पंडित हल्दीपुर ने बांसुरी पर बजाया राग हेमंत
पंडित हल्दीपुर ने बांसुरी पर बजाया राग हेमंतRaj Express

तानसेन समारोह : पंडित हल्दीपुर ने बांसुरी पर बजाया राग हेमंत

समारोह की उदघाटन सभा में तानसेन सम्मान से विभूषित पं. नित्यानंद हल्दीपुर ने बांसुरी सुराखों पर राग हेमंत के सुर छेड़े तो बांसुरी के सूराखों से निकलती राग मिश्रित हवाओं ने माहौल में आनंद रस घोल दिया।

ग्वालियर, मध्यप्रदेश। सुरों के सरताज तानसेन की याद में विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह का पहला दिन सुखद और मखमली अहसासों से सराबोर कर गया। समारोह की इस उदघाटन सभा में तानसेन सम्मान से विभूषित पं. नित्यानंद हल्दीपुर ने बांसुरी सुराखों पर राग हेमंत के सुर छेड़े तो बांसुरी के सूराखों से निकलती राग मिश्रित हवाओं ने माहौल में आनंद रस घोल दिया। अंत में विदुषी गायिका अश्विनी भिड़े देशपांडे ने अपनी गायकी से ऐसे रंग भरे कि जयपुर-अतरौली घराना साकार हो उठा, रसिक देर रात तक सुरों के सागर में डूबते उतरते रहे।

सभा का शुभारंभ शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों एवम शिक्षकों द्वारा तानसेन की प्रशस्ति एवं ध्रुपद गायन से हुआ। रागमाला में पिरोई गई प्रशस्ति के बोल थे ध्रुव कंठ स्वरोदगार जबकि राग विहाग में तानसेन रचित ध्रुपद के बोल थे महादेव देवन पति इस बंदिका को विद्यार्थियों ने बड़े ही सधे अंदाज में पेश किया। पखावज पर संजय आफले एवं वायलिन पर अंकुर धारकर ने संगत की। निर्देशन डॉ. वीणा जोशी ने किया।

अगली प्रस्तुति में ध्रुपद गायक उस्ताद वासिफुद्दीन डागर ने अपने गायन की शुरुआत राग पूरिया से की। गंभीर प्रकृति के इस राग में आपने आलापचारी से शुरुआत की। डगरवानी परंपरा में आलापचारी ओम अनन्ततम तरण तारण त्वम के बोलों के साथ की जाती है। सो इन्हीं बोलों में आलाप, मध्यलय आलाप और द्रुत लय आलाप की प्रस्तुति दी। इसके बाद चौताल में निबद्ध बंदिश पार्वती नाद शिव शंभु महाबली की ओजपूर्ण प्रस्तुति दी। गायन का समापन चौताल में राग देस की बंदिश जय जय शारदा भवानी से किया। राग पूरिया को गाते समय उसके विस्तार में और उपज में आपने गमक का बखूबी इस्तेमाल किया। पखावज पर पंडित मोहन श्याम शर्मा व तानपुरे पर उन्हीं के शिष्य जॉन हेबुट और अरविंदन श्रीनिवासन ने साथ दिया।

सभा के अगले कलाकार थे तानसेन सम्मान से विभूषित पंडित नियानंद हल्दीपुर। उन्होंने अपना वादन राग हेमंत से शुरू किया। मैहर घराने के इस खास राग को बांसुरी पर बजाते हुए आपने खूब रंग भरे। आलाप से शुरू करके आपने इस राग में दो गतें पेश की। दोनों गतें क्रमश: विलंबित एक ताल एवं द्रुत तीनताल में निबद्ध थीं। समापन राग बागेश्री में मध्यलय की गत से किया। तबले पर हितेंद्र दीक्षित ने मणिकांचन संगत का प्रदर्शन किया।

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