डीजल से मंहगा हुआ मिट्टी का तेल, गेंहू का वितरण भी बंद
डीजल से मंहगा हुआ मिट्टी का तेल, गेंहू का वितरण भी बंदRaj Express

Shahdol : डीजल से मंहगा हुआ मिट्टी का तेल, गेंहू का वितरण भी बंद

शहडोल, मध्यप्रदेश : शासन का यह कैसा उचित मूल्य? रोटी छिनी, रोशनी का आसरा टूटा। सरकार जो चाहती है निर्णय थोप देती है, उस पर कोई विरोध नहीं जताया जाता है।

शहडोल, मध्यप्रदेश। समाज के निर्धन और अंतिम छोर पर खड़े व्यक्तियों को भुखमरी से बचाने और राशन का निर्धारित दरों पर न्यायसंगत विधि से वितरण कराने संचालित की गई सार्वजनिक वितरण प्रणाली अब चरमराकर रह गई है। शक्कर का आवंटन तो वर्षों पहले से बंद है, अब पेट को रोटी देने वाला गेेहूं भी बंद कर दिया गया है। यह आवंटन मई माह से बंद है, जबकि दूसरी ओर अंतिम छोर पर खड़े निरीहों के घर को उजाला देने वाला मिट्टी का तेल 102 रुपए लीटर कर दिया गया है,जो कि डीजल से भी मंहगा है। इतना मंहगा तेल खरीदने की हिम्मत निर्धन लोग नहीं कर पा रहे हैं। हालत यह है कि आवंटन कोई दुकानदार नहीं लेना चाह रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का हाल यह है कि अब यहां उपभोक्ता को केवल चावल भर का आसरा रह गया है। ऐसा नहीं है कि गेहूं की पैदावार नहीं हुई है। इस बार भी 2 लाख 43 हजार क्विंटल गेहूं का उपार्जन हुआ है फिर भी गेहूं की कमी बतायी जा रही है। आखिर इतना गेहूं कहां जा रहा है? हैरानी की बात यह है कि सरकार जो चाहती है निर्णय थोप देती है, उस पर कोई विरोध नहीं जताया जाता है।

दो लाख उपभोक्ताओं पर आफत :

बताया जाता है कि जिले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लगभग दो लाख उपभोक्ता हैं। इनमें अधिकांशत: बीपीएल श्रेणी और एएवाई के हैं शेष थोड़े बहुत सामान्य श्रेणी के हैं। सरकार बीपीएल और अत्यधिक गरीबी की श्रेणी के लोगों के लिए सारे इंतजाम करती है। अभी तक मजे से गेहूं और चावल का आवंटन होता रहा और लोगों को पेट की रोटी देने वाला गेहूं कभी मुफ्त में तो कभी एक रुपए किलो मिलता रहा है। लेकिन अचानक यह वितरण बिना सूचना के बंद कर दिया गया। जिससे इतनी अधिक संख्या के बीपीएल व एएवाई श्रेणी के लोगों के सामने जीविका की समस्या उठ खड़ी हुई है। वितरण की व्यवस्था इस तरह की जाती रही कि प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम के मान से राशन दिया जाता रहा है। अगर राशन कार्ड में सदस्य संख्या 5 है तो, उस हितग्राही को 25 किलोग्राम राशन दिया जाता था। जिसमें गेहूं और चावल दोनो का वितरण होता रहा है। लेकिन अब गेहूं बंद कर केवल 5 किलो के मान से चावल ही दिया जा रहा है।

मिट्टी तेल का दर्शन ही नहीं :

