डॉ. दीपक आचार्य पातालकोट का असामायिक निधन
डॉ. दीपक आचार्य पातालकोट का असामायिक निधन Raj Express

जड़ी-बूटियों में जीवन खोजने वाले आर्युवेद के जानकार डॉ. दीपक आचार्य का असामायिक निधन

डॉ. दीपक आचार्य पिछले 25-30 वर्षों से मध्य प्रदेश,राजस्थान और गुजरात के जंगलों की खाक छानते हुए पारंपरिक हर्बल ज्ञान,वहां के रहन-सहन और खान-पान पर विशेष अनुसंधान कर रहे थे।

हाइलाइट्स :

  • डॉ. दीपक आचार्य ने 9 किताबें, 50 से अधिक रिसर्च आर्टिकल लेख लिखे हैं।

  • पर्यावरण संरक्षण नीति निर्धारण में बतौर सलाहकार भूमिका ।

  • जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी एकत्र कर डॉ. दीपक ने दस्तावेजीकरण किया ।

भोपाल,मध्यप्रदेश । पातालकोट में जड़ी-बूटियों में विशेष अनुसंधान जीवन खोजने वाले और आर्युवेद पर कई पुस्तकें लिखने वाले डॉ. दीपक आचार्य का मंगलवार को निधन हो गया। उनके आकस्मिक निधन पर चिकित्सा, मीडिया और लेखक जगत में शोक की लहर है। तमाम प्रकाशन समूह ने दुख प्रकट किया है। जानकारी के अनुसार, नागपुर के एक अस्तपाल में सोमवार- मंगलवार की दरमियानी रात लगभग 12.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि मल्टीपल हार्ट अटैक के कारण उनका हार्ट फेल हो गया था। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे और अस्पताल में उनका उपचार हो रहा था।

माइक्रोबायोलॉजी में सागर विश्वविद्यालय से पीएचडी:

48 वर्षीय डॉ. दीपक आचार्य माइक्रोबायोलॉजी में सागर विश्वविद्यालय से पीएचडी, इथनोबॉटनी विषय में पोस्ट डॉक्टरेट थे। वे पेशे से वैज्ञानिक थे। डॉ. दीपक आचार्य ने 9 किताबें, 50 से अधिक रिसर्च आर्टिकल और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया पर पांच हज़ार से पार लेख लिखे हैं। वे कई मीडिया संस्थानों में नियमित कॉलम भी लिखते थे। वे भारत के गिने चुने टॉप बोटानिस्ट में आते है। इसके साथ ही वे वर्तमान में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैण्डर्ड के सदस्य भी थे। डॉ. दीपक आचार्य को दीपक पातालकोट वाले के नाम से भी जाना जाता हैं। आपकी बहु चर्चित किताबो में इंडिजीनियस हर्बल मेडिसिन (आदिवासियों की औषधीय विरासत) हैं। जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2007 में विमोचित किया था।

विशेष अनुसंधान कर रहे थे दीपक

डॉ. दीपक ने कोविड महामारी के दौरान एक सशक्त कोरोना योद्धा की भूमिका निभाई थी। वे हमेशा सजग रहकर घर में ही रहते हुए कोरोना से लड़ने के उपाय बताते थे। घरेलू उपचार के माध्यम से उन्होंने कई लोगों का जीवन बचाया। वे सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार कई-कई घंटे लोगों को सलाह देते रहते थे। डॉ. दीपक आचार्य पिछले 25-30 वर्षों से मध्य प्रदेश,राजस्थान और गुजरात के जंगलों की खाक छानते हुए हमारे पारंपरिक हर्बल ज्ञान,वहां के रहन-सहन और खान-पान पर विशेष अनुसंधान कर रहे थे। दीपक आचार्य आदिवासी इलाकों में घूम-घूम कर इकट्ठा किए ज्ञान आम लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे थे।

डॉ. दीपक आचार्य का जन्म बालाघाट जिले कटंगी में हुआ

डॉ. दीपक आचार्य का जन्म 30 अप्रैल, 1975 को मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में स्थित कटंगी में हुआ था। बाद में उनका परिवार छिंदवाड़ा आकर रहने लगा। छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय में स्थित शासकीय पीजी कालेज छिंदवाड़ा से स्नातक और डेनियलसन डिग्री कॉलेज से ही उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर बॉटनी की पढ़ाई पूरी की।

इस संबंध में डेनियलसन कालेज के पूर्व प्राचार्य डॉ.एस.ए ब्राउन ने कहा कि डॉ. दीपक आचार्य की अप्रत्याशित मृत्यु के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ। वह हमारे सबसे अच्छे विद्यार्थी में से एक थे।अपनी एमएससी पूरी करने के बाद उन्होंने उस अवधि के दौरान औषधीय पौधों पर शोध कार्य शुरू किया, उन्होंने पातालकोट क्षेत्र के आदिवासियों से उन जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी एकत्र करना शुरू किया, जिनका उपयोग वे विभिन्न बीमारियों के लिए कर रहे थे और इसका दस्तावेजीकरण किया।

नीति निर्धारण में अपनी अहम भूमिका

उन्होंने अपना शोध अध्ययन डॉ. एम.के.राय के मार्गदर्शन में डेनियलसन कॉलेज में पीएचडी तक पूरा किया, लेकिन उनका औषधीय पौधों, आदिवासियों से संबंध और पातालकोट प्रेम पर शोध जारी रहा। उन्होंने अपने क्षेत्र में असाधारण काम किया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। शासकीय पी जी कालेज छिंदवाड़ा के बीएससी साइंस के तत्कालीन सहपाठी कमलेश चौरा से वतर्मान में बनगांव हायर सेकंडरी में ऑर्गेनिक कैमिस्ट्री के लेक्चरर के अनुसार डॉ. दीपक आचार्य के जीवन का महत्वपूर्ण समय छिंदवाड़ा में ही बीता। दीपक और मैं एक ही साइकिल से धरम टेकरी की चढ़ाई चढ़ी हैं। डॉ. दीपक आचार्य को दीपक पातालकोट वाले के नाम से भी जाना जाता हैं। डॉ. दीपक आचार्य गुजरात सरकार तथा भारत सरकार के वन एवम पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी विषयों पर बतौर 'सलाहकार', नीति निर्धारण में अपनी अहम भूमिका में है।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

Related Stories

No stories found.
logo
Raj Express | Top Hindi News, Trending, Latest Viral News, Breaking News
www.rajexpress.com