के. शुक्ला, सीईओ जिला पंचायत, सुधांशु वर्मा सहायक आयुक्त, जे.एस. बरकड़े जिला शिक्षा अधिकारी, एस.के.सक्सेना प्राचार्य शंभू नाथ शुक्ल के द्वारा की गई जांच रिपोर्ट तथा 23 फरवरी 2015 को कलेक्टर शहडोल के द्वारा उक्त संस्थान से गबन की गई राशि वसूलने का आदेश पत्र आदि भेजा गया, जिसके बाद संभवत: थाने के द्वारा दर्ज की जाने वाली प्राथमिकी रास्ते साफ हो चुके थे।

उच्च न्यायालय की ली आड़ :

शासन द्वारा कराई गई जांच में लाखों का गबन प्रमाणित होने और पुलिस द्वारा अपराध कायम करने के लिए दस्तावेज एकत्र कर लिये जाने के बाद कथित पैरामेडिकल संस्थान के संचालक ने माननीय उच्च न्यायालय में आधी-अधूरी जानकारी देकर इस मामले में स्थगन ले लिया, हालांकि माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा इस मामले में रिटपीटिशन क्रमांक 3495/2015 में पारित आदेश 21 जुलाई 2016 को राहत की अवधि समाप्त भी हो गई। बावजूद इसके यह मामला अभी भी विभाग व थानों की फाईलों में दबा पड़ा है।

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