उपभोक्ताओं के लिए उचित मूल्य बताकर वितरित की जा रही सामग्री का हाल है यह है कि मिट्टी तेल जैसी गरीबों की अत्यंत आवश्यक सामग्री अब 102 रू पए लीटर बेची जा रही है जो कि डीजल से भी मंहगी है। उस डीजल से महंगी है जिसे बड़े संपन्न और धनी मानी लोग इस्तेमाल करते हैं। शासन का यह है उचित मूल्य? हालत यह हो गयी है कि मिट्टी तेल को कोटेदार उठाना ही नहीं चाहते। इतना महंगा कोई खरीदता नहीं है और सामग्री स्टॉक में पड़ी रहने से उसके रखरखाव और संधारण की जिम्मेदारी बढ़ती है। एक माह तो तेल के बड़े डीलरों और स्टाकिस्टों के यहां तेल काफी समय तक पड़ा रह गया था। दूसरी ओर कुछ राशन दूकान संचालक संकोच करते हुए यह बताते हैं कि चूंकि कई उपभोक्ताओं को गैस सुविधा से जोड़ दिया गया है इसलिए मिट्टीतेल नहीं उठाते। सवाल केवल चूल्हे का ही नहीं घर के उजाले का भी है।

न गैस, न तेल क्या करें ?

ग्रामीण आदिवासियों के लिए सरकार अरबों रुपए का बजट उड़ेल रही है लेकिन उनकी हालत उनके घरों में जाकर देखी जा सकती है। रसोई गैस 1 हजार रुपए, मिट्टी तेल 102 रुपए वे कहां से खरीदी करें और कैसे चूल्हा जलाएं? उज्जवला गैस की स्थिति तो यह है कि एक बार किसी तरह जिन लोगों ने खरीद लिया था, उनके सिलेण्डर पड़े हैं उन्हे तो सब्सिडी भी नहीं मिली थी। वे इस स्थिति में नहीं हैं कि फिर से हजार रुपए फूंक कर सिलेण्डर उठा सकें। दूसरी ओर घर के उजाले के लिए मिट्टी तेल की चिमनी व लालटेन जला लेते थे वह भी अब बंद हो गया है। रात में घर में उजाला कैसे हो, यह एक अहम मसला है। अभी तो ज्ञात हुआ कि लोग मोमबत्ती से काम चला रहे हैं, लेकिन यह कोई स्थाई समाधान नहीं है।

बदलाव व्यवस्थित नहीं :

जानकारी मिली कि शासन पहले तो इस निर्णय को क्रियान्वित करना चाहता था कि तेल, साबुन, नमक, गुड़, शक्कर सब उपयोगी घरेलू सामग्री राशन दूकानों से वितरित कराया जाए। ताकि गरीबों को मंहगाई की मार नहीं झेलनी पड़े। लेकिन अब हालत यह है कि यहां गेहूं और केरोसिन भी निर्धारित दरों पर वितरित करा पाना शासन को भारी पड़ रहा है। शासन की गरीब हितकारी योजनाएं भी व्यवस्थित नहीं हैं। इस कारण गरीबों को अधिक लाभ नहीं हो पाता है।

जनप्रतिनिधि सो रहे :

जनता हर तरफ मंहगाई की मार से जूझ रही है, उसकी हालत बद से बदतर होती जा रही है लेकिन जनता को न्याय दिलाने का दम भरने वाले जन प्रतिनिधि सांसद, विधायक, विपक्षी दलों के नेता भूमिगत रहते हैं। उनकी ओर से आंदोलन छेडऩा तो दूर एक बयान तक जारी नहीं होता है। ताज्जुब की बात तो यह है कि उन्हे बहुत सी बातें मालूम ही नहीं रहतीं हैं। जनता का वोट पाने के बाद उनकी दुनिया एरोप्लेन में चलने लगती है और उन्हे अपने भोग विलास से फुर्सत ही नहीं मिलती है। वास्तव में जनप्रतिनिधि जनता के गुनहगार हैं। कांग्रेस के लोग शासन से क्यों नहीं पूछते कि तुम्हारे उचित मूल्य ने मिट्टी तेल को डीजल से भी मंहगा क्यों कर दिया? मिट्टी तेल भी गरीबों को वंचित क्यो कर दिया गया?

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